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President Draupadi Murmu: कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए राष्ट्रपति पद तक पहुंची द्रौपदी मुर्मु – President Draupadi Murmu: Draupadi Murmu rose to Presidency after facing tough challenges

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू: वे देश के ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जिनका जन्म देश के आधे हिस्से में हुआ था।

द्वारा नवोदित शक्तावत

प्रकाशित तिथि: मंगलवार, 26 जुलाई 2022 06:04 अपराह्न (IST)

अद्यतन दिनांक: मंगलवार, 26 जुलाई 2022 06:08 अपराह्न (IST)

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू: राष्ट्रपति पद से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का कठिन परिचय

कृष्णमोहन झा

1997 में उडीसा के रायरंगपुर जिले में नगर पालिका के दिग्गजों ने चुनाव जीता और अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत करने वाली श्रीमती द्रौपदी मुर्मू अब भारत की 15वीं राष्ट्रपति बनीं हैं। स्वतंत्र भारत के इतिहास में उनके पूर्व अब तक के 14 राष्ट्रपतियों में से सभी एक वर्ष से भी कम उम्र के हैं। वे देश के ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जिनका जन्म देश के सबसे पिछड़े राज्य में हुआ था। उन्हें देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति बनने के बाद मैडम प्रतिभा से नवाजा गया और पहली महिला राष्ट्रपति बनने वाली महिला राष्ट्रपति का गौरव भी हासिल हुआ। 20 जून 1958 को उडीसा के एक किसान परिवार में जब उनका जन्म हुआ तब कौन जानता था कि साधारण किसान परिवार की यह बेटी एक दिन के देश की प्रथम नागरिक बनी का गौरव धारण कर इतिहास से जुड़ी है लेकिन अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के बल पर उन्होंने अपने मार्ग की साड़ी बर्ड्स को हराने के बाद एक के बाद एक सफलता के साथ कई महत्वपूर्ण सोपान तय हो गए।

स्नातक परीक्षा अध्ययन करने के बाद पहले राज्य सरकार के चयन और बिजली विभाग में जूनियर विभाग और कुछ वर्षों तक मानसेवी शिक्षक केके पद पर भी काम किया जहां उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ अपना कार्यपालन किया। 1997 में उन्होंने रायरंगपुर जिले में चुनावी जीत कर राजनीतिक सफर की शुरुआत की। बाद में वे जिला परिषद के उपाध्यक्ष भी बने। 1997 की राजनीति में आने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और जल्द ही उनकी गणना राज्य की निष्ठा वान और सिद्धांतवादी विधायी में प्रमुखता से होने लगी। विपक्ष में भाजपा और बीजद की संयुक्त सरकार में उन्होंने दो बार महत्वपूर्ण विरासत के मंत्री पद के दायित्व का भी हनन किया। श्रीमती मुर्मू ने महिलाओं और दोस्तों की कीमत के लिए कई उल्लेखनीय कदम उठाए।

उन्हें उड़ीसा विधानसभा के सदस्य के रूप में सदन में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ विधायकों को दिए गए नीलक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। श्रीमती मुर्मू को केंद्र में प्रशांत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने राष्ट्रपति चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन उनके समर्थक पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व भाजपा नेता थे, लेकिन उनके समर्थक पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व भाजपा नेता थे। युवा सिन्हा को सपा, वैज्ञानिक कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का समर्थन मिला था।

राष्ट्रपिता चुनाव के लिए मतदान की तारीख नजदीक आ गई, यह सुनिश्चित हो गया था कि उन्हें बहुत बड़े अंतर से जीत हासिल होगी। 21 जुलाई की शाम को तृतीय पक्ष के नतीजों में श्रीमती मुर्मू की प्रचंड विजय ने आश्रम के अनुयायियों को एक बार फिर से शामिल कर दिया। श्रीमती मुर्मू को 64 प्रतिशत मत प्राप्त हुए जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी बात करते हैं कि सिन्हा प्रत्याशी के पूरे मत हासिल करने में जुटे हैं, जो इस बात का परिचय देते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में भारतीय पार्टी की रणनीति पूरी तरह से सफल हो रही है। 25 जुलाई को देश के सर्वोच्च आगामी संवैधानिक पद पर आसीन होने जा रही श्रीमती मुर्मू पूर्व झारखंड के राज्यपाल रह चुकी हैं।

