भीमा कोरेगांव केस: छह साल जेल में रहने के बाद शोमा सेन को सुप्रीम कोर्ट से मिली ज़मानत – BBC News हिंदी
भीमा कोरेगांव-एल्गार काउंसिल केस में छह साल की जेल में बंद शोमा कांति सेन को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत मिल गई है।
कोर्ट ने ज़मानत देते हुए शर्त रखी है कि वह बिना स्पेशल कोर्ट को सूचित किए महाराष्ट्र से बाहर नहीं जा सकते हैं।
छह जून 2018 को शोमा सेन को पुणे पुलिस ने माओवादियों से लिंक रखने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
इसी दिन रोना विल्सन को दिल्ली से और किशोर धावले को मुंबई से, वकील सुंदर गाडलिंग और महेश अप्रैल को नागपुर से गिरफ्तार किया गया था।
शोमा सेन अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। बिल्डर के समय वो नागपुर की एआरटीएम यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी विभाग के प्रमुख थे।
वे महिलाएं, संप्रदाय और संप्रदाय के अधिकार के दस्तावेज पर लिखती रहती हैं। उनका लेख प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका में छपते रहे हैं।
वे ‘कामेती फ़ोर द रिवोल्यूशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक राइट्स’ के सदस्य हैं। वे मानवाधिकारों के क्षेत्र में काम कर रही हैं जिनमें कई अवशेष जुड़े हुए हैं।
उन्होंने ‘अत्याचार की शिकार’ महिला राजनीतिक बंदियों का आह्वान किया और उन्हें कानूनी सहायता दी।
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ
छवि स्रोत, एएनआई
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस अगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने शुक्रवार को शोमा सेन को जमानत दे दी।
इस ज़मानत के साथ ही शर्त रखी गई है कि शोमा सेन की विशेष अदालत को सूचित किया जाए कि महाराष्ट्र से बाहर नहीं जाएगा।
उन्हें हर समय फोन का ऑनलाइन रखना होगा और फोन पर जांच अधिकारी के फोन से संपर्क करना होगा ताकि उनकी जानकारी की जानकारी जांच अधिकारी के पास रहे।
कानूनी मामलों की वेबसाइट लाइव लॉ के अनुसार, बेंच ने पाया कि यूएपीए की धारा 43 डी (5) के अनुसार, शोमा सेन के मामले में रोक लगाने का आदेश लागू नहीं होता है।
बेंच ने यह भी कहा कि सेन ने कई आतंकियों पर हमला किया है और उनकी उम्र भी इतनी है।
कोर्ट ने छह साल तक उनकी जमानत पर ध्यान दिया और साथ ही इस बात को भी ध्यान में रखा कि इस मामले में अब तक सजा शुरू नहीं हो पाई है।
नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी इकोसिस्टम ने शोमा सेन की ज़मानत का विरोध नहीं किया।
अदालत ने अंतिम प्रश्न किया कि शोमा सेन की रिहाई क्यों होनी चाहिए? इसके जवाब में 15 मार्च को मोनस्टल ने कहा था कि “शोमा सेन की गर्लफ्रेंड अब दिवालिया नहीं है।”
एल्गार काउंसिल केस क्या है
पुणे पुलिस ने साल 2018 में एल्गर काउंसिल-माओ लिंकवादी केस दर्ज किया था।
पुलिस ने दावा किया, ”भीमा कोरेगांव में एक जनवरी, 2018 को हुई भीषण हिंसा के लिए एल्गर काउंसिल जिम्मेदार है. इसी संगठन ने एक दिन पहले हिंसा की थी पुणे के शनिवार सप्ताहांत में एक बैठक हुई थी. बैठक के अगले दिन जो हिंसा हुई तार इस मीटिंग से जुड़ते हैं। इसके पीछे बड़ी दोस्ती साज़िश थी।”
कंपनियों और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह के मौके पर साल 2018 की पहली जनवरी को एक समारोह आयोजित किया गया था जिसमें ये हिंसा भड़की थी.
