मुख़्तार अंसारी: क्या है उनके परिवार का राजनीतिक मॉडल जो लगातार दिलाता रहा है चुनावी जीत – BBC News हिंदी
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मुख़्तार वकील की मौत पर उनके परिवार के राजनीतिक प्रभाव और भविष्य पर भी सवाल नीचे दिए गए हैं।
जहां ग़ाज़ीपुर में उनके बड़े भाई अनाधिकारिक समाजवादी पार्टी के टिकट मैदान में हैं, वहीं ग़ाज़ीपुर में उनके प्रभाव की दो सीटें हैं और ग़ाज़ीपुर से अब तक बीजेपी ने किसी उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी के दो युवा नेता सुहैब वकील और उनके चाचा समाजवादी पार्टी के सदस्य समाजवादी पार्टी के सदस्य हैं।
मुख़्तार अख्तर के दादा डॉक्टर मुख़्तार अहमद अख्तर देश के संघर्ष में गांधी जी के साथ देने वाले नेता के रूप में गए और 1926-27 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे।
उनके नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान 1947 की लड़ाई में उनके लिए शहीद हुए थे, जो उनके लिए नवाज़ थे।
ग़ाज़ीपुर में सप-सुथरी छवि रखने वाले और कम्युनिस्ट पोस्टर से आने वाले मुख़्तार के पिता सुभान साब्या साहिल स्थानीय राजनीति में सक्रिय थे।
तो ऐसी विरासत वाले वकील परिवार की राजनीति की बुनियाद क्या है और मुख्तार वकील के निधन के बाद उनका भविष्य क्या है?
कम्युनिस्ट पार्टी से हुई शुरुआत
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मुख़्तार वकील के भाई ऑफ़ज़ल वकील
एसोसिएटेड फैमिली की राजनीति दशकों से शुरू होती है।
पवन सिंह कहते हैं कि, “1967 और 1971 में ग़ाज़ीपुर से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के संस्थापक सरजू पांडे के रूप में पहली बार मोहम्मदाबाद से नेता बने और उनके शिष्य के रूप में पहचान बनाई गई।”
“अफ़ज़ल ने 1985 में मोहम्मदाबाद क्षेत्र की सीट पर पहला चुनाव जीता था। आज से 40 साल पहले अफ़ज़ल रिसर्च की एक कॉमेडी वाली छवि थी और उस समय मुख़्तार का बाहुबली का कोई फैक्टर नहीं था।”
पवन सिंह कहते हैं, “जब अफ़ग़ानिस्तान में पहली बार मुख़्तार के आपराधिक गुट की शुरुआत हुई और उस पर हत्या का पहला मुक़दमा 1986 में परिवार के गढ़ मोहम्मदाबाद के थाने में दर्ज हुआ। जैसे-जैसे मुख़्तार के अपराध का सूत्र स्थापित हुआ, वैसे ही परिवार का राजनीतिक प्रभाव भी बढ़ गया है।”
मुख़्तार का शानदार क्रिमिनल ग्राफ़
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अफ़सोस और मुख़्तार शोधकर्ता
गाज़ीपुर ज़िले के मोहम्मदाबाद थाने में दर्ज आपराधिक रिकॉर्ड के अनुसार, मुख़्तार अभियोजक पर कुल 65 मुक़द्दमे चल रहे थे। उन पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ इलेक्ट्रिकल क्रिमिनल एक्ट) और नेशनल एक्ट के तहत भी मामला दर्ज किया गया था।
साल 2005 में बीजेपी नेता कृष्णानंद राय की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी और कृष्णानंद के साथ कुल छह और लोग भी गाड़ी में थे. गाड़ी पर तकरीबन 500 की टंकी चढ़ गई, जिस दौरान सभी सातों लोग मारे गए।
मुख़्तार अख्तर भाजपा नेता कृष्णानंद राय हत्याकांड में 10 साल की सज़ा सुनाई गई थी।
पत्रकार पवन सिंह कहते हैं, “मुख्तार के खिलाफ़ आरोप को अपराध से ही पहचान मिली। मुख़्तार परिवार की पहली पहचान सिर्फ पॉलिटिकल की पहचान थी। लेकिन मुख़्तार के मानक और बड़े संगीन वर्ज़ों में नाम लग गए।”
“साल 1997 में जब वीएचपी नेता नंद किशोर रूंगटा की हत्या के मामले में मुख़्तार का नाम आया तो समसामयिक जांच के आदेश दिए गए। उस मामले में दो आरोपी और मुख़्तार सहयोगियों के सहयोगियों की आज तक अपराधी नहीं हो पाई है।”
“भाजपा नेता कृष्णानंद राय हत्याकांड में मुख्तार पर भाई साहब पर आरोप लगाया गया था कि विपक्ष ने हार का बदला लेने का आरोप लगाया था। तो इन हत्याओं का राजनीतिक रूप से इस्तेमाल किया गया और इन बड़े लोगों की हत्याओं में नाम आने के बाद एक टैब में उनकी रॉबिनहुड वाली छवि सामने आई। भी बनी.”
