लोकसभा चुनाव 2024: बिहार की वो सीट, जहाँ जेडीयू के दिग्गज नेता ललन सिंह के सामने हैं एक ‘बाहुबली’ की बीवी – BBC News हिंदी
आमतौर पर लोग घर बसाने के लिए शादी करते हैं, लेकिन चुनावी लड़ाई के लिए शादी की जाए तो मामला अनोखा जरूर बन जाता है।
इसी शादी की वजह से बिहार की जिन पार्टी की सबसे ज्यादा चर्चा है, उनमें धार्मिक कंपनी की सीट भी शामिल है।
इस सीट पर मसूद ने कुछ ही महीने पहले जेल से ज़मानत पर बाहर आकर अशोक महतो की पत्नी अनिल देवी को टिकट दिया है।
जबकि नोएडा ने अपने अनंतिम राज्यसभा सदस्य राजीव रंजन सिंह नाइंटी ललन सिंह को एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतारा है।
ललन सिंह पिछले साल तक जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष थे. बीजेपी ने आरोप लगाया था कि साउदी की वजह से ललन सिंह को राष्ट्रपति पद से हटा दिया गया था.
इसके अलावा वर्ष 2000 में अशोक मराठा और बिहार के आसपास के इलाके, शेखपुरा, जमुई के इलाक़ों में भी ‘महतो गुट’ सक्रिय था, जो कि पिछड़े का समर्थन करता था।
बिहार में 20 साल पहले तक अगड़ी और पिछवाड़े की सेना के बीच कई खूनी संघर्ष हुए थे। इस संघर्ष में दोनों ही गुटों ने अपने-अपने विरोधी विरोधियों वाले समुदाय के कई लोगों की हत्याएं कीं।
कौन हैं अशोक महतो
अशोक महतो को साल 2001 में बेनतीजा जेल ब्रेक कांड में दोषी करार दिया गया था। इस जेल ब्रेक कांड में पुलिसवाले की भी हत्या कर दी गई थी।
बिहार में इस संघर्ष पर आधारित एक साल पहले मोशन पिक्चर वेब सीरीज ‘खाकी द बिहार चैप्टर’ भी प्रकाशित हो चुकी है।.
बिहार के हेरीलीगंज के पूर्व विधायक और अशोक महोथ के पूर्व विधायक प्रदीप महोथ के कहने पर अशोक महोथ जेल ब्रेक कांड में 17 साल की सजा काट चुके हैं।
उन्हें बंधक अदालत ने इस मामले में दोषी पाया था।
इसी मामले को लेकर अशोक महतो सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे, जहां से उन्हें ज़मानत पर रिहा किया गया है।
इसके अलावा अशोक महतो ने जो आरोप लगाया था, साक्ष्यों के अभाव में ऐसे मामले खोखले हो गए हैं।
इन गंभीर मुक़दमों की वजह से अशोक महतो चुनाव नहीं लड़ सकते थे। उन्होंने कुछ ही दिन पहले शादी भी कर ली जिसके बाद उनकी पत्नी इलिनोइस में हैं।
अशोक महतो का कहना है, ”मेरा भतीजा दो बार वारसलिगंज से विधायक रह रहा है.” राजनीति से मेरा पुराना रिश्ता कायम है. हम कम्युनिस्ट झंडा लेकर चल रहे थे. यह संयोगवश है कि शादी हुई और चुनावी लड़ाई का मौका मिला। मैं चुनाव नहीं लड़ सकता, लेकिन मेरी वोट जरूर जनता तक पहुंचेगी।
अशोक महतो की पत्नी दिल्ली के रेलवे अस्पताल में नौकरी कर रही थीं। उन्होंने नौकरी के लिए चुनाव लड़ा है।
शैतान देवी कहती हैं, ”मेरी शादी का घर, परिवार और समाज के लोग सबसे पहले हुए हैं। मुझे नहीं पता था कि चुनाव के बाद मेरी शादी हो गई। लेकिन पहले मैं भी सेवा कर रही थी और राजनीति भी सेवा का माध्यम है।”
इस सीट पर वैभव के दावेदार के तौर पर नोएडा के समाजवादी ललन सिंह भूमिहार से गोदाम रखे हुए हैं। भूमिहार वोटर्स का बड़ा प्रभाव माना जाता है।
