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छद्म धर्म निरपेक्षता का पालन करने वाले संगठनों द्वारा हिंदू सनातन संस्कृति का अपमान कब तक – How long will Hindu Sanatan culture be insulted by Organizations following pseudo secularism

ये वही लोग हैं जो देवी देवताओं की स्थिति को कभी टायलेट और कभी महिलाओं के अंतवस्त्रों पर सेक्सुअल हैं।

द्वारा नवोदित शक्तावत

प्रकाशित तिथि: सोम, 29 अगस्त 2022 09:28 अपराह्न (IST)

अद्यतन दिनांक: सोम, 29 अगस्त 2022 09:30 अपराह्न (IST)

ईसाई धर्म निरपेक्षता का पालन करने वाले द्वारा हिंदू सनातन संस्कृति का अपमान कब तक

मृत्युंजय लेखक

राजनीतिक स्तर पर लगातार मिल रही विफलता से कुंठित कथित नास्तिक और सांप्रदायिक धर्म निरपेक्षता का पालन करने वाले तत्वों ने अब गोलबंद होकर सनातन हिंदू संस्कृति और आस्था के सिद्धांतों का अपमान करना शुरू कर दिया है। हिंदू देवी – देवता, पर्व- उत्सव, विधान, आस्था का केंद्र, पारिवारिक संस्कृति कुछ भी आक्रमण से बचा नहीं है। ये आक्रमण केवल वैश्वीकरण नहीं है, वारन “सरतन से जुदा” जैसे पैशाचिक नारियों और मित्र लाल जैसे सामान्य नागरिकों की हत्या के रूप में आवेशपूर्ण तरीके से हमला किया जा रहा है।

झूठ फैलाया गया है कि अशिक्षित या अर्धशिक्षित लोग ही इस प्रकार के काम करते हैं लेकिन सत्य यह है कि इन लोगों का नेतृत्व कथित बुद्धिजीवी वर्ग के हाथ में है जो जे.एन.यू. जैसे कि लॉजिस्टिक से लेकर एंटी-ऑर्केलिटिक्स के उच्च स्तर तक पर रोक है। इन बुद्धिजीवियों को सनातन हिंदू संस्कृति और परंपराओं से घोर अपमान है और ये प्रतिदिन हिंदू समाज और उनकी आस्था के सिद्धांतों को अपनाने के लिए नए बिंदु नए तरीके अपना रहे हैं।

इस सप्ताह कुछ ऐसी ही घटनाएं प्रकाश में आई हैं जिसका कारण हिंदू समाज को आघात पहुंचा है। पहली घटना है हिंदू विरोधी विश्वविद्यालय की, जहां पितृ शांतिश्री डस्टीपदी पंडित समान नागरिक संहिता की व्याख्या करते हैं- भगवान शिव की जाति का वर्णन करते हैं और यही नहीं रुकें, उन्होंने हिंदू समाज की सभी महिलाओं को शूद्र कहा। अपने कथित कथन में उन्होंने ब्राह्मण समाज को भी नहीं निकाला और उसका भी अपमान किया। जब यह विश्व विद्यालय “हम लेकर नया आजादी” जैसे नारियों से आ रहा था उस समय यह सोच समझकर चित्रित किया गया था कि यह युवाओं के सामने कुछ है आदर्श प्रस्तुतीकरण और नए सकारात्मक विचार पोस्टगी लेकिन इन ज्ञान से संपूर्ण हिंदू समाज स्वयं को आहत महसूस कर रहा है।

एक ऐसा विश्वविद्यालय है जहां हिंदू संस्कृति को सीखने के लिए शोध के लिए जाया जाता है। कभी-कभी यहां के विद्यार्थी बशीबी के कारण इकट्ठे हो जाते हैं कभी शिक्षक लेकिन इस बार तो स्वयं ही बशीब के बैठक में आ गए हैं। यह बसुबी विश्वविद्यालय है जहां रामनवमी के मौके पर नॉनवेज खाना खाने वाले को लेकर छात्रों के दो गुटों में विवाद हो गया था। इस विवाद में 20 छात्र घायल हो गए।

साल 2020 में 5 दिसंबर को नकाबपोश लोगों ने नकाबपोश छात्रों से कहा था। वर्ष 2016 में लोकतंत्र में सत्तारूढ़ दल अफजल गुरु की फेंग की तीसरी बार आयोजित कार्यक्रम में देश विरोधी नारे लगाए गए थे। यह विश्वविद्यालय पहले ही भारत और हिंदू विरोधी ताकतों का मुख्यालय बन गया था और अब फादर सार्क ने आग में घी डाल दिया है।

किस पितृत्व का अध्ययन इतना अपरिपक्व है कि उन्हें यह नहीं पता कि हिंदू समाज का कोई भी देवी-देवता, किसी भी जाति का नहीं है वह केवल और केवल लोक आस्था है। सभी हिन्दू देवी-देवता भाव के भागीदार हैं। भगवान शिव की महिमा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है। भगवान शिव की महिमा वेदों में बताई गई है। उपनिषदों में भी शिव जी की महिमा का वर्णन है। रुद्रहृदय, दक्षिणामूर्ति, नीलरुद्रोपनिषद आदि उपनिषदों में शिव जी की महिमा का वर्णन है। किसी भी धर्मग्रंथ में भगवान शिव की जाति का उल्लेख नहीं है।