राजनीति में प्रवेश
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मुख़्तार रिसर्च के नाना और दादा की तस्वीरें
मुख़्तार रिसर्चर ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1993 में ग़ाज़ीपुर सदर सीट से चुनाव लड़ा और बहुत कम गरीबी से हारे। फिर से आधिकारिक शोधकर्ता सी पिज्जा छोड़ें में शामिल हो गए।
पत्रकार पवन सिंह का कहना है, ”बसपा ने मुख़्तार ने घोसी आम सीट से पहली बार अल्पसंख्यकों का चुनाव लड़ा, और उन्होंने कांग्रेस की काल्पनिक राय को टक्कर दी. लेकिन फिर भी मुख़्तार ने माओ विधानसभा से हारे. पैग़म्बरों के टिकटों से अपना पहला चुनाव जीता और इस तरह से मुआवज़े से उनकी कर्मभूमि बनी।”
पत्रकार पवन सिंह कहते हैं, ”आप परिवार का प्रभाव मऊ, ग़ाज़ीपुर, चंदौली के कुछ हिस्सों, आज़मगढ़ के कुछ हिस्सों में देख सकते हैं। 2009 में जब मुख़्तार अंसारी ने वाराणसी में भाजपा के दिग्गज नेता मुरली जोशी के चुनावी मुकाबले में जोशी महज़ 17,000 से जीत पाए।”
‘गरीबों के मसीहा’ की छवि के पीछे वजह
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उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार उमर रशीद कहते हैं कि समाजवादी पार्टी की राजनीति में आपराधिक छवि वाले बाहुबली नेताओं की अपनी पैठ जमाकर चुनाव आम बात है।
उमर का कहना है कि, “बाहुबली नेता के बारे में ऐसी सोच हो गई है कि वो नेता हमारे समर्थकों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं और इसी कारण से उनके विरोधी मुक़दमे दर्ज हैं। तो भूमिहारों में, ठाकुरों में, ब्राह्मणों में और कुछ इन सभी पहलवानों के उदाहरण अतीक अहमद, मुख़्तार वकील, राजा भैया, धनंजय सिंह, रमाकांत यादव, राजनेता सिंह, हरिशंकर तिवारी जैसे हैं।
मुख़्तार रिसर्च के जनाज़े में हमारी मुलाकात अजय यादव से हुई। वो पास ही के नागवां गांव से आए थे जो रिसर्च परिवार की ‘छावनी’ करता था।
एक बार गंगा में बाढ़ की वजह से तीन चार गांव कट गए और अजय यादव का दावा है कि जांच परिवार ने बिना पैसे के इन गांवों को फिर से बसाने के लिए अपनी जमीन दे दी।
वो कहते हैं, “जब से मुख़्तार रिसर्चर की मौत की खबर आई है, तब से हमारे गांव में खाना नहीं बन रहा है। सारे लोग मोहे हैं। ये ऐसे शख्सियत के लोग हैं।”
अजय यादव
इसे समझाते हुए उमर रशीद कहते हैं, “मुख़्तार विरोधियों के खिलाफ राजनीति करने वाले लोग भी सिर्फ अपने आपराधिक रिकॉर्ड का इस्तेमाल कर उन पर गंभीर हमले कर रहे हैं और उन्हें हिंदू विरोधियों से बचा रहे हैं।”
“कम्युनिस्ट पार्टी से राजनीति करते हैं ये परिवार ठाकुर, ब्राह्मण और भूमिहार बिरादरी के बाहुबलियों को सीधे टक्कर देते हैं जिससे इस परिवार के लोगों की सहानुभूति खत्म हो गई। इन आरोपों की वजह से गरीब, दलित और पिछड़े जाति के हिंदू समुदाय के लोगों को एक मसीहा बनाया गया” के रूप में देखते हैं।”
उमर कहते हैं कि ग़ाज़ीपुर में मुस्लिम आबादी महज़ 10 प्रतिशत है, इस तरह से वकील परिवार ने हिंदू बनाम मुस्लिम राजनीति के मॉडल को तोड़कर अपनी अलग पहचान बनाई।
उनका कहना है कि परिवार के संरक्षण का जो नेटवर्क था वह एक जाति या धर्म से परे था।
