विनोद तावड़े: विधायक का टिकट कटने से लेकर ‘ताक़तवर महासचिव’ बनने तक का सफ़र – BBC News हिंदी
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बीजेपी के मौजूदा राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े
बीजेपी के मौजूदा राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े की 2024 के लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका मानी जा रही है. चाहे बिहार में एनडीए गठबंधन को पटरी पर लाना हो दूसरी पार्टी के अहम नेताओं को बीजेपी में लाने की कवायद हो, इन सबमें विनोद तावड़े की भूमिका की चर्चा हो रही है.
यह एक तरह से पार्टी के अंदर विनोद तावड़े की दमदार वापसी है. इसे समझना हो तो आज से साढ़े चार साल पहले अक्टूबर 2019 को देखना होगा. तब विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने बोरीवली सीट से उनका टिकट काट दिया था.
तब उन्होंने कहा, ”मैं आत्मनिरीक्षण करूंगा कि पार्टी ने मुझे बोरीवली से क्यों नहीं खड़ा किया. पार्टी के दृष्टिकोण को भी समझने की कोशिश करूंगा. अगर मुझसे ग़लती हुई तो मैं इसे सुधारूंगा. अगर पार्टी कुछ ग़लत कर रही है तो वे लोग उसे भी सुधारेंगे. लेकिन अभी इस बारे में सोचने का समय नहीं है. चुनाव नज़दीक हैं और मैं पार्टी के लिए काम कर रहा हूं.”
उस समय विनोद तावड़े महाराष्ट्र सरकार में उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री थे. लेकिन फिर भी पार्टी ने उनकी जगह मुंबई के बोरीवली विधानसभा क्षेत्र से एकदम नए चेहरे सुनील राणे को उम्मीदवार बनाया था.
तब ये कयास लगाया गया कि विनोद तावड़े का राजनीतिक करियर खत्म हो गया है और पार्टी ने उनके पर कतर दिए हैं. लेकिन पांच साल के अंदर विनोद तावड़े एक बार फिर पार्टी के लिए अहम ज़िम्मेदारियां निभाते दिख रहे हैं.
2019 में पार्टी ने उनका टिकट काटा, अब तावड़े ने लोकसभा के लिए 195 उम्मीदवारों की सूची की घोषणा की, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी से उम्मीदवारी की घोषणा भी शामिल थी.
पिछले महीने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे जब दिल्ली आए तो उनकी पहली मुलाकात विनोद तावड़े से ही हुई. राज ठाकरे और विनोद तावड़े के अमित शाह से मिलने जाने की खबर न सिर्फ मराठी बल्कि पूरे मीडिया में छाई रही.
दरअसल विनोद तावड़े चुनाव के अहम समय के दौरान दिल्ली में बीजेपी के अहम नेता हैं.
यहां ये भी देखना होगा कि 2019 में बीजेपी ने एकनाथ खडसे, चंद्रशेखर बावनकुले, प्रकाश मेहता जैसे कई वरिष्ठों नेताओं का टिकट काट दिया था, लेकिन इनमें से केवल विनोद तावड़े अहम ज़िम्मेदारियों को संभालते दिख रहे हैं.
विनोद तावड़े, जिनका पूरा राजनीतिक करियर राज्य में बीजेपी की अंदरूनी राजनीति के कारण दांव पर लग गया था, उन्होंने इतने कम समय में ‘वापसी’ कैसे की? उनका अब तक का राजनीतिक सफ़र कैसा रहा है?
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विनोद तावड़े ने 1980 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में काम करना शुरू किया
छात्र नेता से भाजपा राष्ट्रीय महासचिव
विनोद तावड़े का जन्म 20 जुलाई 1963 को मुंबई के एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था. विनोद तावड़े चार दशकों से महाराष्ट्र और राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हैं.
उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत भाजपा के छात्र संगठन कहे जाने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में एक साथी छात्र कार्यकर्ता के रूप में की.
