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मरही माता मंदिर से पहले ट्रेनों के भी थम जाते हैं पहिए, वन देवी के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था गहरी – Even the wheels of trains stop before Marhi Mata temple

मुंगेली। यहां से करीब 100 किमी दूर छत्तीसगढ़ के सतपुड़ा कहलाने वाले पहाड़ पर भंवरटंक स्टेशन है। यहां से आएं मां मरही माता मंदिर की महिमा इसलिए क्योंकि यहां के लिए सड़क ही नहीं है। दूर-दूर से रहस्यमयी हमले होते हैं।

द्वारा योगेश्वर शर्मा

प्रकाशित तिथि: बुध, 10 अप्रैल 2024 05:10 अपराह्न (IST)

अद्यतन दिनांक: बुध, 10 अप्रैल 2024 05:10 अपराह्न (IST)

मरही माता मंदिर से पहले मूर्ति के भी थे स्थान, वन देवी के प्रति शिष्य की आस्था गहरी

पर प्रकाश डाला गया

  1. चैत्र नवरात्र पर आश्रम की भीड़ शुरू
  2. वन देवी की प्रति आस्था गहरी
  3. मध्य प्रदेश सहित अन्य प्रदेश से पहुंंचते हैं अवशेष

नईदुनिया न्यूज, मुंगेली। यहां से करीब 100 किमी दूर छत्तीसगढ़ के सतपुड़ा कहलाने वाले पहाड़ पर भंवरटंक स्टेशन है। यहां से लगे वन देवी मां मरही माता के मंदिर की महिमा इसलिए क्योंकि यहां के लिए सड़क ही नहीं है। घातक के बाद भी दूर-दूर से आश्चर्यजनक हमले हुए हैं।

मंदिर बिलासपुर-कटनी रेललाइन के किनारे है। यहां हर रोज सैकड़ों एकल पैनलों पर खड़ी की जाती हैं। मंदिर से भनवारटंक रेलवे स्टेशन की कुछ ही दूरी है। अवशेष नष्ट हो गए हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए मंदिर समिति ने दो गार्ड रखे हैं। किसी भी लाइन पर जैसे ही ट्रेन आती है, वे यात्रियों को सावधान करते हुए रेलवे ट्रैक पार नहीं करते। ट्रेन के बाहर ही एस्केमेन्ट फिर से फ़्लैक पर नज़र आते हैं।

भँवरटंक से जाते हैं पैदल यात्री

दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे क्षेत्र में स्थित इस मंदिर तक साधारण सड़क मार्ग और रेल मार्ग से दोनों पहुंचा जा सकता है। मां की महिमा का अंदाज ऐसी ही बात कही जा सकती है कि यहां मूर्ति वाले की मूर्ति के सामने भी मंदिर का नजारा होता है। मंदिर में चैत्र नवरात्र को विशेष पूजा का शुभारंभ होता है। नौ दिनों तक होने वाली विशेष पूजा आरंभ में भारी संख्या में कलाकार शामिल होते हैं। मंदिर में मन्नत पूरी होने के बाद बलि चढ़ाने की परंपरा है, नवरात्र के नौ दिनों में इस पर रोक लग जाती है।

ट्रेन दुर्घटना के बाद स्थापित किया गया मंदिर

ज्ञात हो कि सन 1984 में इंदौर-बिलासपुर नर्मदा एक्सप्रेस रेल दुर्घटनाग्रस्त हो गयी थी। इसके बाद रेलवे और वन विभाग के कर्मचारियों ने मरही माता की मूर्ति को यहां विराजित किया था। फिर बनाया गया छोटे से मंदिर का निर्माण। मरही माता के आशीर्वाद से ही बिलासपुर-कटनी रेल मार्ग पर जंगल और पहाड़ी क्षेत्र भंवराटंक में दुर्घटना से रक्षा होती है। मरही माता की महिमा और यश को दिखाने के लिए नवरात्र में भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। मुंगेली, बिलासपुर समेत आसपास के जिलों के किले यहां आसानी से पहुंचते हैं।

अनंत तट बांध कर मांगते हैं मनौती

गौरेला-पेंड्रा-मरगही जिला और बिलासपुर के बीच भनवारटंक रेलवे स्टेशन है। जंगल के बीचों-बीच होने का कारण दुर्गम स्थल में से एक है। स्टेशन के पास ही है मरही माता का मंदिर। आस्था की गहराई के कारण मंदिर में हमेशा भीड़ लगी रहती है। वर्ष के दोनों नवरात्रों में ज्योति कलश की स्थापना कर पूजा-अर्चना की जाती है। यहां खोए हुए तट बांध कर मनौती मांगते हैं और पूरी तरह से दर्शन करते हैं।


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