ईरान और इसराइल के बीच संघर्ष भारत के लिए कितनी बड़ी चुनौती है – BBC News हिंदी
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अप्रैल की पहली तारीख से ही ईरान और इजराइल के बीच अब मध्य पूर्व के बाहरी इलाके में गरीबी का खतरा बढ़ गया है।
डेज़ वीक ईरान ने इसराइल पर 300 से अधिक बार बमबारी और मिसाइलों से हमलों का दावा किया।
एक अप्रैल को सीरिया के दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर हमलों के बाद से ही इसकी स्थिति खराब हो रही थी। ईरान ने इस हमले के लिए इसराइल को दोषी ठहराया था.
हालाँकि, इज़राइल ने अभी तक इस पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन शुक्रवार को अमेरिका ने कहा है कि इज़राइल ने ईरान पर मिसाइल से हमला किया है, जिसके बाद इस क्षेत्र में तनाव बढ़ने की संभावना बनी हुई है।
विपक्ष का मानना है कि भारत के लिए ये स्थिति और अशांति इसलिए हो सकती है क्योंकि ईरान और इज़राइल दोनों के बीच अच्छे संबंध हैं।
साथ ही पश्चिमी एशियाई देशों में अच्छी-ख़ासी साँचे में भारतीय भी रहते हैं। उनका मानना है कि ईरान और इज़राइल के संघर्ष से भारतीय उद्योग भी प्रभावित हो सकता है।
भारत पर क्या असर होगा?
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ईरान के हमलों के बाद ही भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर चिंता जताई थी जिसमें कहा गया था कि दोनों देशों के मुज़ाहिरों ने मुसलमानों को आर्थिक मंदी के रास्ते पर धकेल दिया है।
भारत ने अपने राजनयिकों के लिए संपादकीय सलाहकार एडव बेकरी जारी की थी और दोनों देशों की यात्रा नहीं करने के लिए कहा गया था।
विश्वास है कि ईरान और इसराइल के बीच संघर्ष के बीच भारत की सबसे बड़ी चुनौती देशों और पश्चिमी एशिया के अन्य देशों में अपने लाखों नागरिकों की सुरक्षा बनी हुई है।
भारत सरकार ने लेखक एडव बॅनाली जारी कर के इज़राइल और ईरान की यात्रा को लेकर कोई भी यात्रा करने को लेकर नहीं आया लेकिन एहितायतन नागरिकों से यात्रा करने को लेकर भागने को कहा गया है।
इस समय इज़राइल में करीब 18 हजार भारतीय हैं जबकि ईरान में पांच से 10 हजार भारतीय रह रहे हैं।
भारत की पत्रिका एडव बावली
हमास के साथ जंग शुरू होने के बाद इसराइल में निर्माण क्षेत्र में काम करने वालों की सख़्त कमी हो गई है। इस कमी को पूरा करने के लिए भारत सरकार और इज़राइल सरकार के बीच एक्जेक्ट के अंतर्गत उत्तर प्रदेश और हरियाणा से 10 हज़ार श्रमिक स्कूलों के बाद इज़राइल भेजे गए थे।
हरियाणा से करीब 530 श्रमिक इसरायल जा चुके हैं। लेकिन भारत सरकार के स्टोर एडव बाज़ली के बाद बाकी बचे लोगों के इज़राइल जाने की योजना आधार में लटक गया है.
इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स से जुड़े सीनियर फेलो डॉक्टर फज्जुर्रहमान कहते हैं, “हमारे 90 लाख से एक करोड़ लोग पश्चिमी एशिया के देशों में रहते हैं, जो हर साल करीब 50 से 55 लाख डॉलर की राशि भारत में रहते हैं। भारत को तेल देने वाले सऊदी अरब और ईरान जैसे शीर्ष देश पश्चिमी एशिया में हैं। अगर इस क्षेत्र में तनाव बढ़ता है, तो ये निश्चित रूप से भारत के लिए परेशानी हो सकती है।”
वहीं, जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कनफ्लिक्ट रिजोल्यूशन के फेकल्टी मेंबर प्रेमानंद मिश्रा का कहना है कि गाजा में जारी इजराइली एक्शन के जवाब में हुई विद्रोहियों के लाल सागर में हमले हुए।
इस मुस्लिम मार्ग पर असर पहले से ही दिख रहा है और अब अगर ईरान और इसराइल के बीच जंग जैसे दरवाजे बने तो फिर भारत के लिए लंबे समय तक तटस्थता वाली नीति पर कायम रहना भी मुश्किल हो सकता है।
ईरान पर इसराइल के हमलों की पुष्टि के बाद वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल और सोने की क़ीमती कीमतें हैं।
शुक्रवार को एशिया में कच्चे तेल की धारा में तीन प्रतिशत इज़ाफ़ा देखने को मिला। कच्चे तेल की कीमत प्रति आँकड़ा करीब 90 डॉलर तक पहुँच गया।
वहीं सोने की कीमत नया रिकॉर्ड बनाते हुए 2400 डॉलर प्रति डॉलर तक पहुंच गई।
प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं कि तेल के दाम बढ़ने से पूरी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है.