भाजपा में पूर्णकालिक रूप से सक्रिय होने के बाद वह भाजपा के वरिष्ठ नेताओं प्रमोद महाजन और नितिन गडकरी के संरक्षण में बड़े हुए.
1980 में उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में काम करना शुरू किया. इसके बाद 1988 में वह एबीवीपी के महासचिव बने. इस दौरान उन्होंने कई छात्र विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया.
1994 में, वह भारतीय जनता पार्टी के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए और एक वर्ष के भीतर राज्य महासचिव के रूप में नियुक्त किए गए.
चार साल बाद यानी 1999 में वह मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष बने. वह सबसे कम उम्र में मुंबई बीजेपी अध्यक्ष पद पर आसीन होने वाले पहले नेता बने थे.
2008 में पार्टी ने उन्हें महाराष्ट्र के उच्च सदन में भेजा. उन्हें विधान परिषद के सदस्य के रूप में अपनी छाप छोड़ी. 2011 में वह विधान परिषद में विपक्ष के नेता बने.
2014 में उन्हें बीजेपी ने बोरीवली विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया और देखते ही देखते विधानसभा में पहुंच गये.
उनके लिए स्कूली शिक्षा, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा विभाग का मंत्री बनाया गया. लेकिन एक बार विधायक रहने के बाद 2019 में उन्हें टिकट नहीं दिया गया.
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विनोद तावड़े 2019 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ सके. इस समय तावड़े का राजनीतिक करियर दांव पर था. लेकिन अगले ही साल पार्टी ने उन्हें संगठनात्मक जिम्मेदारी दी. उन्हें राष्ट्रीय सचिव का पद दिया गया.
एक साल के भीतर 2021 में उन्हें पार्टी के महासचिव के रूप में पदोन्नत किया गया. उन्हें हरियाणा के प्रभारी के तौर पर भी जिम्मेदारी दी गई.
इसके बाद बिहार में जेडीयू ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया और बिहार जैसा महत्वपूर्ण राज्य की ज़िम्मेदारी तावड़े को सौंपी गई और वे नीतीश कुमार को फिर से साथ लाने में कामयाब हुए. इस दौरान उन्होंने कुछ समय तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम ‘मन की बात’ का संयोजन भी किया.
2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र में पार्टी का चेहरा बन गए थे. लेकिन चूंकि विनोद तावड़े पार्टी के वरिष्ठ नेता थे, इसलिए दोनों के बीच टकराव की चर्चा भी होती रही. विनोद तावड़े की राजनीतिक छवि बीजेपी के मराठा और चालाक नेता की रही है, लेकिन वे बीजेपी के पुराने दौर के नेताओं की परंपरा से आए हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि और पार्टी के भीतर लंबे समय तक संगठनात्मक कार्य के कारण, उन्हें पता था कि 2019 में विधानसभा टिकट से वंचित होने के बाद भी अवसर पाने का रास्ता क्या है.
इसीलिए उन्होंने कभी भी मीडिया के सामने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर नहीं की. वह धैर्यवान थे. लेकिन वह सिर्फ ‘वेट एंड वॉच’ की भूमिका में नहीं रहे.
संगठनात्मक ज़िम्मेदारी दिए जाने के बाद भी उन्होंने दिल्ली में उन्हें सौंपे गए कार्यों को बखूबी निभाया. उन्होंने राज्य में कहीं भी किसी भी आंतरिक गुटबाजी या आंदोलन के बिना दिल्ली में पार्टी के शीर्ष नेताओं का विश्वास अर्जित किया.
हालांकि अभी यह यह नहीं कहा जा सकता कि उनकी नज़र महाराष्ट्र पर नहीं है लेकिन 2014 के बाद पार्टी के भीतर बीजेपी की बदली हुई व्यवस्था को देखकर उन्हें अंदाज़ा हो गया था कि पार्टी नेताओं का विश्वास हासिल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और वे उसी दिशा में अपने क़दम आगे बढ़ाते रहे.
