लोकसभा चुनाव 2024: मेरठ में बीजेपी के अरुण गोविल क्या अपनी ‘राम’ की छवि को भुना पाएंगे? – BBC News हिंदी
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महिलाओं के हाथों में फूल मालाएं खड़ी हैं, ‘जय श्री राम’ के नारों की आवाज़ें तेज़ होती जा रही हैं।
जैसे ही काफिला काफिला, गुजरात से लेकर गुजरात तक, महिलाएं फूल उगने लगती हैं। वो कुछ आगे ऑडी कार की सनरूफ से लेकर आउट डोर हैंड जॉइंट अरुण गोविल को गले तक पहने हुए हैं।
अरुण गोविल कुछ फूलों की आकृतियाँ हैं और महिलाओं की बाँहें दिखाते हैं, महिलाओं की इन फूलों को आँखों से लगाई जाती हैं।
भाजपा के उम्मीदवार और टीवी धारावाहिक रामायण में श्रीराम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल के चुनावी प्रचार में सांप्रदायिक भक्तिमय हैं।
कई महिलाएं कह रही हैं, ‘भगवान राम को टीवी पर देखा था, आज साक्षात् देख लिया।’
सबसे आगे 20 किमी दूर बिजौली गांव में हो रहे इस रोड शो में सबसे आगे भगवा झंडा लहराते युवा चल रहे हैं, उनके पीछे ‘जय श्रीराम’ का नारा लिखी टी- गहरे भूरे युवाओं की भीड़ है।
अरुण गोविल गांव में कहीं नहीं, बस हाथ हिलाते हुए, कुछ लोगों पर फूल के गहने दूसरे गांव की ओर बढ़े हुए हैं।
हमने कई बार अरुण गोविल के रोड शो को देखा। गोविल कहीं भी अपनी ऑडी कार से नहीं उतरे।
20-22 साल की उम्र के युवाओं से मैं सवाल करता हूं, इस बार चुनाव में क्या मिलेगा। एक के साथ कई उत्साही युवा प्रतिभाएं हैं- ‘मुद्दा-वुद्दा कुछ नहीं है, बस एक ही संभावना है जय श्री राम।’
देर रात तक एक बार फिर जय श्री राम का नारा लगता है और साथ ही योगी-मोदी जिंदाबाद का नारा भी है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नेटवर्किंग सीट पर बीजेपी ने अरुण गोविल को मैदान में उतार दिया है।
कौन से वादे कर रहे हैं गोविल?
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अरुण गोविल रामराज्य कंपनी का वादा कर रहे हैं।
अगर चुना तो रामराज्य के वादे को कैसे पूरा करेंगे, इस सवाल पर गोविल कहते हैं, “हमारी संस्कृति के साथ हम हैं, हमारी विरासत के साथ हम हैं और विरासत के साथ हम विकास करते हैं, यही रामराज्य है।” सभी को समान अधिकार मिले, महिलाओं को, पुरुषों को, सभी को समान अधिकार मिले, यही रामराज्य है।”
अरुण गोविल वैसे तो प्रतिद्वंद्वी हैं लेकिन मुंबई में रहने की वजह से उन्हें बाहरी प्रतियोगी माना जा रहा है।
अरुण गोविल कहते हैं, ‘मैं पिछले एक हफ्ते से युवाओं में हूं, मुझे यहां से भेजूंगा, मैं यहां लोगों के बीच ही काम करूंगा।’
नवीनतम में मुद्दे क्या हैं?
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कंपनियों के प्रमुख बाजारों में बेरोज़गारी, ग़रीबी, ग़रीबी और अख़बार जैसे विद्वानों ने स्मारकों को खारिज कर दिया है, एक दिग्गज कहते हैं, “इस बार चुनाव में कोई तलाश नहीं है, जब कोई बड़ा मिशन होता है तब बड़े मिशन को देखते हैं छोटे-छोटे स्थानीय समस्या देखने का अन्दाज़ कर देना चाहिए। इस बार बड़ा मिशन है भारत को दुनिया में टॉप पर पहुंचाना। देश में कोई लड़ाई, ग़रीबी या बेरोज़गारी नहीं है। देश में इस समय प्रगति हो रही है, जब आर्थिक प्रगति होती है तो थोड़ी बहुत अर्थव्यवस्था होती है।”
इसी दुकान में एक कर्मचारी तीन सौ रुपये रोजाना की दिहाड़ी पर काम कर रहा है। इस उत्तर प्रदेश में अकुशल जिले के लिए न्यूनतम वेतन 10275 रुपये प्रति माह से कम तय किया गया है।
अगर देश में किसान और गरीबी नहीं है, तो इस मजदूर को न्यूनतम वेतन से भी कम दिहाड़ी मिल क्यों मिल रही है, इस सवाल पर एक आम मजदूर की रोजना कमाई कम से कम 700 रुपये तक बताई गई है, ये मजदूर कहते हैं, ‘इतना वेतन देने के’ कारण आर्थिक हैं.’
