तालिबान के स्कूल बैन से निराश अफ़ग़ान लड़कियां बोलीं- ‘जैसे हम काल कोठरी में रह रहे हों’ – BBC News हिंदी
एक और शिक्षा सत्र के लिए यूक्रेन की लड़कियों के खेल में तालिबान के प्रतिबंध के कारण बर्बादी बढ़ रही है।
अफ़ग़ानिस्तान की किशोर लड़कियाँ बीबीसी को बताती हैं कि वो ‘मानसिक रूप से मृत’ महसूस करती हैं।
प्राचीन काल में 12 वर्ष से अधिक आयु की लड़कियों की पढ़ाई पर प्रतिबंध लग गया और 900 दिन की आयु समाप्त हो गई।
तालिबान ने बार-बार नरसंहार किया कि इससे जुड़े मुसलमानों के हल होने के बाद बाकी हिस्सों पर प्रतिबंध हटा दिया गया। इन इस्लामिक में इस्लामिक “पाठ्यक्रम” भी शामिल है।
इस तीसरे साल जब इसी हफ्ते नए सत्र के लिए स्कूल खोले गए लेकिन किशोर लड़कियों का नामांकन अभी भी प्रतिबंधित है।
तालिबान के शिक्षा मंत्री से बीबीसी ने इस बारे में पूछा था लेकिन अभी तक उनका कोई जवाब नहीं आया है।
तालिबान के प्रमुख प्रवक्ता ने एक स्थानीय टेलीविजन चैनल को बताया कि ‘प्रतिबंध हटाने में कुछ विनाश और कमियाँ थीं।’
यूनिसेफ के मुताबिक, इस प्रतिबंध से करीब 14 लाख अफगानी लड़कियां प्रभावित हैं। दोस्ती में एक दूसरे की सहपाठी हबीबा, महताब और दोस्त, बीबीसी से बात की शामिल हैं।
12 महीने पहले उन्होंने उम्मीद जताई थी कि वो अब कमजोर पड़ रही है।
16 साल की महताब कहती हैं, “असली में जब हम मिलते हैं तो लगता है कि हम सिर्फ जिंदा हैं। आप हमें अफगानिस्तान में फिर से मौत कह सकते हैं।”
ऑक्सफ़ोर्ड का सपना देखने वाली अनाप-शनाप पत्रिका पर सहमति व्यक्त की गई है और कहा गया है, “मेरा मतलब है कि हम शारीरिक रूप से जीवित हैं लेकिन मानसिक रूप से मृत हैं।”
विश्वास विद्यालय में पढ़ाई
सितंबर 2021 में सबसे पहले लड़कियों को जेल से बाहर निकाला गया और फिर वापस जाने से रोक दिया गया। यही वह समय था जब तालिबान ने देश में सत्ता का कब्ज़ा किया था।
कार्यकारी उप शिक्षा मंत्री अब्दुल हकीम हेमात ने बाद में बीबीसी को बताया कि जब तक इस्लामिक और अफगानिस्तान की परंपराओं के मानक नई शिक्षा नीति नहीं बन जाती, तब तक लड़कियों को शिक्षाविदों की किताबों में पढ़ने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
माना जा रहा है कि मार्च 2022 में शुरू होने वाले शिक्षा सत्र में इस पर रोक लगाई जाएगी।
लेकिन, यूनिसेफ के एक अनुमान के मुताबिक, इसके दो साल बाद भी जैनब (बदला हुआ नाम) समेत तीन लाख 30 हजार लड़कियों ने इस मार्च में देशभक्ति स्कूल में दाखिला नहीं लिया।
कक्षा छह की ऑर्केस्ट्रा ज़ैनब और दोस्तों को लगा कि वे अपनी पढ़ाई जारी रखेंगी, लेकिन एग्जाम हॉल में उनके हेडमास्टर ने बताया कि वे नए सत्र में स्कूल नहीं लौटेंगी।
ज़ैनब अपनी क्लास की सबसे होनहार कारीगरी वाली जगह थीं, अब वो कहती हैं, “ऐसा लगता है जैसे मैंने अपने सपने को अंधेरी खोह में दिखाया है।”
ज़ैनब के पिता ने अफ़गानिस्तान छोड़ने की कोशिश की लेकिन अभी तक उन्हें कोई सफलता नहीं मिली है।
आधिकारिक तौर पर ज़ैनब के करीबी सरकार में शामिल होने का एकमात्र विकल्प है और उनके परिवार को वहां कोई असुविधा नहीं है।
उनके पिता कहते हैं, “यह स्कूल का विकल्प नहीं है। वे उन्हें केवल धार्मिक विषय ही पढ़ाएंगे।”
यूनिवर्सल वो में ट्रस्ट के तरीके से चल रही इंग्लिश क्लास में शामिल हैं। पिछले कुछ दिनों में तालिबान के प्रतिबंध के खिलाफ ऐसे कई चमत्कार शुरू हुए हैं।
ऑफ़लाइन कोर्स या अफ़ग़ानिस्तान के बच्चों के लिए दौड़ वाले बीबीसी दर्स के कार्यक्रम को देखने के लिए अपनी पढ़ाई जारी रखें। इनमें 11-16 साल की लड़कियां भी शामिल हैं, जिन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। पिछले साल संयुक्त राष्ट्र ने इसे ‘लर्निंग लाइफ लाइन’ कहा था।
