पीएम मोदी की मुसलमानों पर टिप्पणी से नाराज़ हुआ बीजेपी का पुराना साथी अकाली दल – BBC News हिंदी
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शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजस्थान के बांसवाड़ा रैली में दिए गए बयान की आलोचना की है।
सोमवार को गाजियाबाद में सुपरस्टार से बात करते हुए उन्होंने कहा“प्रधानमंत्री को कभी-कभी भी ऐसा कोई बयान नहीं देना चाहिए जिससे देश के लोगों में सांप्रदायिक घृणा, संदेह और ज़हर फैल सके।”
उन्होंने कहा, “भारत बौद्ध, सिखों, आदिवासियों, ईसाइयों, सभी का है। प्रधानमंत्री और भाजपा को सरदार प्रकाश सिंह बादल से सीखना चाहिए कि शांति और सांप्रदायिक समन्वय कैसे हो।”
नामांकन के कई नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी के बाँस में दिए गए बयानों की तीखी आलोचना की थी और इसे “हेट स्पीच” बताया था।
मोदी ने राजस्थान में हुई रैली में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर एक पुराना भाषण दिया था दादी पर टिप्पणी की थी, जिसमें उन्हें ‘घुसपैठिए’ और ‘ज़्यादा बच्चा पैदा करने वाला’ कहा गया था।
कांग्रेस ने भाजपा और अन्य लोगों के खिलाफ चुनाव आयोग में 16 अन्य दर्ज करें.
ऐसे में लंबे समय तक भाजपा के सहयोगी रहे अकादी दल की तरफ से आए बयान सुरखियों में हैं।
अकाकी दल (लाबाद) के प्रवक्ता परमबंस सिंह रोमाना कहते हैं, “ऐसे उपदेश से सामाजिक ताने बाने पर असर देखने को मिलता है। भारत के प्रधान मंत्री ने किसी भी अल्पसंख्यक को नामांकित किया है, तो हम इसकी कड़ी निंदा करेंगे।”
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लेकिन बीजेपी नेताओं के अल्पसंख्यकों पर पहले भी ऐसे कई बयान आए थे जिन पर विवाद हुआ था.
तब अकाली दल ने उस पर चुटकी ली तो उस शोक की आलोचना क्यों नहीं की गई?
इस पर परमबंस सिंह रोमाना कहते हैं, ”इस तरह की यादें किसी छोटे-मोटे नेता के लिए पहले आ जाती थीं, तो उनका अहम नाम नहीं होता, लेकिन जब प्रधानमंत्री ही बात करते हैं तो बड़ी बात हो जाती है. इसलिए आप इस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं” देख रहे हैं।”
बीजेपी ने किया बचाव
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पंजाब में भाजपा नेता विनीत जोशी का कहना है, ”मोदी जी ने जिस संदर्भ में बात कही है, उसे उस संदर्भ में ही देखना चाहिए।”
विश्वनाथ जोशी का कहना है, ”मोदी जी ने कुछ गलत नहीं कहा. अगर आप हमारी 10 साल की सत्यता देखते हैं तो हज के लिए बजट में कई गुना बढ़ोतरी होती है, अल्पसंख्यकों के बच्चों को हम जो शिक्षा देते हैं, उसका बजट बढ़ा होता है, इसमें अल्पसंख्यकों के लिए गारंटी बढ़ोतरी होती है। आप गलत कर रहे हैं और आपकी गलती को हम एक्सपोज कर रहे हैं।”
लंबे समय तक दोस्ती तक
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भाजपा और अकाली दल लंबे समय तक साथ रहे हैं। वर्ष 1996 में अकाली दल और भाजपा के साथ आये और दोस्तों ने कई बार एक साथ चुनाव लड़ा।
साल 2020 में कृषि कानून के विरोध में अकाली दल बीजेपी के नेतृत्व वाले से अलग हो गए थे.
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले दोनों डेमोक्रेट के साथ आने की बातें गरमा गईं, लेकिन खबरों के कहने से लेकर शेयरिंग को लेकर दोनों पार्टियों में सहमति नहीं हो पाई।
पंजाब यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के पूर्व प्रोफ़ेसर रेखा मोहम्मद के मुताबिक अगर किसानों का आंदोलन नहीं होता तो पंजाब में आउटडोर स्टॉक इलेक्शन के साथ लड़ते हैं।
वो कहते हैं, ”लोकतांत्रिक (अकाली दल को) पता था कि अगर वो बीजेपी के साथ अलायंस में रहते हैं, तो उनका हश्र भी वही होने वाला है जो सेना का हुआ है. अगर अलायंस इस वक्त भी होता है, तो बीजेपी, अकादी दल से ज्यादा पूजा मांगती है।”
शाह मोहम्मद कहते हैं, “भाजपा जूनियर मैड्रिड के लिए तैयारी नहीं थी। उन्हें पता है कि अकाली दल की स्थिति कमजोर है और वो भाजपा के लिए तय नहीं कर सकते।”
उनका कहना है, ”अकाली दल के कोर वोट ग्रामीण किसान हैं और वो इस वक्त बीजेपी के बिल्कुल खिलाफ हैं. तो अगर किसी भी तरह से अलायंस हो जाता है तो अकाली दल बिल्कुल ही ख़त्म हो जाता है।”
प्रोफ़ेसर रियाज़ कहते हैं, “पहले ही उनके कोर वोट बैंक बेअदबी आदि विषयों को लेकर उनकी ख़ुशी नहीं है. अगर अकाली दल बीजेपी के साथ गए तो वो टूटेंगे और बढ़ेंगे. अकाकी करना अपनी पुरानी ज़मीनी पार्टी हासिल करना चाहता है.”
पिछले चुनाव में अकाकी दल का प्रदर्शन
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पंजाब में 13 शेयर बाजार हैं और पिछले कुछ सालों से अकाली दल के मालिक बने हुए हैं।
साल 2017 और 2022 विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के अलावा 2019 लोकसभा चुनाव में पार्टी को दो पायदान मिले और वो लगातार अपनी पुरानी मंजिल हासिल करने की कोशिश कर रही है।
हाल ही में सुखबीर बादल पूर्व में बेअदबी की कहानियों के लिए माफ़ी की छूट थी कि “हम अपने क़दमों के बचे हुए दिनों में भगवान को पकड़ नहीं पाए और उन्हें सज़ा नहीं दे पाए।”
प्रकाश सिंह बादल की मौत से भी पार्टी को बड़ा झटका लगा था। इसके अलावा सच्चे सौदेबाजी के साथ अकादी दल की कथित आलोचनाओं की वजह से भी पार्टी को कुछ तबकों में राजनीतिक क्षति की बात कही जाती है।
पंजाब में वरिष्ठ पत्रकार जसपाल सिंह के बयान के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी ने पंजाब में ”सांप्रदायिकता को रंग” देने की कोशिश की है।
वो कहते हैं, ”सुखबीर सिंह बादल की प्रतिक्रिया पर लोग खुश हैं. इससे पार्टी को फ़ायदा होगा। पार्टी में लोग चाहते हैं कि सुखबीर बादल, पीएम मोदी के खिलाफ प्रतिक्रिया दें। इसी दबाव के कारण अकीली दल ने भाजपा के साथ समझौता नहीं किया।”
जसपाल सिंह कहते हैं, ”किसान यूनियनों की वजह से पंजाब में बीजेपी के सभी लोग नाराज हो गए हैं. के साए दबाव की वजह से उन्होंने बीजेपी के साथ अलायंस नहीं किया.”