इसलिए उन्होंने पार्टी के लिए पर्दे के पीछे की कुछ जिम्मेदारियां गंभीरता से निभाईं और जल्दी ही अपने सांगठनिक कौशल के बल पर वे महासचिव पद तक पहुंचे. महाराष्ट्र से प्रमोद महाजन के बाद इस पद पर पहुंचने वाले वह पहले बीजेपी नेता हैं.
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केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ विनोद तावड़े
देवेन्द्र फडणवीस के प्रतिद्वंद्वी?
विनोद तावड़े की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं कभी किसी से छुपी नहीं रहीं. 2014 में विधानसभा चुनाव की प्रचार सभा में उन्होंने सार्वजनिक रूप से गृह मंत्री पद की इच्छा व्यक्त की थी. लेकिन उन्हें स्कूल शिक्षा मंत्री का पद दिया गया.
यह भी चर्चा थी कि वह कुछ समय तक इस मंत्रालय से नाराज थे. इसके बाद उन्हें उच्च और तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, खेल और संस्कृति मंत्री का पद दिया गया. लेकिन 2014 से 2019 तक उन्होंने लगातार उतार चढ़ाव देखे.
दो साल के अंदर 2016 में कैबिनेट विस्तार में उनसे चिकित्सा शिक्षा मंत्री का पद लेकर गिरीश महाजन को दे दिया गया, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के करीबी माने जाते थे. विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले आशीष शेलार को स्कूली शिक्षा मंत्री का पद दिया गया था. 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें सीधे तौर पर टिकट देने से इनकार कर दिया.
कहा गया कि इसके पीछे राज्य में बीजेपी की अंदरूनी राजनीति है. चर्चा यह भी होने लगी कि तत्कालीन मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र में बीजेपी के प्रमुख चेहरे देवेन्द्र फडणवीस से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण विनोद तावड़े का टिकट कटा है.
महाराष्ट्र में 2019 विधानसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पार्टी के प्रमुख थे और ऐसी ख़बरें भी आयीं कि उम्मीदवारों की सूची उनकी इच्छा के अनुसार घोषित की गई थी.
विनोद तावड़े के एक करीबी सहयोगी (नाम न छापने की शर्त पर) कहते हैं, ‘जब उनका टिकट काट गया तो तावड़े निराश हो गए थे. हम उनकी निराशा देख सकते थे. लेकिन वे नाराज नहीं थे. नाराजगी की ख़बर देखने के बाद उन्होंने तुरंत अगले दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उन्होंने योजना बनाई कि पार्टी क्या जिम्मेदारी देगी और उसे कैसे निभाना है.”
महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस और विनोद तावड़े को हमेशा राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाता है. बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से लगातार इन दोनों नेताओं के नाम की चर्चा मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के तौर पर होती रही है.
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक संदीप प्रधान कहते हैं, ”विनोद तावड़े और देवेंद्र फडणवीस में कई चीजें एक जैसी हैं. हालांकि तावड़े मुंबई से हैं और फडणवीस नागपुर से, लेकिन अक्सर यह बात सामने आती रही है कि दोनों प्रतिद्वंद्वी हैं. दोनों समकक्ष हैं और दोनों की वाकपटु भी हैं. दोनों की पृष्ठभूमि संघ की है और दोनों छात्र आंदोलन से आते हैं. लेकिन विनोद तावड़े की पहचान गडकरी गुट के नेता के रूप में थी. और फडणवीस की पहचान गोपीनाथ मुंडे गुट के नेता के तौर पर थी.”