इस पद पर उन्होंने 6 साल एक महीने के अपने कार्य काल में हालांकि खुद को मस्जिद से दूर रखा लेकिन राज्यपाल के रूप में उनके साहसिक फैसले पर उस समय चर्चा का विषय बन गया जब उन्होंने विधानसभा में दो कट्टरपंथी लामा के लिए वापसी की और झारखंड में व्यापक विरोध प्रदर्शन किया। हो रहा था. राज्य पाल पद पर कार्य करते हुए कुलाधिपति के रूप में उन्होंने स्नातक स्तर की पढ़ाई के लिए बैचलर पोर्टल में छात्रों के नामांकन के लिए नामांकन शुरू कर दिया, जिससे शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए शैक्षणिक संस्थानों से संबंधित शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश मिला। जनता दल के हित सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने राज्य सरकार से पाल की परिसंपत्तियों को बार-बार सीधे तौर पर निर्देशित करने के लिए कोई आर्द्रीकरण नहीं किया।

उनकी मौजूदा संगठन क्षमता और नेतृत्व में कौशल ने उन्हें भारतीय जनता पार्टी में शामिल कर लिया और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद तक बरकरार रखा। इस पद पर रहते हुए उन्होंने आदिवासी समुदाय के लोकप्रिय नेताओं की छवि बनाने में सफलता हासिल की। 2009 से 2014 की अवधि में श्रीमती मुर्मू ने अपने व्यक्तिगत जीवन में तीन ट्रैसिडियनों का सामना किया था, जब पहले उनके दो बेटे और फिर उनके पति, भाई और मां को स्थिर काल ने अपनी चिन ली थी, लेकिन इस जीवित महिला ने अपना धैर्य और साहस नहीं रखा। इस घड़ी में वे अपनी इकलौती बेटी इतिश्री का एक मात्र सहारा बन गए।

उन पांच वर्षों के दौरान घाटियों के दुखों के कारण वे अवसाद में चले गए, तब उन्होंने खुद को आध्यात्मिक संस्थान ब्रह्म कुमारी आश्रम से जुड़ने का विकल्प चुना और अध्यात्म और योग की सहायता से अवसाद पर विजय प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने तय कर लिया कि वे अपना शेष जीवन गरीब, सर्वहारा, दीन दुखी और निराश लोगों के जीवन में खुशहाली के लिए समर्पित कर देंगे। उनका कहना है कि इंसान को किसी भी तरह की विषम परिस्थिति में नहीं रहना चाहिए। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने ऐसी विचित्र विचारधारा रखी कि वे मजबूत गरीब जीवट महिला हैं, इसलिए चुनाव के दौरान उनकी यह आलोचना नहीं थी कि वे मजबूत राष्ट्र पति साबित होती हैं।

दो राय यह नहीं हो सकती कि भारत के 15 वें राष्ट्रपति के रूप में उन्हें सर्वोच्च संवैधानिक पद की गरिमा के साथ-साथ उनके अवशेषों में भी शामिल किया जाएगा। जब भाजपा नेता श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को सर्वसम्मत उम्मीदवार घोषित किया गया तो राष्ट्रपति पद के लिए उनके द्वारा चुने गए उम्मीदवारों में से किसी के पास कोई नैतिक आधार नहीं था।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाने का निर्णय राजग के सबसे बड़े घटक के रूप में लिया गया था, भारतीय जनता पार्टी ने जिस पर राजग के बाकी घटकों के लिए सहमति जताई थी, निसंकोच ने राष्ट्रपति पद के लिए अपने संयुक्त उम्मीदवार के नाम पर सहमति व्यक्त की थी। तय करने में काफी संकट का सामना करना पड़ा।

पहले राकांपा प्रमुख शरद भगवान के नाम पर विचार किया गया था, लेकिन वे लोकप्रियता से वंचित हो गए, इसके बाद जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय राष्ट्रवाद के नेता दा फारुख अब्दुल्ला और महात्मा गांधी के पद पर गोपाल कृष्ण गांधी से दूर हो गए। लेकिन दोनों नेताओं ने राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवारी के दावेदारों पर सहमति नहीं जताई। अंततः पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व भाजपा नेता यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति पद के लिए पद के लिए राजी हो गए।

विश्वसनीयता है कि 2018 में भाजपा से संबंध टूटने के बाद यशवंत सिन्हा ने कुछ माह पूर्व वैष्णव कांग्रेस में अपने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली थी। कांग्रेस की सुप्रीमो और ‌ममता बैनर्जी की इच्छा का सम्मान करते हुए वे राष्ट्रपति पद के दावेदार बनने के लिए राजी हो गए लेकिन वे इस सिद्धांत से भलीभांति परिचित थे कि स्थिर राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए वे राजग प्रत्याशी श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के समसामयिक प्रकरण चुनौती पेश करने में असहाय सहयोगी। ज्यों ज्यों राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया आगे बढ़ती गई, त्यों त्यों कई गैर राजग रेस्तरां का समर्थन भी राजग उम्मीदवार श्रीमती श्रीमती मुर्मू को मिला और एक स्थिति ऐसी भी आई कि राष्ट्रपति चुनाव के पूर्व ही श्रीमती मुर्मू के राष्ट्रपति बने रहने को आश्वस्त माना जाने लगा।