इसके कुछ महीने बाद इस घटना से जुड़े मामले की जांच पुणे पुलिस ने शुरू की।
इस जांच में देश के विभिन्न राज्यों से संबंधित या उस अलगाव के करीब रहने वाले लेखकों, विद्वानों और प्रोफेसरों को गिरफ़्तार किया गया।
गिरफ़्तार के बाद पुलिस ने इस मामले में अन्वेषक की भी तलाश की।
17 मई को पुणे पुलिस ने यूपीए एक्ट के तहत धारा-13, 16, 18, 18-बी, 20, 39 और 40 के तहत नए आरोप लगाए।
दो साल बाद 2020 में ये केस नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी को ट्रांसफर कर दिया गया.
इस मामले में 24 जनवरी, 2020 को एक स्मारक दर्ज किया गया था।
इसमें 153-ए, 505 (1)बी, 117 34 के साथ यूपीए के सेक्शन 13, 16, 18, 18बी, 20 और 39 के अंडर-डिवीजन के आरोप जोड़े गए।
इस मामले में 10 हज़ार पन्नों की एंग्लो स्पेशल कोर्ट में फ़्रांस्ट ने सजा सुनाई है।
अभी भी जेल में कौन-कौन हैं
दूसरा धवले
इस मामले में अब तक कुल 16 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। इनसे कुछ को ज़मानत मिल गई है लेकिन ज़्यादातर अभी भी जेल में हैं। एक आरोप- स्टेन स्वामी की मृत्यु हो गई।
इस मामले में जो कलाकार बनाए गए, उनके खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया। यूएपीए जैसे सख़्त क़ानून के तहत आरोप लगाए गए।
इस केस में अभी भी एनैबल धावले, रोना विल्सन, हैनी बाबू, सुंदर गाडलिंग, रमेश गाइचोर, सागर गोरखे और ज्योति जगताप जेल में हैं।
नवजात धावले महाराष्ट्र के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और कवि हैं। वे मराठी में ‘विद्रोही’ नाम की एक पत्रिका भी प्रकाशित करते हैं। वे डेमो के अधिकार के लिए आवाज़ पोस्टर चल रहे हैं.
साल 2011 में उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया था और उन पर एक ‘आतंकवादी संगठन’ के सदस्य होने का आरोप लगाया गया था।
बाद में कोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया। उस समय उनके वकील सुंदर गाडलिंग थे, जो अब भीमा कोरेगांव केस में भी वकील हैं।
सुरन्द्रा गाडलिंग नागपुर में रहते हैं, मनोहर से वकील हैं और मानवाधिकार से जुड़े नन्हें फोटोग्राफर हैं। वे ‘इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीपुल्स लॉयर्स’ के भी शामिल हैं।
वे कार्यकर्ता भी हैं और कई अभियानों में शामिल हैं। एक वकील के अनुसार, उन्होंने यूएपीए और उनके पहले पुराने किराना सामान की दुकानें टाडा और पोटा के अस्त्रों की इलेक्ट्रॉनिक्स लड़कियाँ हैं।
धावले दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईंबाबा के वकील भी शामिल रहे हैं जिनमें माओ अनुयायियों से संबंध बनाए रखने के लिए गिरफ़्तार किया गया था। साईंबाबा को हाल ही में ज़मानत मिली है।
रोना विल्सन अब तक जेल में बंद हैं। विल्सन के छात्र विल्सन पॉलिटिकल बंदियों की रिहाई के लिए अभियान चला रहे हैं।
वे पिछले कई वर्षों से इस क्षेत्र के सबसे सक्रिय में से एक हैं। वे ‘कामेटी फ़ोर’ पोलिटिकल प्रिज़नर्स’ (सीपीपीपी) के भी सदस्य हैं।
वे जीएन साईंबाबा की मुक्ति और मुक्ति अभियान का भी संचालन कर रहे हैं। वे राजनीतिक दार्शनिकों की गिरफ़्तारी का विरोध कर रहे हैं।
किन्हें मिली ज़मानत
सुधा चौधरी
डेसेस साल बॉम्बे हाई कोर्ट ने गौतम नवलखा को इस केस में ज़मानत दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर, 2022 में उनकी विरासती सेहत को देखते हुए उन्हें मुंबई के घर में बंद रखने का फैसला लिया था।
इससे पहले गौतम नवलखा ने बॉम्बे हाई कोर्ट में नियमित ज़मानत के लिए याचिका दायर की थी। इस मामले में कोर्ट ने जून में स्मारक को नोटिस जारी किया था।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआइए) से नवलखा मिश्का ज़मानत याचिका पर जवाब मांगा था।
विशेष अदालत ने नवलखा को ज़मानत से इनकार कर दिया था। इसके बाद उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वहां उन्हें ज़मानत मिल गयी.