“2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद, तावड़े मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन यह पद देवेन्द्र फडणवीस को मिल गया. फडणवीस का पार्टी के वरिष्ठों से एक तरह का संघर्ष था. इसमें वे लोग भी थे जो पार्टी के लिए लगातार योगदान दे रहे थे. जिन नेताओं को फडणवीस ने किनारे कर दिया उनमें प्रकाश मेहता, खडसे, पंकजा मुंडे और तावड़े शामिल थे. लेकिन उस वक्त तावड़े कोई भी खुली प्रतिक्रिया देने से बचते रहे, टिकट कटने के बाद भी उन्होंने कभी अपनी नाराजगी जाहिर नहीं की.”
जबकि दूसरी ओर पंकजा मुंडे अक्सर अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी या नेता के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त करती रहीं. उन्होंने एक बार एक सार्वजनिक सभा में कहा था कि लोगों के मन में मैं ही मुख्यमंत्री हूं. संदीप प्रधान कहते हैं, “हालांकि, विनोद तावड़े ने ऐसा कुछ भी करने से परहेज किया और इसका लाभ भी उन्हें मिला.”
बीबीसी मराठी से बात करते हुए विनोद तावड़े से जब देवेंद्र फडणवीस से राजनीतिक मुक़ाबले के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ”लोगों के बीच इस बात की चर्चा होती है जबकि हमारी आपस में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है.”
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‘महाराष्ट्र की राजनीति में आने की कोई इच्छा नहीं’
हमने विनोद तावड़े से बीजेपी में उनकी मौजूदा स्थिति और महाराष्ट्र में उनके मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही चर्चाओं के बारे में बात की.
बीबीसी मराठी से बात करते हुए विनोद तावड़े ने कहा, ”जो व्यक्ति महाराष्ट्र से दिल्ली आता है उसका मन दिल्ली में कम और महाराष्ट्र में ज़्यादा लगता है, लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं है. मेरी सोच है, ‘ओनली राष्ट्र, नो महाराष्ट्र’. इसी वजह से राष्ट्रीय स्तर पर मुझे काम करने और सीखने का मौका मिल रहा है. बिहार जैसे चुनौतीपूर्ण राज्य ज़िम्मेदारी है. पिछले विधानसभा में जिस सीटों पर हारे हैं, उन पर काम करना है. प्रधानमंत्री जी के सानिध्य में मन की बात जैसे कार्यक्रम में काम करने का मौका मिला. अनुभव मिल रहा है और मैं बहुत सारी चीज़ें सीख रहा हूं.”
मुख्यमंत्री पद के लिए नाम की चर्चा और इस पद के लिए महत्वाकांक्षाओं के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “जब भी महाराष्ट्र आने की इच्छा होती है तो ऐसी खबरें आ जाती है. लेकिन मेरी राज्य की राजनीति में शामिल होने की बिल्कुल इच्छा नहीं है.”
महाराष्ट्र में ऐसी भी चर्चा चल रही थी कि तावड़े को उत्तर मुंबई से पार्टी चुनाव मैदान में उतार सकती है. लेकिन उन्होंने बीबीसी मराठी को जानकारी थी कि वो लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे.
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तावड़े ने अपनी ज़िम्मेदारी के बारे में बताते हुए कहा, ”बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव है. मेरी प्राथमिकता वहां बीजेपी का मुख्यमंत्री बनवाना है.”
2019 में बीजेपी के विधानसभा टिकट काटे जाने के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, ”मैं विद्यार्थी परिषद के समय से ही काम कर रहा हूं. जब पार्टी ने मुझे टिकट दिया तो मुझे खुशी हुई.”
“उस समय किसी का टिकट काटा गया था. इसलिए किसी अन्य को मौका देने के लिए मेरा टिकट कटा. लेकिन अगर आप वफ़ादार रहेंगे तो पार्टी आपके साथ न्याय करेगी.”
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‘शिक्षा मंत्री की अपनी डिग्री’ का विवाद
2015 में जब विनोद तावड़े खुद उच्च शिक्षा मंत्री थे तो विपक्ष ने उन पर शैक्षणिक योग्यता ग़लत बताने का आरोप लगाया था. तावड़े की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाते हुए कहा गया कि उनकी डिग्री पुणे के ज्ञानेश्वर विश्वविद्यालय की है और यह विश्वविद्यालय सरकार से मान्यता प्राप्त नहीं है.