ललन सिंह के लिए बहुत बड़ी चुनौती
साल 2014 में फुटबॉल सीट पर बाहुबली नेता माने जाने वाले भूमिहार नेता सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी ने ललन सिंह को हरा दिया था। उन चुनावों में नामांकन और बीजेपी एक-दूसरे से अलग हो गए थे।
यह भी एक संयोग है कि जिन दो ज़मीन के बीच में ज़मीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सीट सीधे तौर पर मुक़ाबले की है, उनमें से एक भूमिहार कम्यूनिटी से है, जबकि दूसरी ज़मीनी कम्युनिस्ट पार्टी से है।
ललन सिंह के अनुसार, “मुंगेर के लोग मानते हैं कि नीतीश कुमार विकास के प्रतीक हैं।” इसलिए सेना में कोई लड़ाई नहीं है. 4 जून को चुनाव नतीजों में बताया गया कि दल की जनता विकास के साथ है या नहीं। पेजतंत्र में जनता मालिक है, जनता सब बनाती है, वही कोसा करना है।”
ललन सिंह को नीतीश कुमार के बेस्ट आमिर माने जाते हैं. हालाँकि साल 2009-10 में ललन सिंह और नीतीश कुमार के बीच फासला भी बन गया था और ललन सिंह पार्टी से भी दूर हो गये थे.
माना जा रहा है कि साल 2022 में नामांकन और गुमनाम के बीच एकसाथ ललन सिंह की बड़ी भूमिका थी. इसके अलावा अलगाव में रहे ललन सिंह ने केंद्र सरकार और पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर जोरदार हमला बोला था.
कहा जाता है कि ललन सिंह को अपनी इस पुरानी भूमिका का कुछ नुक्सान भी पड़ सकता है, खास कर उन्हें बीजेपी समर्थक वोटरों की नाराज़गी भी झेलनी पड़ सकती है।
बीजेपी के ही एक स्थानीय नेता ललन सिंह का नाम भी ललन सिंह के लिए मुश्किल हो सकता है.
जिस अगड़ी जाति के वोट पर ललन सिंह की वैकेंसी टिकी हुई मानी जाती है, सबसे बड़ी नुक्सान बीजेपी वाले ललन सिंह आ सकते हैं।
खबरों के मुताबिक बीजेपी नेता ललन सिंह इस चुनाव में दावेदारों के तौर पर दावेदार हो सकते हैं.
बीजेपी के ललन सिंह का आरोप है कि बीजेपी के नेता ललन सिंह प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर वोट मांगते हैं और बाद में अपना विरोध करते हैं.
प्रशिक्षण के स्थानीय निवासी और भाजपा समर्थक विनोद कुमार सिंह कहते हैं, “यहाँ लोग भाजपा को लेकर समर्थन का समर्थन कर रहे हैं। यहां बस दो ही पार्टी है. कार्यकर्ता अस्थमा ज़रूर हैं, क्योंकि इनमें से कोई पूछ नहीं रहा है।”
प्रशिक्षण के दिलचस्प नतीजे
धरहरा के अमर कुमार सिंह कहते हैं, “यहाँ पुस्तकालय और विवाह भवन का वादा किया गया था। क्या हुआ, क्यों पूरा नहीं हुआ, हमें मना नहीं किया, लेकिन हम किसी का समर्थन नहीं करते। नाराज़गी भी है तो भी ललन सिंह (जेडीयू) को ही वोट देंगे।”
13 मई को वोट सीट पर वोटिंग के चौथे चरण में वोटिंग होती है। असोसिएशन सीट का इतिहास भी बहुत ही रोचक है। गंगा के किनारे बसा यह इलाक़ा किसी ज़माने में कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था।
लेकिन साल 1964 में समाजवादी नेता मधुकर रामचन्द्र लिमये (मधु लिमये) की जीत इस सीट पर पूरे देश में रिपब्लिकन पार्टी ने ला दी थी।
मधु लिमयेफिल्म साल 1967 की पसंद में भी इसी तरह की सीट से सोनम की तलाश थी।