उधर, पत्रकार पवन सिंह कहते हैं कि, “चाहे अतीक अहमद हो, शहाबुद्दीन हो, या मुख़्तार अभियोजक हो, यह जासूसों का कहना है कि उनके अधिकांश लोगों को कोई बहुत आदर्शवादी नेता नहीं चाहिए। वो एक कब्रगाह नेता को पसंद करते हैं।”
लेकिन उमर रशीद का मानना है कि बीजेपी जब भी सत्ता में आती है तो वो अपनी राजनीति को ब्रांड बनाने के लिए मुस्लिम बबीली नेताओं के अपमान के उदाहरणों को प्रमुखों से अलग कर देती है। और पिछले पांच से छह संतों में हमने मुख़्तार शोधकर्ता और अतीक अहमद के नाम यही होता देखा है।
“दूसरी ओर राजा भैया जैसे बावली नेता हैं जो बौद्ध सरकार के शासनकाल में जेल में रहते थे, उनके आज दो विधायक हैं और वो भाजपा के समर्थक हैं। वहीं, मुख्ततार विरोधी बबीली नेता राजनेता सिंह जैसे नेता हैं जो वाराणसी की केंद्रीय जेल में रहते हैं।” 2022 में वाराणसी से अपनी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह को इंजीनियरों का चुनाव जितावा देते हैं।”
ओम प्रकाश राजभर और मुक्तार संगीत के विकल्प
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मुख़्तार वकील के बेटे अब्बास वकील ओम प्रकाश राजभर के साथ। मई पिक्चर 2022 की है.
मुक्तार अभियोजक के निधन पर योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष का बयान आया कि, ”जिन गरीबों की उन्होंने (मुख्तार वकील ने) मदद की, उनके सुख दुख में काम किया, वो गरीबों को अपना ईसा मसीहा दिखाते हैं।” ”
“जब कौमी एकता दल बना तब मैं उनके साथ था और तब हम मिल कर चुनाव लड़ रहे थे। ।”
रिसर्च परिवार के गैर मुस्लिम मतदाताओं में पहचान को लेकर पत्रकार उमर रशीद अपने अनुभव से नाराज होकर कहते हैं कि, ”2017 में जब मैं मुख्तार के बड़े बेटे अब्बास के वकील की घोसी विधान सभा में कॉन्सर्ट कवर कर रहा था तब मैंने राजभर बाहुल्य गांव में रिसर्च परिवार को बुलाया था इस बारे में पूछे जाने पर लोगों ने कहा कि बिजली जाने से लेकर, सभी समस्याओं का समाधान करने के लिए इस परिवार ने अपने सिस्टम को रखा है।”
“और क्योंकि वहां बैक स्क्वायर की संख्या ज्यादा है तो लोगों को एक लेजेरेटरी पॉलिटिकल फैमिली से जुड़ा हुआ दीदार नजर आता है। और वो वफादारी की शक्ल ले लेता है।”
उमर रशीद का मानना है कि अभियोजक परिवार ने राजभर को हर समर्थक का समर्थन देने से लेकर शुरुआती दौर में उनके साथ काम किया।
उमर कहते हैं, “मैंने सुना है कि मुख़्तार अभियोजक के बेटे अब्बास वकील ओम प्रकाश राजभर को चाचा बुलाते थे। जब 2022 में ओम प्रकाश राजभर अखिलेश यादव के साथ मिल कर चुनाव लड़ रहे थे तब उनके पक्ष में मुस्लिम समाज के लोग अच्छी तरह से हुए थे।” और तब बीजेपी ग़ाज़ीपुर जिले में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी।”
अंत में उमर कहते हैं, ”मुख्तार वकील ने ओम प्रकाश राजभर की जिंदगी में कितनी मदद की वो तो राजभर ही बता सकते हैं. ।”
शोधकर्ता परिवार का राजनीतिक भविष्य
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मुख़्तार शोधकर्ता अपनी बेटियों उमर और अब्बास के साथ
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार पवन सिंह कहते हैं कि लगभग दो दशक जेल में गुज़ारे गए मुख़्तार साहब को कहीं न कहीं एहसास था कि उन्हें मुक़दमों में सा होने वाला है तो उन्होंने अपनी राजनीति में पीछे रहकर अपनी अगली पीढ़ी से मुलाक़ात की शुरू हो गया.
