केंद्र सरकार ने फ़ैक्ट चेकिंग यूनिट के गठन की अधिसूचना जारी की – BBC News हिंदी
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- लेखक, बसंत पोद्दार
- पदनाम, क़ानूनी मामले के बीबीसी पत्रकार
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केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया पर क्वेश्चन की निगरानी के लिए फैकैक्ट चेक यूनिट के गठन की अधिसूचना जारी की है।
हाल ही में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के तहत इस प्रभावशाली स्टूडियो यूनिट का गठन किया गया है।
अधिसूचना के अनुसार, “केंद्रीय सरकार, सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के नियम-3 के उप-नियम (1) के खंड (ख) में दी गई शक्तियों का उपयोग किया गया, केंद्र सरकार के किसी भी व्यापार के संबंध में भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रेस सूचना ब्यूरो के अभिलेखीय साक्ष्य जांच इकाई के साथ केंद्रीय सरकार की साक्ष्य जांच इकाई के रूप में अधिसूचित किया जाता है।”
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बॉम्बे हाई कोर्ट
इस इकाई के गठन के खिलाफ़ बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिस पर अदालत ने 13 मार्च को पुनर्विचार कर दिया था।
केंद्र सरकार पिछले कुछ समय से इस इकाई के गठन की बात कर रही थी। लेकिन कोर्ट के आदेश से सरकार ने स्वतंत्र रूप से प्रभावशाली प्लांट यूनिट बनाने का निर्णय लिया।
इस प्रभावशाली फैक्ट्री यूनिट को 2023 में क़ानून में शामिल किया गया था।
सरकार का कहना है कि इसका मकसद साक्षात कलाकारों को रखा गया है, लेकिन इस इकाई को कानून में शामिल करने की कोशिश की गई है।
कई विद्वानों और विद्वानों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सरकार की आलोचना करने वाली मीडिया की स्वतंत्रता की संभावना को कुचलने की कोशिश की है।
हालाँकि, इस यूनिट की संवैधानिकता से जुड़ी याचिका अभी भी बॉम्बे हाई कोर्ट में खाली है। इससे पहले सरकार ने हलफ़नामा दिया था कि वो फ़ैक्टैक्ट प्लांट यूनिट नहीं बनाएगी।
इस साल 31 जनवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट के दो जजों की बेंच ने इस यूनिट की संवैधानिकता पर खंडित फैसला सुनाया था।
इलेक्ट्रॉनिक्स की डिलीवरी थी कि इस मामले में अंतिम फैसला आने तक इस नियम पर रोक लगा दी जाए।
आइए रसायन शास्त्र में ऐसे क्या बदलाव आते हैं और इंटरनेट पर इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री किस तरह से प्रभावित हो सकती है।
फ़ैक्टैक्ट इलेक्ट्रॉनिक्स इकाई
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साल 2023 में इंटरमीडियरी फ़ॉर्मेट और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड नियम, 2021 में संशोधन किया गया था।
इन नियमों में पासपोर्टरिज को नियंत्रित करना शामिल है, जिनमें मशाल सेवा, वेब होस्टिंग सेवा, फेसबुक, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया वेबसाइट और गूगल जैसे इंजन शामिल हैं।
डिजायन में कहा गया है कि केंद्र सरकार के पास एक प्रभावी प्लांट इकाई नियुक्त करने का अधिकार होगा। इस इकाई के पास केंद्र सरकार के कार्य से संबंधित किसी भी खबर को ‘फर्जी, गलत या अधूरा’ सही-गलत या अनमोल कथन की ताकत होगी।
इसे बिजनेसमैन इंजीनियर कामरा और एडिटर्स ऑर्गनाइजेशन्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने चुनौती दी है।
हालाँकि, समाचार वेबसाइट सीधे इंटरमीडिएट की परिभाषा के तहत नहीं आती है, क्योंकि इसमें वेब होस्टिंग सीकरी और सोशल मीडिया वेबसाइट आती हैं। इसका मतलब यह हुआ कि गलत खबर को इंटरनेट से हटाया जा सकता है।
अगर कोई खबर गलत निकली तो क्या होगा
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आईटी नियमों में कहा गया है कि इंटरमीडियरी को यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाना होगा कि उनके मंच पर चित्रित या अपलोड न किया जाए।
इस इंटरमीडियरी को 36 घंटे के भीतर उस जानकारी को आरंभ किया जा सकता है। यदि इंटरमीडियरी ऐसा नहीं करता है, तो उस पर कानूनी जुर्माना लगाकर सुरक्षा ली वापस ली जा सकती है।
अभी यह सुरक्षा वेबसाइटों और सेवा प्रदाताओं को दी गई है, जो अन्य लोगों की ओर से होस्ट की गई जानकारी पोस्ट करते हैं। यह व्यवस्था इसे अपनी वेबसाइटों पर पोस्ट की गई सामग्री के लिए सुरक्षा सेवाओं से संबद्ध करती है।
निगम के पास इंटरमीडिएट की ओर से नियुक्ति शिकायत सुरक्षा अधिकारी से संपर्क करने का विकल्प होगा।
यदि याचिका दायर करने वाले अधिकारी के निर्णय पर कोई सहमति नहीं है, तो वह याचिका अपील समिति से संपर्क कर सकता है। यह केंद्र सरकार की ओर से एक तीन सचिवालय समिति की नियुक्ति है।
इस नियम की क्यों हो रही है आलोचना?