बाद में वर्ष 1977 में अध्यापिका से श्रीकृष्ण सिंह भी जनदल के टिकट पर न्यूनमुन बने और वर्ष 1991 में सी क्रूज़ के ब्रह्मानंद मंडल भी चुनाव में सफल रहे थे।
बिहार सरकार के कहते हैं साल 1762 में नवाब कासिम अली खान ने मुर्शिदाबाद की जगह को अपनी राजधानी बनाया था।
नॉव ने शस्त्रागार की स्थापना कर स्थानीय लोगों को हथियार बनाने का प्रशिक्षण दिलवाया था। इसी परंपरा को बचाकर रखने वालों में आज भी शस्त्रागार में सैकड़ों ऐसे परिवार हैं जो हथियार बनाते हैं।
हाल के समय में बिहार के इस जिले में अवैध देसी बंदूकों के निर्माण के लिए अवैध हथियार का इस्तेमाल किया जाता है, जिसका इस्तेमाल अपराध में होता है। हथियार और इसके आसपास के इलाकों में कई बाहुबलियों के गढ़ भी माने जाते हैं।
क्या कहते हैं टीचर के लोग
पिछले पिछले दो दशक से मूल रूप से बिहार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री ही रहे हैं। इसके अलावा केंद्र की मोदी सरकार के भी दो पूरे होने के बाद सत्ता के कई इलकों में एंटी इंकंबेंसी यानि सत्ता विरोधी रुझान भी नजर आता है।
प्रशिक्षक शहर की पूजा मिश्रा संचालक हैं, “इलाके में साधन का अधिक प्रचार चल रहा है।” ललन सिंह ने इलाक़े के लिए ज़्यादा काम नहीं किया है।”
प्रोन्नति में तेजी से काम करने वाले सुमित राज के अनुसार- अध्यापिका का अभिप्राय अभी शांत है और अभी चुनावी प्रचार ठीक से नहीं हो रहा है, प्रचार में तेजी से जुटना टैब का सही पता लगना है।
नोएडा के ललन सिंह की व्यक्तिगत छवि को लेकर इलाक़े में आम तौर पर लोग प्रश्न चिह्न नहीं होते हैं।
सेना के कुछ गाँवों में हमें ऐसे भी मिले जो सरकार को लेकर अच्छे लोग थे। विशिष्टकर लोग बिजली के बिल को लेकर कथित तौर पर किए गए वादों को झूठा बता रहे थे।
गुरुवार 11 अप्रैल को क्रीड़ा निगम क्षेत्र के अजीमगंज गांव से ललन सिंह अपनी सभा से बाहर निकलकर ही थे कि यहां एक साथ कई महिलाओं की नाराज़गी देखने को मिली।
गांव की सुशीला देवी का आरोप है, ”जब गांव में बिजली का कनेक्शन दिया गया तो कहा गया कि 50 रुपये बिल आएगा, लेकिन 200 रुपये तक बिल आ गया. विधवा पेंशन के भी केवल 400 रुपये मिलते हैं, 400 रुपये में क्या होता है।”
इसी गांव के अरुण कुमार गुप्ता की भी एकदम खामोश नजर आ गई. उनका दावा है कि बिजली कनेक्शन देने के समय कहा गया था कि बीपीएल परिवार को 50 रुपये महीने का बिल चुकाना होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, लोगों के पास भी काम नहीं आया, हजारों रुपये का बिल चुकाना पड़ा।
साल 2019 के चुनावों के आँकड़ों के आधार पर देखें तो असेंबल सीटों पर 20 लाख वोटर हैं। साल 2008 के परिसीमन के बाद इस सीट पर भूमिहार वोटरों की भूमिका अहम हो गई।
हालाँकि भूमिहारों के अलावा साम्यिक सीट पर कुर्मी, कुशवाहा, वैश्य, यादव और मुस्लिम वोटर भी अच्छे साझेदार हैं।
यानी जातिगत अनुपात में इस सीट पर ललन सिंह की स्थिति में समानता दिखती है, लेकिन इस इलाके में ललन सिंह के लिए कई मुश्किलें भी मौजूद हैं.
Source link