मुख़्तार रिसर्चर ने अपने बेटे अब्बास रिसर्चर को अपनी सीट से मान्यता प्राप्त होने का मौका दिया।
अब मुर्तजा की मौत के बाद उनके छोटे बेटे उमर की शिकायत भी पूरी तरह से मीडिया के सामने आ गई है।
पवन सिंह कहते हैं, “उम्र के ताज़ा मेमोरियल से आपको लगा सकते हैं कि वो राजनीति में काफी तेज़ हैं।”
पवन सिंह का मानना है कि सबसे बड़े भाई सिबगत सवाल के बेटे सुहैब शोधकर्ता जो मोहम्मदाबाद के नेता हैं और मुख्तार वकील के बड़े भाई अब्बास वकील और छोटे भाई उमर के वकील हैं, यह नई पीढ़ी अब खानदान की कमान संभालने के लिए तैयार है।
2024 के चुनाव में कश्मीरी पंडित क्या हैं?
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मुख़्तार वकील के बेटे अब्बास वकील और उमर वकील
पत्रकार उमर रशीद का मानना है कि मऊ और घोसी क्षेत्र में ऐसे दो स्थान हैं जहां पर पत्रकारिता परिवार का सीधा प्रभाव पड़ता है।
वो कहते हैं, “जिन रेनॉल्ड्स में मुख़्तार रिसर्चर की मौत हो गई और उनसे जुड़े सवाल अब भी बन गए हैं। सोशल मीडिया के ज़माने में आम लोगों की राय भी नहीं है। तो वो वजह से उनकी दोस्ती में दोस्ती बनी रहेगी।”
“मुझे लगता है कि मुख़्तार वकील की मौत से लेकर रिसर्च परिवार को एक नया राजनीतिक जीवन मिल सकता है। लेकिन यह चुनाव का आदमी है, लोग देश के प्रधानमंत्री समर्थकों के लिए वोट देंगे, तो ये सहानुभूति की लहरें कितनी बड़ी होंगी और उनकी चुनावी जिताने की क्षमता को देखना होगा।”
लेकिन हमें मुख़्तार की मौत और उसके उभरते प्रतिद्वंद्वी नैरेटिव को समझने की भी कोशिश करनी चाहिए।
उत्तर प्रदेश में हाल ही में राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के बागी नेता पूजा पाल ने भाजपा के उम्मीदवार के रूप में क्रॉस वोटिंग करने के बाद कहा कि योगी सरकार को अपना एक वोट देने के लिए एक बहन अपने भाई को धन्यवाद दे रही है।
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मुख़्तार शोधकर्ता के सबसे बड़े भाई सिबगत टॉक
बता दें कि 2023 में बाहुबली नेता और 100 से ज्यादा मामलों में अपराधी अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की लाइव टीवी पर आपको तीन लोगों ने गोलियां मारकर हत्या कर दी थी।
अतीक पूजा पाल के पति बुजुर्ग पाल की हत्या के मुख्य आरोप थे।
और जब मुख़्तार वकील की मौत हुई तो पूर्व बीजेपी नेता कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय ने कहा कि, “योगी जी का आशीर्वाद है।”
जेल में बंद भाजपा नेता कृष्णानंद राय की हत्या का आरोप जेल में बंद मुख़्तार वकील ने लगाया।
पत्रकार उमर रशीद का कहना है, ”एक तरफ उत्तर प्रदेश सरकार का रुख स्पष्ट रूप से कह रहा है कि अतीक और अशर्फ़ दोनों के तीन लोगों की हत्या की गई और मुख़्तार के वकील की हार्ट अटैक से मौत हो गई, और दूसरी और इन दोनों बाहुबलियों की विरोधी योगी सरकार धन्यवाद कर रहे हैं और राज्य सभा चुनाव में मदद कर उन्हें जिता रहे हैं।”
तो 2024 के चुनाव में कौन सा राष्ट्रीयता का बोलबाला ज्यादा होगा और किसकी जीत होगी, आने वाला चुभेगा।
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