जुलाई 2023 में अरुण फ़ेरा और वर्नोन गोंसाल्वेस को ज़मानत मिली। करीब पाँच साल जेल में रहने के बाद दोनों को ज़मानत मिली।
इसके लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। इससे पहले हाई कोर्ट ने अपनी ज़मानत ख़ारिज़ कर दी थी।
इस केस में लेखक, प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे को 18 नवंबर, 2022 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने ज़मानत दे दी थी। वो दो साल तक जेल में रहे.
1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव में हिंसा हुई थी
झारखंड के फादर स्टेन स्वामी की ज़मानत मुलाकात से पहले इलाज के दौरान मृत्यु हो गई। फादर स्टैन राँची स्वामी के एक पादरी थे।
उन्हें भीमा कोरेगांव-एल्गार काउंसिल ने केस में माओवादी धर्मगुरुओं से संबंध बनाए रखने के आरोप में रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) के तहत गिरफ्तार कर लिया था।
83 साल के स्टेन स्वामी के भी स्वास्थ्य से जुड़ी कई बातें. जेल में रहते हुए उन्होंने कई बार वकील की याचिका खारिज कर दी।
यूनिवर्सल ने अपने पानी पीने के लिए सिपर की मांग का विरोध किया था।
फादर स्टेन की सेहत को देखते हुए कोर्ट ने मई 2021 में मुंबई के होली फैमिली हॉस्पिटल में उन्हें भर्ती करने का आदेश दिया था, लेकिन उनकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ और 5 जुलाई 2021 को स्वामी फैमिली हॉस्पिटल में ही उनका निधन हो गया।
इस मामले में अब तक जिन कलाकारों को ज़मानत मिलल है उनमें सुधा भारद्वाज भी शामिल हैं।
दिसंबर 2021 में उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट ने ज़मानत दे दी थी। डेमोक्रैट ने इसका विरोध करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
लेकिन अदालत ने स्मारक की याचिका को खारिज कर दिया और ज़मानत पर रोक लगा दी।
इस मामले में रॉबिन के कवि और लेखक वरवर राव को भी पुणे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी उम्र और खराब स्वास्थ्य के कारण जुलाई 2022 में नियमित ज़मानत दी थी।
कारीगरों के पोस्ट का दावा- कारीगरों पर हमला हुआ
छवि स्रोत, गेटी इमेजेज
भीमा कोरेगांव की घटना के बाद देश भर में कई विचारधाराओं का विरोध हो रहा था
अमेरिका की एक फॉरेंसिक फर्म ने दावा किया था कि भीमा कोरेगांव मामले में फादर स्टेन स्वामी को फंसाने के लिए हैकर्स की मदद से सबूत दिए गए थे।
वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, आर्सेनल कंसल्टिंग फर्म ने एक रिपोर्ट जारी की है।
इसके अनुसार, हैकर्स की मदद से स्टेन स्वामी के लैपटॉप में दस्तावेज तैयार किए गए थे, जिसे उनके खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता था।
अमेरिका के एक और साइबर वैज्ञानिक फर्म सेंटिनेलवन ने भी अपनी जांच में पाया था कि पुणे पुलिस ने कथित तौर पर कार्यकर्ता रोना विल्सन और वर्वर राव के सिस्टम (कंप्यूटर) पर आरोप लगाया था और इसमें सबूत की योजना बनाई गई थी, जिसके आधार पर इन एजेंसियों की गिरफ़्तारी हुई थी।
Source link