Indian constitution day 2022: भारतीय संविधान भारतीय जीवन दर्शन का ग्रंथ है – Indian constitution day 2022 is book of Indian philosophy of life
संविधान की रचना
भारत एक विशाल देश है। इसमें विभिन्न टैटू के लोग रहते हैं। यहां विभिन्न संप्रदाय, पंथ, जातीय आदि के लोग हैं। उनकी, रीति-रिवाज, भाषाएँ, रहन-सहन और खान-पान भी अलग-अलग हैं। इस साक्षात मध्य वे अंत में मिलजुल कर रहते हैं। वास्तव में यही भारत का स्वभाव है। भारतीय संविधान में भारत के नागरिकों को छह मौलिक अधिकार दिए गए हैं, विवरण विवरण विवरण 12 से 35 को मध्य में दिया गया है। इनमें अन्याय का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरोध का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा से संबंधित अधिकार और संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल है। उल्लेखनीय है कि पहले संविधान में मूल सिद्धांत अधिकार थे, जिसे ’44वें संविधान संशोधन- 1978 के अंतर्गत हटा दिया गया था। सातवां मौलिक अधिकार संपति का अधिकार था। मूल अधिकार का एक दृष्टांत है- “राज्य नागरिकों के बीच संवाद विभेद नहीं किया जाएगा।”
ऋषि परम्परा का धर्मशास्त्र
भारतीय संविधान “हम भारत के लोग” के लिए हमारी अनोखी सांस्कृतिक विरासत जनित स्वतंत्रता एवं समानता के आदर्श अधिकारों के प्रति एक राष्ट्र के रूप में हमारी स्वतंत्रता का परिचय है। वर्तमान आधुनिक भारत के संकल्पना के समय सांस्कृतिक संप्रदाय ने इसी सांस्कृतिक विरासत को अपने मूल स्वरूप में अक्षुण्ण अवशेष के ध्येय से भारतीय संविधान के मूल अनुसंधान में सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व के रुचिकर संबंधों को स्थान दिया, जो मूल रूप से भारतीय संविधान के भारतीय चैतन्य को ही कहते हैं। परिभाषित करते हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा के आलोक में निर्मित भारतीय संविधान भारत की ऋषि परंपरा का धर्मशास्त्र है। भारतीय जीवन दर्शन का ग्रंथ है।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां हर किसी का सम्मान किया जाता है। वसुधैव कुटुंबकम् भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। यह सनातन धर्म का मूल संस्कार है। यह एक असंबद्ध है। महा उपनिषद सहित कई ग्रंथों की पुस्तकों में इसका उल्लेख है।
अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां वसुधैव कुटुम्बकम्।।
यानी ये मेरा अपना है और ये नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो पूरी धरती ही परिवार है। देखने का अभिप्राय यह है कि धरती ही परिवार है। यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है।
निसंदेह भारत के लोग विराट दिल वाले हैं। वे अविश्वासी अपना लेते हैं। विभिन्न कलाकृति के संस्करण भी सभी में शामिल होकर सहयोग भाव बनाये हुए हैं। एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहते हैं। यही भारतीय हमारी संस्कृति की महानता है।
उल्लेखनीय है कि भारत का संविधान बहुत ही परिश्रम से तैयार किया गया है। इसके निर्माण से पूर्व विश्व के कई देशों के संविधानों का अध्ययन किया गया। सूची उन पर गंभीर रूप से केंद्रित की गई। इन संविधानों में से उपयोगी संविधानों के शब्दों को भारतीय संविधान में शामिल किया गया। आज़ादी के बाद भारत का वैचारिक दृष्टिकोण भारतीय ज्ञान परंपरा के आलोक में विकसित करने के पथ पर खड़ा होने का प्रयास करना चाहिए।
भारतीय संविधान की उद्देशिका
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण अधिपति, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए, और उसके संपूर्ण नागरिक को:
सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और पूजा की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त करने के लिए,
तथा उन सब में,
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता की पुष्टि वाली, बन्धुता बढ़ाने के लिए,
दृढ़ संकल्पित एक अपनी संविधान सभा में आज दिनांक 26 मार्च 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंग्रेजी, अखण्डित और आत्मार्पित किया गया है।
भारतीय संविधान की इस उद्देशिका में भारत की आत्मा निवास करती है। इसका प्रत्यके शब्द एक मंत्र के समान है। हम भारत के लोग-से अभिप्राय है कि भारत एक पेजतांत्रिक देश है तथा भारत के लोग ही सर्वोच्च प्रभु हैं। इसी प्रकार संप्रभुता- से अभिप्राय है कि भारत किसी अन्य देश पर प्रतिबंध नहीं है। समाजवादी- से अभिप्राय संपूर्ण है कि छात्र आदि पर सार्वजनिक स्वामित्व या नियंत्रण के साथ वितरण में समतुल्य सामंजस्यपूर्ण। ‘पंथनिरपेक्ष राज्य’ शब्द का स्पष्ट रूप से संविधान में कोई उल्लेख नहीं है। लोकतांत्रिक- से अभिप्राय है कि लोक का तंत्र अर्थात जनता का शासन। गणतंत्र- से अभिप्राय यह है कि एक ऐसा शासन होता है जिसमें राज्य का मुखिया एक स्थिर प्रतिनिधि होता है। न्याय- से कार्य है कि सामाजिक न्याय प्राप्त हो। स्वतंत्रता- से अभिप्राय है कि सभी नागरिकों को स्वतंत्रता से जीवन जीने का अधिकार है। समता- से अभिप्राय है कि देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त है। इसी प्रकार बंध्यात्व- से अभिप्राय है कि देशवासियों के मध्य भाईचारे की भावना।
विचारणीय विषय यह है कि भारतीय संविधान में सभी देशों के नागरिकों को समान अधिकार प्रदान किये गये हैं तथा उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया गया है। बुरे देशों में आज भी ऊँचे-नीच, अस्पृश्यता आदि जैसे बुरे समुदाय हैं। इन बुरे लोगों को ख़त्म करने के लिए क़ानून भी बनाया गया, लेकिन इनका विशेष लाभ देखने को नहीं मिला। ग्रामीण क्षेत्र में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है। सामाजिक समरसता भारतीय समाज की सुंदरता है, अस्पृश्यता से संबंधित तंबाकू घटनाओं की भी चर्चा रहती है। इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए साइंटिस्ट लोगों को ही आगे आना चाहिए और सभी लोगों को अपने देश के संविधान का पालन करना चाहिए।
-डॉ. बोरिंग
(लेखक-मीडिया शिक्षक एवं राजनीतिक स्थिरांक है)
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