विपक्ष का दावा था कि विनोद तावड़े की शिक्षा सिर्फ़ 12वीं तक है और उनकी डिग्री फ़र्ज़ी है. उस वक्त कांग्रेस ने उनसे इस्तीफ़े की मांग की थी. विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया था कि उन्होंने चुनाव आयोग को हलफ़नामे में जो जानकारी दी है वह भ्रामक है.
इस बीच, विनोद तावड़े ने बताया था कि उनकी डिग्री ज्ञानेश्वर विश्वविद्यालय की है और चूंकि उन्होंने हलफ़नामे में यह जानकारी नहीं छिपाई, इसलिए उन्होंने किसी को गुमराह नहीं किया.
1980 में, विनोद तावड़े ने इंजीनियरिंग की डिग्री के लिए पुणे के ज्ञानेश्वर विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया था. यह पाठ्यक्रम अंशकालिक अध्ययन और इंटर्नशिप कार्यक्रम था.
उन्होंने बताया कि उन्होंने यह डिग्री 1984 में पूरी की थी. तावड़े ने उस समय यह भी स्पष्ट किया था कि छात्रों को बताया गया था कि इस पाठ्यक्रम को मान्यता हासिल नहीं है.
मनोहर जोशी इस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति थे. इस मुद्दे पर कुछ लोगों के कोर्ट में जाने के बाद कोर्ट के आदेश पर उक्त कोर्स को बंद कर दिया गया.
विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि जब वह स्कूली शिक्षा मंत्री थे तब उनके विभाग से स्कूल उपकरणों की ख़रीद के लिए 191 करोड़ रुपये के अनुबंध में अनियमितताएं पाई गईं. उस समय उस काम को रोक दिया था.
2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद, केंद्रीय गृह विभाग ने केंद्रीय और राज्य सरकार के मंत्रियों को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इस पर एक सख़्त गाइडलाइंस जारी किया था. इसमें मंत्री पद स्वीकार करने के बाद कोई भी लाभ का पद न रखने का प्रावधान था. लेकिन मंत्री बनने के बाद विनोद तावड़े ने एक साल तक पांच कंपनियों के डायरेक्टर पद से इस्तीफ़ा नहीं दिया था.
इसलिए केंद्र सरकार के नियमों के उल्लंघन का आरोप भी उन पर लगा और तावड़े को पार्टी के अंदर सफ़ाई भी देनी पड़ी.
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मुख्यमंत्री पद के दावेदार या कुछ और है इरादा
विनोद तावड़े को 2019 के बाद महाराष्ट्र में मौका नहीं मिला, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें पार्टी में कई बड़े मौके मिले और वहां उनका प्रमोशन देखने को मिला.
भाजपा ने हाल ही में लोकसभा के लिए 195 उम्मीदवारों की सूची की घोषणा की. विनोद तावड़े ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित चुनाव लड़ने वाले महत्वपूर्ण नेताओं की सूची की घोषणा की.
महाराष्ट्र की वर्तमान राजनीति को देखते हुए राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि विनोद तावड़े के अंदर भी कुछ अच्छाइयां और कुछ ऐसे पहलू हैं जिनकी आलोचना भी होती है.
बीजेपी की राजनीति को लंबे समय से देखने वाली वरिष्ठ पत्रकार मृणालिनी नानिवडेकर कहती हैं, ”विनोद तावड़े बीजेपी में संघ परिवार से आए थे और जो लोग संघ से आते हैं वो बीजेपी में महत्वपूर्ण हैं. हम कह सकते हैं कि तावड़े को उनकी पृष्ठभूमि का फ़ायदा मिला. जब भाजपा सत्ता में नहीं थी तब विनोद तावड़े विपक्ष के नेता थे. जब वह विपक्ष में थे या जब आप सत्ता में नहीं थे तब उन्होंने पार्टी संगठन के लिए महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों को संभाला था. उस समय पार्टी ने एक वरिष्ठ नेता को किनारे कर विपक्ष के नेता का पद उन्हें दिया था.”
