Varanasi News: कानपुर से ज्यादा काशी की गंगा में मिला प्लास्टिक प्रदूषण, शोध में खुलासा; मछलियां भी प्रभावित
गंगा में गंदगी का आलम।
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मोक्षदायिनी में प्लास्टिक प्लास्टिक को बढ़ावा दिया जाता है। प्लास्टिक के पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान के शोध से पता चला है कि गंगा में कभी नष्ट न होने वाले प्लास्टिक के अतिसुक्ष्म कण माइक्रोसाल्टिक (एमपी) मौजूद हैं। इसके तत्व म्युज़िक में मिलते हैं। मछली खाने वाले के शरीर में नुकसानदायक तत्व पहुंच रहे हैं। इस समस्या का खतरा बढ़ा है। गंगा में कानपुर से बड़े पैमाने पर वैश्वीकरण माइक्रोप्लास्टिक पाए गए हैं।
कानपूर में चामड़ा उद्योग स्थापित है। गंगा के आसपास के रेस्तरां तेनरियां हैं। इनका कचरा सीधे गंगा में गिरता है, फिर भी वाराणसी की गंगा में सबसे ज्यादा प्लास्टिक का कचरा मिला हुआ है। कानपुर में गंगा के सतही जल में माइक्रोसाल्टिक की संख्या 2.16 कण प्रति मीटर घन (MP/M3) अर्थात 1M3 = 1000 है। वाराणसी में माइक्रोसाल्टिक की संख्या 2.42 एमपी/एम3 पाई। 2021 से 2023 के बीच हुआ बौद्ध धर्म का रिसर्च।
चार घाटों से लिया जल, फिर किया शोध
वाराणसी के चार प्रमुख घाटों से गंगा का जल और मसालों के उदाहरण दिए गए थे। अस्सी घाट पर सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक मिले हैं। यहां 2.82 प्रति मीटर क्यूब माइक्रोसाल्टिक मिली है। केदारेश्वर घाट पर 2.60, दशाश्वमेध घाट पर 2.56 और शीतला घाट पर 2.33 प्रति मीटर क्यूब माइक्रोसाल्टिक पाई गई। सिद्धांत के अनुसार, काशी में गंगा का प्रवाह तेज है। इसका कारण मैक्रोप्लास्टिक की मात्रा और उसका फैलाव बढ़ रहा है।
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