अपनी बेटी को पढ़ना चाहते हैं ये लोग
लेकिन ज़ैनब और उनकी जैसी अन्य लड़कियाँ अन्य के कॉलेज से अधिक खुशकिस्मत हैं।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रीजनल चेयरमैन समीरा हामिदी के अनुसार, जब परिवार के लिए सामी खाद्य पदार्थ के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जैसा कि पूरे अफगानिस्तान का हाल है, तो ऐसे में अपनी बेटी के लिए ऑनलाइन शिक्षा “प्राथमिकता” में नहीं होती है।
वह चेताती हैं कि अफगानिस्तान की ज्यादातर लड़कियों का फ्यूचर ब्लैककट हो सकता है क्योंकि लड़कियां इन की जल्दी ही शादी कर देती हैं और हिंसक शादी में महिलाओं को कानून की रक्षा के लिए कानून द्वारा रद्द कर दिया जाता है क्योंकि उनकी जिंदगी और खतरे में पड़ जाती है।
और सिर्फ यही नहीं कि 13 साल की लड़कियों को स्कूल से महरूम कर दिया जाता है। बल्कि बीबीसी ने पाया कि तालिबान ने छोटी उम्र की लड़कियों पर भी प्रतिबंध लगा रखा है, जो जवान दिखती हैं।
नाया (बदला हुआ नाम) महज 11 साल की हैं लेकिन उनके घर राज्य कंधार में वो अब स्कूल नहीं जा पा रही हैं।
उनके पिता कहते हैं कि सरकार ने उन्हें एक तरह से “त्याग” दिया है क्योंकि वे अधिक उम्र के दिखते हैं।
उनके पिता कहते हैं, “वे औसत से बड़ी हैं और यही कारण है कि सरकार ने उनसे कहा कि वे स्कूल नहीं जा सकेंगी। उन्हें हिजाब पहनना होगा और घर पर रहना होगा।”
उन्हें इस सरकार के संस्थापक में बदलाव की बहुत उम्मीद नहीं है, लेकिन वो एक बात पर जोर देना चाहते हैं- तालिबान के प्रतिबंध का अफगानिस्तान के लोग समर्थन करते हैं, यह “पूरी तरह की झूठ” है।
उन्होंने कहा, “अफगानों और पाकिस्तानों पर यह पूरी तरह से गलत आरोप है कि वे अपनी बेटी को नहीं पढ़ना चाहते हैं, बल्कि यह मामला बिल्कुल उल्टा है।”
उनका कहना है, “ख़ासकर कंधार और अन्य पश्तून प्रांतों (जहाँ पश्तून लोग रहते हैं) में लोग अपनी बेटी को शिक्षा के लिए प्रशिक्षण और विश्वविद्यालय में प्रस्थान को तैयार करते हैं।”
महिलाओं पर और भी प्रतिबंध है
हालाँकि शिक्षा पर रोक ही इकलौता मामला नहीं है जिसका सिर्फ सामना करना पड़ रहा है।
दिसंबर 2022 में महिलाओं ने कहा कि वो अब यूनिवर्सिटी में नहीं जा पाएंगी. इसके अलावा एक नियम यह भी लाया गया कि महिलाएं अपने मासिक धर्म से कितनी दूर रह सकती हैं, वे क्या पा सकती हैं, किसे जन्म दे सकती हैं और यहां तक कि स्थानीय पार्कों में जाने तक की मनाही कर दी गई हैं।
एमनेस्टी की समीरा हामिदी का कहना है कि उम्मीद है कि कॉन्फ़्रेंस स्कूल और ऑनलाइन ‘शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त किया जा सकेगा।’ लेकिन ये भी कहते हैं, “एक ऐसा देश जहां 10 लाख से ज्यादा लड़कियां शिक्षा के अधिकार पर प्रतिबंध झेल रही हैं, वहां ये प्रयास करने के लिए बहुत पर्याप्त साधन नहीं हैं।”
उनका कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय जगत की ओर से संगठित और दबाव वाली कंपनियों के साथ ही पूरे देश में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए व्यापक मदद की भी कमी है।
लेकिन जब तक ऐसा होता है हबीबा, महताब और खूबसूरत जैसी लड़कियों की चाहरदीवारी में ही रहना होगा।
18 साल की हबीबा का कहना है कि “यह बहुत मुश्किल है। ऐसा लगता है जैसे हम काल बिजनेस में रह रहे हैं।”
लेकिन वो कहते हैं कि उनसे अभी भी उम्मीद है। हालाँकि उनके दोस्त रोशनदान में हैं।
16 साल की दिलचस्प बातें कहती हैं, “इमानदारी से कहूं तो मुझे नहीं पता कि ऐसी सरकार में स्कूल खुलेंगे भी नहीं, लड़कियों के बारे में जरा सी भी समझ नहीं आता। वे लड़कियों को कुछ नहीं मानते।”
अतिरिक्त प्रस्तुति मेघा मोहन, मरियम अमन और जॉर्जिना पीयर्स
Source link