“बीजेपी की एक और समस्या यह है कि उन्हें हमेशा मराठा नेतृत्व की आवश्यकता महसूस हुई है. तावड़े के लिए सौभाग्य की बात है कि वह मराठा समुदाय से हैं और यह उनके लिए एक प्लस है. लेकिन दबी जुबान में यह चर्चा या आरोप था कि मंत्री पद पर रहते हुए उन्होंने सभी घटकों को साथ नहीं लिया.”
बहरहाल, पिछले साढ़े चार वर्षों में, तावड़े ने भाजपा पार्टी के शीर्ष नेताओं का भरोसा हासिल किया है और दिल्ली में अपनी मौजूदगी स्थापित की है. लेकिन अब लोकसभा और उसके तुरंत बाद महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद सवाल ये है कि क्या विनोद तावड़े दिल्ली में नजर आएंगे या फिर महाराष्ट्र में किसी बड़े पद पर नजर आएंगे.
विनोद तावड़े और मुख्यमंत्री पद की चर्चा एक महीने पहले भी हो रही थी. एक इंटरव्यू में जब विनोद तावड़े से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “ओनली राष्ट्र, नो महाराष्ट्र.”
वरिष्ठ पत्रकार संदीप प्रधान कहते हैं, ”किसी भी पार्टी में महासचिव का पद अहम होता है. साथ ही उन्हें कुछ राज्यों में सरकारें बदलने का काम भी दिया गया. उनके उदारवादी संगठनात्मक कौशल को देखते हुए पार्टी को उन्हें लगातार जिम्मेदारियां दे सकती हैं. इसके अलावा सुषमा स्वराज और अरुण जेटली जैसे नेताओं के असमय निधन से भी पार्टी में एक शून्य पैदा हुआ है. तावड़े एक संगठनकर्ता के तौर पर स्थापित हुए हैं. तावड़े के पास संगठन में काम करने का अनुभव भी है.”
संदीप प्रधान यह भी कहते हैं, “अगर राज्य की बात करें तो महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा समुदाय का दबदबा रहा है. तावड़े मराठा समुदाय के नेता हैं. इस वजह से उन्हें फडणवीस जैसी मुश्किलों का सामना नहीं करना होगा. वे डार्क हॉर्स साबित हो सकते हैं.”
“पिछले महीने पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने कहा था कि हमारा मुख्यमंत्री कोई भी हो सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि ‘महासचिव का पद बड़ा होता है. नरेंद्र मोदी की बीजेपी में नेतृत्व कौन संभालेगा ये तो नड्डा भी नहीं कह सकते.”
संदीप प्रधान कहते हैं, “ज़ाहिर है सरकार बनाने की स्थिति में महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कौन बनेगा, ये कोई नहीं बता सकता. लेकिन यह तय है कि मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश के मुताबिक काम करना होगा. और एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति को स्वीकार नहीं किया जाएगा. यह इससे भी ज़ाहिर होता है कि मोदी की पहली सूची में नितिन गडकरी का नाम शामिल नहीं है.”
महाराष्ट्र के राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि यह भी उतना ही सच है कि विनोद तावड़े के पास कोई बड़ा जनाधार नहीं है और ना ही वे जननेता के रूप में जाने जाते हैं.
प्रधान कहते हैं, ”कुछ नेता पार्टी में और कुछ पार्टी के बाहर अच्छा काम कर सकते हैं. किसी भी पार्टी में यह हमेशा बहस का विषय रहता है कि क्या जनता द्वारा चुने गए लोग पार्टी के संगठनात्मक कार्य से अधिक महत्वपूर्ण हैं. तावड़े भी जनता के बीच से ही चुने गए हैं.”
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