मौजूदा भारतीय जनता पार्टी के एक अन्य समर्थक कहते हैं, ”मेरठ में अरुण गोविल को नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के काम पर बीजेपी को वोट देंगे.” देश में रामराज्य आना चाहिए। रामराज्य का मतलब यह नहीं है कि किसी एक धर्म या जाति को बढ़ावा दिया जाए, बल्कि रामराज्य का मतलब है अच्छा, यानी जो सब हमारे हैं, अपने हैं। जो राष्ट्रहित में काम कर रहा है वो महान है। अगर कोई राष्ट्र विरोधी कार्य कर रहा है तो वो हमारा दुश्मन है।”
बिजौली गांव के निर्वासित रोड शो में आगे-आगे चल रहे भाजपा समर्थक कहते हैं, ”सबसे बड़ा शिष्य जय श्री राम का ही है, बस नवीन की भक्ति में लगे रहो।” इस सरकार में जो काम हो रहा है, कभी नहीं हुआ, देश बहुत आगे पहुंच गया है।”
क्या कह रहे हैं मुस्लिम धर्मप्रेमी
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तीसरी में एक बड़ी आबादी मुस्लिम मस्जिद की भी है।
क्या अरुण गोविल मुस्लिम चट्टानों के बीच जाएंगे, उनका दिल जीतने का प्रयास करेंगे?
इस सवाल पर वो बेहिचक कहते हैं, ”दिल तो मुझे यहां किसी का नहीं मिलता.” ये तो लोगों को तय करना है कि मैं ठीक हूं या नहीं. अगर पार्टिया को कहा जाए कि यह आदमी ईमानदार है, ठीक काम चाहता है, तो वो मुझे जरूर वोट देगा। मैंने अपील की है कि हमें धर्म और जाति को वोट देना चाहिए, देश की प्रगति के लिए वोट देना चाहिए, देश की प्रगति होगी तो हमें लोकतंत्र की प्रगति होगी।”
यहां यूरोप के कई क्षेत्रों में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण स्पष्ट दिखाई देता है।
तीसरी के शाहपीर इलाक़े में जिन पुतलियों से हमने बात की, ज़्यादातर का यही कहना था कि सांप्रदायिकता उनकी सबसे बड़ी चीज़ है। वहीं कोई भी व्यक्ति सरकार के क़ानून व्यवस्था में सुधार करने और लक्ष्यों पर सख़्ती होने से ख़ुशी भी देख रहा है।
यहां एक मुस्लिम वोटर कहते हैं, ”मुसलमान अभी असमंजस में हैं. मुस्लिम मुगलों को देख रहे हैं, दूसरे मुगलों के बादल भी देख सकते हैं। अभी गठबंधन का इरादा है, लेकिन आगे किधर पता नहीं चलेगा।”
हालाँकि, मुस्लिम कलाकार अपने आप को अलग-अलग तरह से महसूस करते हैं।
अरुण गोविल अभिनेत्री के लिए भी क्या काम करेंगे?
इस प्रश्न में कहा गया है, ”ये नहीं कहा जा सकता कि मुसलमानों को पीछे छोड़ दिया गया है।” देश की प्रमुख हस्तियों में से एक की भी जोड़ी बननी चाहिए, देश की प्रमुख हस्तियों में से एक की भी जोड़ी होनी चाहिए, अपनी जगह एक जगह छोड़ दें अगर वो वास्तुकला की बेटियां हो जाएंगी, तो ऐसा नहीं होगा। दादी को भी शहीद हो जाना होगा।”
चुनौती कितनी बड़ी है?