हिंदू समाज का हर व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या महिला या फिर वह किसी भी जाति, वर्ग या समुदाय का हो अपने आराधकों का अपनी विचारधारा के अनुसार पूजन-वंदन करता है। ऐसा प्रचारित किया जाता है कि मनुस्मृति ही हिंदू सनातन संस्कृति का संविधान है जबकि यह उनकी मूर्खता है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार हिंदू समाज में कहीं भी जातिगत व्यवस्था के कारण किसी भी प्रकार के भेद भाव का उल्लेख नहीं किया गया है। हिंदू समाज में जाति कर्म का आधार बनाया गया था लेकिन अब वोट बैंक का आधार बन गया है। यही कारण है कि आज हिंदू समाज और उनकी आस्था का किसी न किसी प्रकार से अपमान किया जा रहा है।

विलक्षण बुद्धिजीवियों का बिलबिलाना स्वाभाविक है क्योंकि आज अयोध्या में उनकी इच्छा के विपरीत भगवान राम का भव्य मंदिर बन रहा है, और काशी और मथुरा भी नई अंगड़ाई ले रहे हैं। इतिहासकारों ने अब तक जो इतिहास रचा है, देश की जनता का सुमधुर मिश्रण था उसका अब कलई खुल रहा है। इसी तरह के तथाकथित बुद्धिजीवियों के चरित्र जो हिंदू समाज को हमेशा जातियों में बंटा हुआ देखना चाहते हैं वे देवी देवताओं की जाति को खोज कर ला रहे हैं। ये वही लोग हैं जो कभी मां काली को क्रीड़ा फिल्मों और मां सरस्वती सहित देवी दुर्गा और अन्य देवियों की क्रीड़ा चित्रों को कला में शामिल करते हैं। ये वही लोग हैं जो देवी देवताओं की स्थिति को कभी टायलेट और कभी महिलाओं के अंतवस्त्रों पर सेक्सुअल हैं।

देश का जनमानस बहुत सी पुरानी बातों को जल्दी भूल जाता है अभी जब यूपी विधानसभा चुनाव चल रहे थे तब कुछ लोग हनुमान जी की जाति को भी खोज रहे थे। आगे भी वामपंथियों की इस प्रकार की खोज जारी रहेगी। अब समय आ रहा है कि हिंदू समाज ऐसे बुद्धिजीवियों, शिक्षाशास्त्रियों और दार्शनिकों का भी बहिष्कार करे।

हिंदू सनातन संस्कृति का अपमान करने में अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी का नाम भी शामिल हो गया है। बीजेपी से गठबंधन टूटने के बाद जब से नीतीश ने तेजस्वी यादव के साथ सरकार बनाई है अब वह भी अपने मुस्लिम तुष्टिकरण के रंग में रंग गए हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद वह अपने मुस्लिम मंत्री इसराइल मंसूरी को प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह तक ले गए, जबकि इस मंदिर में गैर मुस्लिमों का प्रवेश है। जिसके कारण सम्पूर्ण हिन्दू समाज आहत एवं आहत महसूस कर रहा है। हिंदू समाज और संत समाज का मानना ​​है कि इससे मंदिर की पवित्रता को बढ़ावा मिलता है।

इस घटना से क्षुब्ध बिहार सिविल सोसाइटी के अध्यक्ष चंद्र किशोर पराशर ने नीतीश कुमार समेत अन्य के खिलाफ सात के डकैत कोर्ट में परिवाद दर्ज कराया है। उन्होंने कहा कि नीतीश एक मुस्लिम मंत्री के साथ मंदिर में गए थे, ऐसे हमारा मंदिर अपवित्र हो गया है। इसलिए इनलोगो के विरुद्ध मूलनिवासी की जय। हिंदू धर्मावलंबियों का कहना है कि मंदिर में मंसूरी का प्रवेश एक धार्मिक कार्य था। जब यह स्पष्ट रूप से बताया गया कि गैर हिंदू को मंदिर में प्रवेश करना मना है तो उन्होंने यह कैसे किया?

इसी प्रकार तेलंगाना में हिंदू समाज के तीव्र विरोध के बाद भी राज्य सरकार ने अपने संरक्षण में, भारी पुलिस बल स्थापित करके, लगातार हिंदू समाज का अपमान करने वाले मुनव्वर फारुकी को अपने शो में शामिल किया। जब एक हिंदू नेता ने मुनव्वर फारुकी को उसी की भाषा में उत्तर दिया तो, सर तन से जुदा गैंग सप्ताहांत पर उतर आया और हिंदू नेता आज जेल में हैं जबकि फारुकी आराम से घूम रहा है। भव्य विश्वेश्वर शिवलिंग को फव्वारा दिखाने वाले और अलग-अलग भजनों से उनकी तुलना करने वाले सबा नकवी और तस्लीम रहमानी जैसे लोग मीडिया चैनलों पर आग उगल रहे हैं।

  • लेखक के बारे में

    वर्तमान में नईदुनिया डॉट कॉम में शेयरधारक हैं। पत्रकारिता में अलग-अलग नामांकन में 21 साल का दीर्घ अनुभव। वर्ष 2002 से प्रिंट और डिजिटल में कई बड़े दिन सिद्धांत


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