आप लोकसभा चुनाव के दौर में हैं और अगर बहुसंख्यक बहुमत है तो इसका सीधा असर आपकी राजनीति पर पड़ता है, जो भारत नहीं खोएगा।
उनका कहना है कि भारत तेल के लिए विदेशी देशों का रुख कर सकता है लेकिन ये जरूर है कि ईरान से सस्ता तेल मिल सकता है, जो अभी नहीं मिल सकता।
भारत के लिए ये कितनी बड़ी नामांकन चुनौती?
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ईरान के इज़राइल पर हमलों के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर चिंता जताई और कहा कि क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
भारत ने कहा कि हम संयम और हिंसक हिंसा के पीछे हटकर के रास्ते से हमाल निकासी की खोज करते हैं।
विपक्ष का मानना है कि भारत की ओर से उसकी विदेश नीति में असमंजस की स्थिति को दर्शाया गया है।
डॉक्टर प्रेमानंद मिश्रा का मानना है कि ईरान पर पहले भी अमेरिकी प्रतिबंध लगा रहे हैं लेकिन अभी स्थिति अलग है। अब अगर भारत इस्राइल के साथ अपने संबंध बनाए रखने की कोशिश करता है तो ईरान के साथ आपके रिश्ते बहुत खराब हो सकते हैं और अगर वह ईरान से घनिष्ठता दिखाता है तो उसे इस्राइल के साथ ही अमेरिका की भी नाराजगी झेलनी पड़ सकती है।
वह कहते हैं, “भारत की ओर से यह संकट एक संकेत है कि भारत में भी एक पसोपेश वाली स्थिति बनी हुई है। यह असमंजस वाली स्थिति किसी भी देश की विदेश नीति में चुनौती नहीं बल्कि संकट है।” मेरी दृष्टि में भारत के लिए डिप्लो एनालिटिक्स क्राइसिस है। क्योंकि भारत की विदेश नीति इस तरह के मसलों में तटस्थता को अधिक बढ़ावा देती है। संपूर्ण भारत की तरह से ईरान और इसराइल के बीच फाँसी हुई है।”
भारत के ईरान और इज़राइल से ख़त्म
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डॉक्टर प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं कि भारत के लिए ये आगे का कुआं और पीछे का कुआं वाली स्थिति है। उनका कहना है कि तनाव बढ़ने से भारत में इस मामले में शैलियाँ बनाए रखना या लंबे समय तक शून्य रहना मुश्किल हो सकता है।
इसराइल के साथ भारत के गणतंत्र का इतिहास बहुत भारी नहीं है।
इज़राइल 1948 में एक देश के तौर पर परोक्ष रूप से आया लेकिन भारत ने 1992 में उसके साथ संवाद संबंध स्थापित किया। हालाँकि, इसके बाद भारत के इज़राइल के साथ संबंध दिन-ब-दिन बढ़ते चले गए।
अब इसराइल भारत को हथियार और तकनीकी प्रतिस्पर्धा करने वाले टॉप देशों में से एक है।
इसके उलट ईरान के साथ भारत के पुराने ख़त्म हो गए हैं। भारत को तेल आपूर्ति करने वाले शीर्ष देश में से एक था। ईरान पर उसके परमाणु कार्यक्रम की वज़ह से अंतराष्ट्रीय बर्तन से पहले भारत को तेल शामिल करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश ईरान था।
अंतर्राष्ट्रीय पाबंदियों के बावजूद भारत ने ईरान के साथ साझेदारी जारी रखी है। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसी साल ईरान का दौरा किया था. इस दौरान चाबहार बंदरगाह पर भी चर्चा हुई थी.
भारत का नाम क्या है?
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चाबहार बंदरगाह के निर्माण में भारत ने निवेश किया है। ये बंदरगाह भारत और ईरान दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
इस बंदरगाह के ईरान से पश्चिमी देशों पर प्रतिबंध के प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी।
वहीं, भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ व्यापार करने के लिए पाकिस्तान के रास्ते से नहीं जाना होगा।
भारत में ईरान के राजदूतराज ई इलाही ने अंग्रेजी पुरालेख इंडियन एक्सप्रेस बातचीत में कहा गया कि भारत को गाजा में युद्ध पर रोक लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय शेयर बाजार को अपनी सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
हालाँकि, ईराज़ इलाही ने ईरान-इसराइल के बीच का ज़िक्र नहीं किया। लेकिन अगर ऐसा मौका आए तो ये भारत के लिए आसान नहीं होगा.
डॉक्टर प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं, ”ईरान और इसराइल के बीच सबसे बड़ी समस्या ये है कि ये दोनों देशों के बीच एकराय बनाना आसान नहीं है. जैसे ईरान का स्पष्ट मानना है कि फ़ालस्टीन के मुद्दे का हल निकालना है” बिना इसराइल को कोई सिद्धांत नहीं दिया जा सकता है।”
“वहीँ, भारत द्वि-राष्ट्र समाधान को चिन्हित किया गया है। भारत हमास के इसराइल पर हमलों को हमला करना, जो कि ईरान को प्रमाणित नहीं करता है। ऐसे में एकमत होना मुश्किल है।”
हालाँकि, उनका मानना है कि ये सभी मुद्दे आपस में उलझे हुए हैं, तो एक सीधा जवाब नहीं दिया जा सकता है, विशेष कर तब जब आप पूरी तरह से अलग-अलग मूड में हों।
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