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यूनिवर्सल की लहर पर सवार बीजेपी के अरुण गोविल से मुकाबला करने के लिए सामाजिक और जातीय समूहों को साधने की रणनीति पर काम कर रहा है।
समाजवादी पार्टी ने दो सीटों पर गठबंधन किया है, जिसके बाद अब अनिओन वर्मा को मैदान में उतार दिया गया है।
पार्टी को उम्मीद है कि बैट्समैन, दलित और मिनिएचर मोटोरोला की गोलकीपर्स को चुनौती दी जा सकती है।
टिकट काटने जाने से नाराज समाजवादी पार्टी के विधायक अतुल प्रधान अब पार्टी के उम्मीदवार उम्मीदवार नामांकित वर्मा का समर्थन करने की बात कर रहे हैं।
अतुल प्रधान कहते हैं, “तुम्हें क्या समझाना है, हम तो सहमत हैं, एक पद पर हैं, हमने हमेशा संघर्ष किया है।” हम समाजवादी आंदोलन और संघर्ष को आगे बढ़ाना चाहते हैं। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव जी भी मंच पर जाने के लिए तैयार हैं, मैं मूर्तिपूजक हूं।”
हालाँकि अतुल प्रधान फ्रैंक ने ये नहीं कहा कि वो पूरे दमखम के साथ अयोनि वर्मा के चुनावी प्रचार में उतरेंगे।
समाजवादी पार्टी का कहना है कि रणनीति के तहत पार्टी ने एक दलित उम्मीदवार को मैदान में उतारा है।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश चौधरी कहते हैं, ”पार्टी ने स्टेलिश स्टिमी सा और सबसे पहले घोषित दावेदारी को भोला वर्मा को उम्मीदवार बनाया है।” यहां मुस्लिम बड़ी साख में हैं और प्यारे वर्मा दलित समुदाय से आते हैं, पार्टी को उम्मीद है कि वो अपने वर्ग के सहयोगियों को जोड़ पाएंगे।”
समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता इसरार सैफी कहते हैं, “मुसलमानों की बड़ी शांति होने के बावजूद इस सीट पर प्रतियोगी उम्मीदवार को हमारी पार्टी ने इसलिए ही दावेदार बनाया है ताकि बीजेपी को चुनौती दी जा सके।”
वहीं, भोला वर्मा का दावा है कि वे सर्व समाज के साथ-साथ अपने दलित वोटर वर्ग का भी वोट मिल रहे हैं।
मेरठ नगर पालिका के पति योगेश वर्मा पूर्व विधायक हैं।
योगी वर्मा कहते हैं, ‘दलितों का सम्मान हमारे लिए सबसे बड़ी प्रतिष्ठा है, अखिलेश यादव समाज, दलितों और अल्पसंख्यकों को जोड़ने के लिए काम कर रहे हैं, ये हमारी सबसे बड़ी प्रतिष्ठा है।’
वफ़ादारों की ख़ामोशी
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भाजपा और गठबंधन के उम्मीदवार जहां ज़ोरो-शोर से मैदान में हैं, वहीं बहुजन समाज पार्टी खामोशी से चुनावी लड़ाई जारी है। पार्टी के दफ्तर पर सवाल है.