भाजपा नीत राजग उम्मीदवार के रूप में श्रीमती द्रौपदी मुर्मू की जीत ने भविष्य की राजनीति के लिए भाजपा की अनाड़ी और बलवती बना दी हैं। इस जीत ने कहा कि इस विश्वास को जन्म दिया गया है कि भाजपा के पास सत्ता की बागडोर बनी हुई है और गरीब जनाब तबके को सामाजिक दृष्टि से मुक्ति मिल सकती है और उनके जीवन में विकास का एक नया युग शुरू हो सकता है। ।। श्रीमती मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर भाजपा ने यह संदेश दिया कि केवल आदिवासी समुदाय में ही नहीं, बल्कि समाज के उन सभी कमजोर और गरीब तबकों तक के नामांकन में सफलता हासिल की है, जो अपनी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि को प्रगति में बाधक मान रहे हैं।

उनके मन में बीजेपी ने यह कहा है कि समाज की मुख्य धारा में उनके शामिल होने का समय आ गया है। देश के 104 जिलों और लगभग सवा लाख में जनसंख्या की बहुलता है। विभिन्न राज्यों के जिलों में 495 गोदामों के लिए दरवाजे हैं। बीजेपी ने मैराथन में 31 वें राउंड में जीत हासिल की। गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में गैट राज्यों में भाजपा को काफी बड़े पैमाने पर गिरावट का सामना करना पड़ा। गुजरात के 27 में से 9, राजस्थान के 25 में से 8, छत्तीसगढ़ के 29 में से 2 और मध्य प्रदेश के 47 में केवल 16 में ही उन्होंने विजय प्राप्त कर ली।

भाजपा की अब यह स्वाभाविक प्रकृति है कि श्रीमती मुर्मू को राष्ट्रपति बनाए जाने से लेकर राजपों की आगामी विधान सभा में जदयू के नेता प्रतिपक्ष के रूप में शामिल हुए। श्रीमती मुर्मू को देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति वामपंथी भाजपा ने महिलाओं को भी सकारात्मक संदेश दिया है। केंद्र में संप्रग के गणतंत्र में राष्ट्रपति और अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर महिलाएं असीन गायब रहीं। बीजेपी ने भी पहले विपक्ष कांग्रेस अध्यक्ष और अब राष्ट्रपति पद से महिलाओं को नवाजा ये कर संदेश दिया है कि वह किसी भी मामले में पीछे नहीं हटेंगी. भाजपा के धुर विरोधी राजनीतिक विचारधारा के सामने अब यह स्पष्ट है कि केंद्र में भाजपा को चुनौती देने के लिए कौन सी रणनीति का प्रस्ताव साबित होगा।

राष्ट्रपति चुनाव में नामांकित उम्मीदवार उम्मीदवार श्रीमती मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए बधाई देते हुए कहा गया है कि जब यह कहा जाता है कि इस चुनाव में उन्होंने वेस्टइंडीज़ को एक साझा मंच पर ला दिया है तो उनकी इस टिप्पणी पर आश्चर्य ही व्यक्त किया जा सकता है। सच तो यह है कि इस चुनाव में आस्थैतिक आश्रमों का उदय सामने आया है। राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों में शामिल हैं कि विभिन्न राज्यों में 125 ऑर्केस्ट्रा के करीब 17 कैथोलिक कलाकारों ने रियो ओलंपिक में भाग लेकर राजग उम्मीदवार श्रीमती द्रौपदी मुर्मू की जीत में अंतर को बढ़ाने में मदद की। राष्ट्रपति चुनाव के बदले हुए उतार-चढ़ाव ने न केवल भाजपा की ताकतों को खंडित कर दिया, बल्कि 2024 में वाले लोकसभा चुनाव के लिए अभी से चिंता में डाल दिया गया है।

  • लेखक के बारे में

    वर्तमान में नईदुनिया डॉट कॉम में शेयरधारक हैं। पत्रकारिता में अलग-अलग नामांकन में 21 साल का दीर्घ अनुभव। वर्ष 2002 से प्रिंट और डिजिटल में कई बड़े दिन सिद्धांत


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