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सरकार के इस नियम की सिविल सोसायटी के लोगों ने कड़ी आलोचना की है। संपादकों की संस्था एसोसिएशन गिल्ड ने एक बयान जारी कर सरकार से ये संशोधन वापस लेने की अपील की थी।
गिल्ड का कहना था कि सरकार का ये क़दम परेशान करने वाला है, क्योंकि यह सरकार के आधिकारिक सेंसरशिप से संबंधित है।
‘एक्सेस नाउ’ और ‘इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन’ जैसे 17 डिजिटल राइटर्स ने यह भी कहा है कि ये संशोधन संवैधानिकता की प्रस्तुति पर खरा नहीं उतरा, क्योंकि यह बोलने के अधिकार को खतरे में डालता है और इसका इस्तेमाल ‘आशामती को बढ़ावा’ के रूप में किया जाता है। के लिए किया जा सकता है.
उत्पादों की यह भी पेशकश की जाती है कि इस क़दम से राजनीतिक असमानता, पैरोडी या राजनीतिक विचारधारा को बनाया जा सकता है।
सरकार का क्या कहना है?
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सरकार ने इन पुराने भवनों का उद्धार किया है। उनका कहना है कि फेक न्यूज को गंभीर रूप से साझा करने से “सार्वजनिक संकट, सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो सकता है।”
सरकार का कहना है कि ये नियम किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या किसी की स्वतंत्रता पर संधि नहीं है। इसमें शिकायत निवारण तंत्र भी उपलब्ध है।
इसके अलावा, यह भी तर्क दिया गया है कि यूनिट केवल “मनगढ़ंत और ऐसे आधार पर रोकटोक पर रोक लगाती है जो सरकारी कागज़ात में दी गई विचारधारा और आंकड़ों की व्यक्तिगत व्याख्या से अलग हैं।”
सरकार की अपनी फैक्ट्री
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कई लोग प्रेस सूचना ब्यूरो के तहत आने वाली सरकार की अंतिम प्रभावी जांच इकाई की ओर से कुछ खबरों को फ़ायरजी अनाउंसमेंट के बाद आशंकित कर रहे हैं।
कई साहित्यकारों ने यह भी कहा है कि यह यूनिट बार-बार सरकार की आलोचना करने वाली कंपनी को ‘फेक’ बताती है।
बीबीसी ने इससे पहले इसे लेकर रिपोर्ट जारी की थी कि कैसे सरकारी फ़ैक्ट चेक एजेंसी ने आत्मघाती फ़ेक और शैतानी ख़बरें फैलाई हैं।
फैकैक्ट चेक वेबसाइट ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह संस्थापक प्रतीक सिन्हा का कहना है कि इस यूनिट का इस्तेमाल सरकार की छवि को चमकाने के लिए किया गया है।
उन्होंने यह भी कहा था कि पीएनबी के पास एक निर्धारित प्रक्रिया नहीं है, जैसा कि अक्सर अन्य प्रभावी चेकर्स के पास होता है। किसी भी चीज़ को ‘पूरा संदर्भ’ बिना सही या गलत बताए बताता है।
बॉम्बे हाई कोर्ट में अब तक क्या-क्या हुआ है?
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बॉम्बे हाई कोर्ट की शुरुआत से ही इस प्रभावशाली मॉल यूनिट में चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई चल रही है। 31 जनवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपनी संवैधानिकता पर खंडित निर्णय लिया।
जस्टिस गौतम पटेल ने प्रभावशाली कार्यशाला इकाई से जुड़े नियमों को असंवैधानिक बताया था। उनका मानना था कि ‘सरकार के कार्य’, ‘फर्जी’ और ‘भ्रामक’ शब्दों की परिभाषा नहीं थी।
उन्होंने कहा कि सरकार के कार्य में कोई पूर्ण सत्य नहीं है। उन्होंने कहा कि यह संशोधन सरकार के बारे में पूरी तरह से गलत सिद्धांत पर आधारित है।
यह सुनिश्चित करना कर्तव्य है कि नागरिकों को केवल ‘सही जानकारी’ मिले।
वहीं दूसरी ओर जस्टिस नीले गोखले ने इसे संवैधानिक बताया। उन्होंने कहा कि यह पता नहीं है कि लैपटॉप को हटाया जाए, बल्कि इंटरमीडियरी के पास डिस्केलमर के साथ चित्रांकन का विकल्प भी होगा।
उन्होंने कहा कि अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि यूनिट में क्या है. यदि बाद में पूर्व में कोई सामने आता है तो पीड़ित व्यक्ति अदालत का दरवाजा भी खटखटा सकता है। इस नियम को अनसुना, पैरोडी, आलोचना या विचार पर लागू नहीं किया जाएगा।
उन्होंने फ़ासले में लिखा, “यह सरकार है जो अपने कार्य के संचालन से जुड़े किसी भी सिद्धांत पर सही तथ्य प्रदान करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है।”
अब यह मामला तीसरे जज के सामने रखा गया है।
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