बहुजन समाज पार्टी के प्रभारी मोहित कुमार कहते हैं, ”बहुजन समाज पार्टी 2009, 2014 और 2019 की चुनाव में रेशमी से लड़की है.” बहुजन समाज पार्टी का कोर वोट उसके साथ है, पार्टी का वोट बैंक हमेशा पार्टी के साथ रहता है। केवल बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए हमारी ही पार्टी का वोट और स्थान हो सकता है। हमसे उम्मीद है कि हमारी पार्टी का वोट हमारे साथ बना रहेगा।”
मोहित कुमार का दावा है कि बीएसपी ने रणनीति के तहत देव व्रत को उम्मीदवार बनाया है।
वो कहते हैं, ‘वोटर ये तय करेगा कि कौन उम्मीदवार जीत रहा है। हम जमीन-जायदाद में हैं।’
हालाँकि, दलित चुनाव को लेकर अलग-अलग राय विधान बनाए जाते हैं। शहर की शेरगढ़ी बस्ती में सर्वाधिक आबादी निवास करती है।
यहां कांशीराम पार्क के बाहर बीड़ी पी रहे हैं 50 साल के एक व्यक्ति का कहना है, “इस सरकार में शानदार काम हो रहा है, सड़कें बन रही हैं, पानी आ रहा है, नाली की सफाई चल रही है, राशन मिल रहा है, इसलिए कुछ दलित भी सरकार का समर्थन कर रहे हैं, पहले हम वोट के साथ थे, अब नहीं हैं। जो हमारे लिए काम करना चाहता है हम उसके साथ हैं।”
बहुजन समाज पार्टी के कई समर्थक भी यहां नजर आ रहे हैं. उनका मानना है कि पार्टी का उम्मीदवार जीतें या हारें, इससे पार्टी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
ये समर्थक कहते हैं, ”हमारे लिए हमारी पार्टी सबसे अहम है, हम वोट के साथ हैं, वैसे ही हमारा वोट बनाने में ही क्यों ना चला जाए।” इन्वेस्टमेंट ग्राफ़ कुछ भी हो, हमें अपनी पार्टी से उम्मीद है और हमेशा बनी रहेगी।”
लेकिन यहां बड़ी आसानी से ऐसे लोगों की झलक दिखती है, जो साफ-सुथरी हैं. इसके पीछे कारण जाति ही है.
एक दलित बुज़ुर्ग कहते हैं, “हम दलित हैं, अंतिम वर्मा हमारी जाति से हैं, हमसे उम्मीद है कि वो आगे हमारे मुद्दे को चुनौती देंगे।” हम समाजवादी पार्टी के साथ नहीं हैं, अपने उम्मीदवार के साथ हैं।”
कई और लोग भी इसी तरह की राय रखते हैं. जाति यहां स्थानीय धार्मिक और धार्मिक ध्रुवीकरण पर हावी नजर आती है।
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स्थानीय स्थानीय पत्रकार रशीद ज़हीर कहते हैं, ”मुसलमानों और मुसलमानों का जातिगत गठजोड़ कभी-कभार युवाओं के विद्यार्थियों पर हावी हो जाता है।” समाजवादी पार्टी ने यहां पर बीजेपी को चुनौती दी है, अगर वो अपने साथियों को अपने साथ लेकर चलते हैं तो यहां बीजेपी को चुनौती मिल सकती है.”
खेल से जुड़े सामान बनाने के लिए संग्रहालय स्पोर्ट्स सिटी का नाम भी जाना जाता है।
सनकुंड पार्क के पास स्थित इलाके में खेल का सामान बनाने वाली कई फैक्टरियां हैं। यहां कैरम बोर्ड से लेकर क्रिकेट के प्रारूप तक बन रहे हैं। जिम का सामान बनाने की भी कई बड़ी फ़ैक्ट्रियाँ हैं।
यहां एक मजदूर काम कर रहा है, ‘हमारे पास काम तो है, नौकरी भी है, लेकिन बिजनेस की वजह से काम नहीं मिल रहा है।’
स्पोर्ट्स इंडस्ट्रीज़ विपुल गुप्ता कहते हैं, ‘स्पोर्ट्स रोज़ इंडस्ट्री की वजह से यहाँ घर पैदा हो रहा है, लेकिन जिस स्तर पर होना चाहिए वह नहीं हो सकता क्योंकि स्पोर्ट्स इंडस्ट्रीज़ का मुद्दा चुनाव का मुद्दा नहीं बन रहा है। ‘सरकारी ईज़ ऑफ डुइंग बिग का दावा करता है, लेकिन ज़मीन पर यह दिखाई नहीं देता है।’
व्यावहारिक रूप से ही सही मुद्दा सामने आ रहा है, लेकिन मूल्यों का मानना है कि उनका मतदान पर असर शायद ही हो।
रशीद ज़हीर कहते हैं, ”मेरठ और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सभी मुद्दे तब ख़त्म हो जाते हैं जब बड़े नेता यहां अहिंसा की बात करते हैं। बिजनेस पर अच्छा ही मुद्दा तो दिख रहा है, लेकिन चुनाव में इसका असर नहीं दिखता.’
(बीबीसी के लिए कलइंटरव्यू न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)
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