हाजीपुर को लोग किसे चाहते हैं, चिराग पासवान को या पशुपति पारस को? – BBC News हिंदी
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चिराग़ असैन और उनके चाचा पशुपति कुमार पारस
बिहार की राजधानी पटना से सटा एक शहर हाजीपुर है।
यहां के ‘चिनिया केले’ की चर्चा दूर-दूर तक होती है।
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख मत इसी हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से कई बार चुने गये थे.
जीतें भी ऐसी-वैसी नहीं बल्कि रिकॉर्ड करें झूट। साल 1977 और उसके बाद 1989 में यहां से रिकॉर्ड की गई टोक्यो से लॉटरी। हालाँकि 1984 और 2009 के चुनाव में भी हार गए और साल 2014 के चुनाव में फिर से जीत में सफल रहे।
तब उनकी जीत और राजनीति के रुख को लेकर राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख मत प्रसाद यादव ने उन्हें ‘राजनीति का मौसम वैज्ञानिक’ कहा था।
साल 2019 के आम चुनाव में उन्होंने अपने भाई ‘पशुपति कुमार पारस’ के जिम्मे कर दी और शहीद साउदीमी के रास्ते में संसद की राह चुनी,
लेकिन उनकी मृत्यु और पार्टी में दरार के बाद इस पारंपरिक सीट को लेकर घर-परिवार में ही एक तीव्र आघात हो गया।
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कट्टरपंथियों के बेटे और चौधरी जमुई कम्युनिस्ट पार्टी के मुखिया चिराग पासवान, पार्टी में हुई टूट के बाद से ही कह रहे हैं कि साल 2024 में वह हाजीपुर से लड़ेंगे।
वे वर्ष 2021 में अपने चाचा पशुपति कुमार पारस के साथ भी जुड़े थे, जहां वे हाजीपुर से ही चुनावी मैदान में उतरे थे।
यह चर्चा इसलिए भी तेज है क्योंकि पशुपति पारस हाल के दिनों तक केंद्रीय सदस्य सदस्य के रूप में रहे थे। साथ ही कह रहे हैं कि बीजेपी के आला नेतृत्व ने नारा दिया है कि वे ही हाजीपुर से चुनावी लड़ाई लड़ेंगे।
इसके लिए वे भाजपा नेतृत्व के सामने अपने गुट के स्मारकों की परेड का भी हवाला दे रहे थे लेकिन पिरामिड की राजनीतिक घटना ने उन्हें हाशिया पर ला खड़ा कर दिया है।
हाल ही में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने बिहार के लिए पार्टी के बँटवारे का समर्थन किया और पशुपति कुमार पारस की पार्टी को एक भी सीट नहीं दी।
वहीं चिराग़ पैशन की पार्टी को पाँचवें स्थान पर रखा गया है।
पशुपति कुमार पारस फ़िलहाल बाग़ी तिब्बती तिब्बती की कोशिश में हैं और कह रहे हैं कि बीजेपी ने गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया।
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर हाजीपुर की जनता के मन में क्या है?
इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम हाजीपुर के अलग-अलग इलाकों और गांवों के अलग-अलग टोले में चले गए।
क्या कह रहे हैं लोग?
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प्राणपुर बेरई चौक की चाय दुकान पर हाजीपुर से चर्चा करते लोग
राजनीतिक विरासत पर प्रतीकात्मकता को लेकर प्राणपुर बेरई चौक पर किराना निर्माता अरविंद कुमार चौधरी कहते हैं, “यहाँ तो धार्मिक विरासत पर सहमति है, क्योंकि वे नई धार्मिकता हैं। पशुपति जी को तो लोगों ने विचारधारा जी के नाम पर मौक़ा ही दिया था लेकिन वो हमेशा गायब रहे। अब जब भी मोदी जी और चिराग साथ जाएंगे, तो मोदी जी के नाम पर वोट देंगे।’
प्राणपुर बरै के सावन टोले में रहने वाले 55 साल के प्रभु आसनसोल कहते हैं, “इस क्षेत्र को शेयरधारिता जी ने ही देश-दुनिया में पहचान दिलाई। पूरे देश में मोबाइल क्रांति सुनाई दी। हाजीपुर में रेलवे का जनरल ऑफिस और भी बहुत कुछ है।” “उनके काम को चिराग ही आगे बढ़ाएंगे। पारस में दम नहीं है।”
बाकी बचे 35 साल के संजीव साब कहते हैं, “चाचा-भतीजा ने तो किले के किले को बनाया आशियाने (चुनाव का बंगला) को ही तोड़ दिया। कोई सिया मशीन आ गई, तो कोई शिलापट्ट पर आ गया। ऐसा नहीं होना चाहिए था” .ऐसा होने से जोसेफ़ की राजनीति कमज़ोर हो गई है।”
क्यों खास है हाजीपुर?
