BusinessFoodsGamesTravelएंटरटेनमेंटदुनियापॉलिटिक्सवाराणसी तक

Kuno Cheetah Sheopur: कभी कुपोषण के लिए बदनाम था, अब रिसोर्ट खुले, आदिवासी युवा वेटर और गाइड बने – Kuno Cheetah Lives of Sahariya tribals are changing due to arrival of Cheetah in sheopur loksabha election

कूनो पतझड़ वन विभाग है। यहां पर मुस्लिम नीरस वन दिखाई दे रहे हैं जो कि जातीय हीन मुस्लिम चुनाव हैं लेकिन स्थानीय मुस्लिम समुदाय पर बात करते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र से सबसे ज्यादा जनजातीय वोट कांग्रेस को मिले थे, इस बार मामला इतना मजबूत नहीं है

द्वारा वीरेंद्र तिवारी

प्रकाशित तिथि: रविवार, 21 अप्रैल 2024 04:00 पूर्वाह्न (IST)

अद्यतन दिनांक: रविवार, 21 अप्रैल 2024 04:00 पूर्वाह्न (IST)

कुनो चीता श्योपुर: कभी कुत्तों के लिए था बदनाम, अब रिसॉर्ट खुला, युवा वेटर और गाइड बने जनेऊ
चीतों की वजह से बदली रही सहरिया का जन्म

पर प्रकाश डाला गया

  1. चीतों की वजह से बदली रही सहरिया का जन्म
  2. सहरिया जनजाति के लिए कूनो राष्ट्रीय उद्यान से जुड़ें
  3. कभी कुपोषण के लिए बदनाम था, अब रिज़ॉर्ट खुला

एयरपोर्ट तिवारी, नईदुनिया श्योपुर। 75 साल बाद भारत में पाए गए चीटों ने क्या बदलाव किया। देखने को तो कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन स्ट्रेंथ नकारात्मक नहीं हो सकता, कम से कम उस क्षेत्र की जहां चीटों का बसेरा है। देश की अति पिछड़ी विशिष्ट जनजाति सहरिया के कारण पांचवी अनुसूची में शामिल श्योपुर जिले के कराहल झील का नाम सबसे पहले गरीब और प्रिय समस्या का समाधान था। अब यह भारत में चीता के घर के रूप में जाना जाता है।

कूनो पतझड़ वन विभाग है। यहां पर मुस्लिम नीरस वन दिखाई दे रहे हैं जो कि जातीय हीन मुस्लिम चुनाव हैं लेकिन स्थानीय मुस्लिम समुदाय पर बात करते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र में सबसे अधिक जनजातीय वोट कांग्रेस को मिले थे, इस बार उनके दो कारण इतने समान नहीं हैं, एक तो चीता परियोजना का कारण हो रहा है स्थानीय विकास और दूसरे केंद्रीय मंजूरी का लाभ मिल रहा है।

naidunia_image

सड़कें हुई पकें

झील के सेसईपुरा कराधान से होते हुए टिकट्सौली गांव के दरवाजे से ही कूनो नेशनल पार्क में पर्यटक के लिए प्रवेश करते हैं। सेसईपुरा से कूनो के गेट तक 15 किमी की यात्रा में मोरावन, टिकट्सोली सहित छोटे-छोटे गांव आते हैं। पहले रवाना रॉ हुआ था लेकिन साल भर पहले पीएम मोदी जब चीतों को यहां छोड़ गए थे तब यहां सड़क भी बन गई थी। इसके कारण कूनो पार्क के अलावा कश्मीर तक रेस्तरां भी आसान हो गया है। पकी रोड पर कुछ सुपरमार्केट भी दिखाई देते हैं। मोरावन गांव में कच्चे घरों के बीच शानदार रिज़ॉर्ट ‘द पालपुर फोर्ट रिज़ॉर्ट’ दिखाई दिया। थोड़ी दूरी पर ही नदी तट कूनो जंगल रिज़ॉर्ट बना हुआ है। दोनों अपने-अपने कमरे किराए के मामले में महानगरों को पीछे छोड़ रहे हैं।

पालपुर रिज़र्ट के मैनेजर महेश शर्मा से साक्षात्कार में पूछा गया- चीटों के आगमन से यहां कुछ बदला हुआ है या नहीं? जवाब आया- बहुत बदला हुआ है. इस रिजॉर्ट में माली, वेटर से लेकर ज्यादातर कर्मचारी साथियों को ही प्रशिक्षण दिया गया है। किसी ट्रेंड वेटर की तरह जनेऊ युवा पहले पानी और फिर चाय लेकर आएं।

महेश कहते हैं- बड़े शहरों के लोग ज्ञान चूल्हे पर खाना बनाने की मांग करते हैं तो आसपास के गांव की ही युवा महिलाओं को एक काल कहा जाता है। सॅपरी के दौरान प्रामाणिक चीता देखने को नहीं मिल रहा है इसलिए अभी भी डेमो बम नहीं है, लेकिन अक्टूबर से सीज़न आएगा। टिकलौटी गेट की ओर बढ़े तो देखा कि गांव के किशोर-किशोरियों ने कंपनी की राह पकड़ ली है।

naidunia_image

रोड किनारे छोटे-छोटे स्टूडियो स्टूडियो में ब्रांडेड वॉटर, कोल्ड पेयर और म्यूजिकल के उपयोगी सामान उपलब्ध हैं। गांव में घर के सामने सड़क के नीचे बाहरी दीवार पर पाइप लाइन दिखाई दे रही है, इस केंद्र की नल-जल योजना के लिए अनुदान जारी है। हालाँकि मज़लूम निर्माण का कार्य चल रहा है इसलिए अभी तक कोई स्टॉक नहीं है। आप बिल्डर, चीता एयरलाइंस टीम, गाइड के रूप में करीब 100 स्थानीय युवा काम कर रहे हैं।

गांव मुरावां के रामराधार गुर्जर ने कुछ समय पहले ही सफारी के लिए जिप्सी निकाली है। ऐसे दसियों लोगों ने इंजीनियर्स के पास जिप्सी खरीद ली है। कमाई होती है? निराश भाव से कहा जाता है कि चीता सत्कार शुरू नहीं हो पाया है। अभी तितली, चिंकारा, भालू, चीतल, सांभर को ही देखने को मिलता है इसलिए पर्यटन कम आ रहे हैं।

कूनो के अधिकारी का कहना है कि चौका हमारा फोकस चीतों को बचाने पर है। इनकी संख्या 26 तक पहुंच गई है। 20 हजार की जमीन 20 लाख में भी नहीं – सेसईपुरा में चाय-पानी की दुकान पर कुछ युवा और बुजुर्ग बैठे हैं। टिकट्सौली सरपंच धनीराम का कहना है कि अच्छा हुआ कि हमारे घर पक्के हो गए, हर महीने राशन भी मिलता है। अब बच्चे स्कूल जा रहे हैं।

naidunia_image

कभी पलायन बंद होगा? बोले-नहीं क्योंकि नेशनल पार्क में खेती की जमीन नहीं है तो दूसरे साल में एक महीने के लिए काम करना पड़ता है। दुकान के मालिक केशव शर्मा का कहना है कि आसपास की जो जमीन 20 हजार की आकर्षक थी, अब 20 लाख में भी नहीं मिल रही। सारि ज़मीन अनर्जक ने खरीद ली है। कुछ नामांकन के साथ ही केंद्रीय मंजूरी एवं विकास श्रमिक का संतोष भी सामने आया।


Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button