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कट्टरपंथियों की राजनीतिक यात्रा के दावे हाजीपुर वो सीट रही, जहां वे अलग-अलग आश्रमों और गठबंधनों से जीते रहे, दो बार (1984 और 2009) के आम चुनाव के।
हालाँकि उनके यहां से आत्मीय संबंध भी रह रहे हैं. विशेष रूप से पशुपति पारस और चिराग वह आत्मीय संबंध के सिद्धांत लेना चाह रहे हैं।
चिराग इस सीट पर भी चुनावी फिल्म देखना चाहते हैं क्योंकि इंटरव्यू के लिए यह सीट उनके लिए मुफ़ीद है।
पटना में टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान के पूर्व निदेशक पुष्पेन्द्र सिंह कहते हैं, “वैसे तो हिंदू समाज या अन्य जगहों पर यह धारणा रही है कि पिता की विरासत बेटे को मिलती है लेकिन यहां तो यह बात जनता को तय नहीं कर रही है बल्कि बीजेपी तय कर रही है।”
वो कहते हैं, “बीजेपी देख रही है कि वह कितनी उपयोगी है। पिछले चुनाव में बीजेपी के लिए उपयोगी सिद्ध भी हो चुके हैं। उन्होंने बाद में कमजोर कर दिया और पिछले चुनाव के बाद यह चुनाव हुआ, जहां बीजेपी तय कर रही है।” सिद्धांत की विरासत आदिवासी पास होगी।”
पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं, “जैसे अगर बीजेपी तय करती है कि उसे प्रेमी के बजाय चाचा के साथ जाना है, तब तो दूसरी चीजें हो रही हैं। भले ही समाज में यह स्थापित धारणा है कि पिता की विरासत बेटों की तरह होती है।” यहां तो यही देखने में आ रहा है कि बीजेपी ही ड्राइविंग फोर्स है और पुराने राजनीतिक विरासत को अपने हित में साध रही है।”
असली तबका पूर्वजों के साथ
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राजा महाराजा लुंगारांव गांव में राजपूत टोले के मंदिर में बैठे राजपूत पुतिन के लोग
हाजीपुर के नब्ज़ को टटोलते हुए हम हाजीपुर विधानसभा से होते हुए राजापाकड़ विधानसभा में प्रवेश कर गए।
वहां हमारी पहली मुलाक़ात लुंगाराव गांव के राजपूत टोले के मंदिर में बैठे लोग से हुए।
उनके बीच यह भी चर्चा गर्म थी कि मोदी-शाह की जोड़ी ने चाचा के बजाय भतीजा को पांचवे दर्शन दिए हैं, और हाजीपुर से चिराग ही लड़ेंगे।
सभी ने यही कहा कि वे तो मोदी और भाजपा के साथ हैं और बाकी जो कंफ्यूजन थे, वे भी अब नहीं रह रहे हैं। मतलब कि उन सभी का वोट मोदी के गठबंधन और चिराग के नाम पर है।
क्या कह रही है जनसंख्या?
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किरण देवी, चिंता देवी और कौशल्या देवी
प्राणपुर बैरी गांव की किरण देवी के प्रतिनिधि कहते हैं, “हम तो राम विलास जी को जानते हैं। वो ही हाजीपुर में सारा काम करती थीं। मोबाइल संदेश। रेल संदेश। सामान्य कार्यालय संदेश। तो उनके दर्शन ही हैं चिराग पासवान। हमने तो उन्हें ही पढ़ा है। जानते हैं। ये ही वोट देंगे।”
तो वहीं लुंगराव की चिंता देवी का कहना है, “यहां हर किसी के बीच चिराग का ही बोलबाला है। वो तो फिर भी लोग के सुख-दुख में नहीं आते हैं लेकिन पारस जी नहीं आते हैं। वो तो सिर्फ धार्मिक जी के साथ चले गए। इस बार हमलोग चिराग को ही देख रहे हैं। वो प्रेमी भी हैं और उनके काम करने के लालक भी हैं।”
वही गांव की कौशल्या देवी भी ऐसी ही बातें कहती हैं।
हालाँकि ऐसा भी नहीं है कि चिराग पासवान की उम्मीदवारी और चुनावी लड़ाई को लेकर चारों तरफ एक ही सा भाव है।
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लुंगारांव गांव के यादव टोले में बैठे लोग
लुंगारांव गांव के ही यादव टोले के लगभग सभी बुजुर्गों और आदिवासियों का कहना है कि वे तो धार्मिक प्रसाद और उनके गठबंधन के साथ रहते हैं।
ख़ैर पार्स आ गए या फिर कोई और वे तो वोट समर्थकों को ही वोट दे देंगे।
उनकी नजर में मोदी सरकार ने बालू खनन और ड्राइवरी पर कानून में बदलाव करके अच्छा नहीं किया। यादव और पार्टल के बीच चिराग को लेकर उत्साह नहीं है बल्कि उनकी दोस्ती में यह बात थी कि इंडिया अलायंस से उम्मीदवार कौन होता है।
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