कुर्सी के लिए ‘सुशासन बाबू’ने लिया पलटासन का सहारा – Forchair Sushasan Babu took Support of Paltasana
नीतिश ने आज एक बार फिर वही राजद से हाथ मिला लिया है जिससे शासन काल को कभी वे खुद जंगल राज कहते थे।
द्वारा नवोदित शक्तावत
प्रकाशित तिथि: बुध, 10 अगस्त 2022 05:26 अपराह्न (IST)
अद्यतन दिनांक: बुध, 10 अगस्त 2022 05:31 अपराह्न (IST)
कृष्णमोहन झा
नीतिश कुमार 2004 में पहली बार बिहार की तबाही और भाजपा की गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री बने थे। तब वे पूर्वज राजद सरकार के पद पर बने रहे पथे अकुत और निरंकुश समाज के विरोधी तत्वों पर अलगाववादियों ने राज्य की जनता की नजरों में सुशासन बाबू बन गए थे लेकिन समय बताने के साथ ही सत्य में बने रहने के लिए उन्होंने सुशासन बाबू के रूप में सागौन अपनी साड़ी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाया। सिद्धांत और सिद्धांत आज उनके लिए कोई खोज नहीं है। नीतिश कुमार ने आज एक बार फिर वही राजद से हाथ मिलाया है, जो शासन काल को कभी खुद जंगल राज कहते थे।
यह निःसंदेह आश्चर्य की बात है कि नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड की ओर से भाजपा से कम होने के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री पद का जो गौरव मिला वह भी उनके अहं को विश्वास नहीं कर सका। इसमें गलती करने का जिक्र नहीं किया गया है कि 2013 में जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी की सहयोगी पार्टी के आधार पर उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने का फैसला किया था, तब भी उस जजमेंट से नाराज होकर उन्होंने राजग से 17 साल पुराने रिश्ते बनाए थे। एक संकेत में दिया गया था असली कारण नीतिश कुमार की अपनी महत्वकांक्षा थी। नीतिश कुमार ने इसके बाद विश्वास प्रसाद यादव के साथ समझौता कर लिया।
विश्वासपात्र प्रसाद यादव की पार्टी के साथ अपनी पार्टी का गठबंधन कर नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव लड़ा था और राजद की यात्रा से अधिक होने के बावजूद गठबंधन सरकार में उनके वरिष्ठता के कारण उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। लेकिन कुछ ही समय में उन्होंने ऑर्केस्ट्रा के साथ छोड़ कर एक बार फिर बीजेपी से हाथ मिलाया। मित्रता है कि उस समय वामपंथी यादव ने अपने इस पुराने मित्र को पलटूराम कह कर तंज कसा था, लेकिन राजनीति में मित्रता या शत्रुता कभी नहीं होती। विश्वास प्रसाद यादव के बेटे बचपन यादव और नीतिश कुमार मिलकर अब नई सरकार की मान्यता तय कर रहे हैं। उन्हें कांग्रेस और मार्क्सवादी मोर्चा समेत कुल 7 राजनीतिक विचारधाराओं ने समर्थन दे दिया है।
कल तक सत्ता का हिस्सा रही भाजपा राज्य विधानसभा में अब कृषक दल की भूमिका रहेगी। भाजपा नीतिश के इस कदम को प्रतिष्ठा का अपमान और जनता से विश्वास बता रही है। भाजपा ने नीतीश को याद किया कि भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक सुरक्षित रखा था, लेकिन उन्होंने भाजपा को धोखा देने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। दिशा नीति कुमार ने कहा कि भाजपा ने भाजपा को ही जिम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाया है कि भाजपा ने पिछले काफी समय से उन्हें केवल अपमान कर रही थी बल्कि दृढ़ संकल्प करने की साज़िश भी कर रही थी।
हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित नीति आयोग की बैठक में नीतीश कुमार की बीजेपी से अनुपस्थिति पर उनकी भारी दूरी के संकेत पर विचार किया जा रहा था। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में भी नीतीश कुमार शामिल नहीं हुए थे। अभी कुछ दिन पहले ही उनके पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामचन्द्र प्रसाद सिंह ने पिछले दस वर्षों में अपनी संपत्ति के मामले में जो नोटिस जारी किया था, उसमें उनके मुख्य पीठाधीश्वर रामचन्द्र प्रसाद सिंह की भाजपा से भाईचारा को माना गया था। जा रहा है.
मित्र हैं कि नीतिश कुमार की अनिच्छा के स्थान पर रामचन्द्र प्रसाद सिंह केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे। पार्टी से मिले कारण नोटिस में कहा गया है कि रामचंद्र प्रसाद सिंह को इतना कुपित कर दिया गया है कि उन्होंने अपने मठ से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने नीतीश कुमार पर तंज कसते हुए यहां तक कहा कि नीतीश सात जन्मों में भी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। बिहार में सत्य के स्थान पर वामपंथी यादवों की पार्टी राजद के बेटे युवा यादव खुशियों से फूले नहीं समा रहे हैं। नीतीश की बीजेपी से लड़ाई में राजद की तो लाटरी ही लग गई। विपक्ष है राज्य के गैट विधान सभा में राजद की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी थोथी ताकत और भाजपा के गठबंधन के कारण वह सत्ता सुख प्राप्त करने से भटक गई।
इसके पहले किले के साथ गठजोड़ कर के राजद को जब सत्ता में का मौका मिला था तब नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक वरिष्ठता का लाभ लेकर मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो गए थे। उनकी सरकार में युवा और तेज प्रताप यादव की पढ़ाई हुई थी। लेकिन नीति कुमार ने कुछ समय बाद पाला बादल को बीजेपी के साथ मिलकर गठजोड़ कर लिया और ऑर्केस्ट्रा पार्टी की भूमिका के लिए मजबूर कर दिया गया। नीतिश कुमार ने भले ही 8वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर रिकार्ड बनाया है, लेकिन यह रिकार्ड उन्हें किसी गौरवान्वित की मात्रा नहीं देता। 8 में 5 बार तो वे पाला मुख्यमंत्री बने रहे और आज जब वे राजद के समर्थन से एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई भी सफल नहीं हो गए तब भी दावा के साथ यह नहीं कहा जा सकता कि अब वे राजद के साथ हैं कभी नहीं छोड़ेंगे.
नीतिश कुमार ने कहा कि एक बार फिर से राजद के साथ गठजोड़ कर भाजपा को बिहार में सत्ता सुख से आरक्षण करा दिया है उनसे कई सवाल भी उठ रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में ऐसे पलटूराम साबित हुए थे, जहां सत्य सुख ही सर्वोपरि है, लेकिन भाजपा को भी यह सवाल खुद से पूछना चाहिए कि क्या। इसी तरह की राजनीति का सहारा नहीं लिया जाता।
ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार को भी शायद यही चिंता सताने लगी थी कि दिवंगत सबेर भाजपा बिहार में अपने प्रभाव में आने की कोशिश में कुछ भूमिकाएं निभा सकती है, इसलिए ऐसी स्थिति आने के पूर्व ही उन्होंने एक बार फिर से भाजपा से संबंध तोड़ कर राज किया था। के नेतृत्व वाले ने माइक्रोसॉफ्ट से गठजोड़ कर लिया। नीतिश कुमार को अब 164 दलों का समर्थन प्राप्त है जिसमें पार्टी के 44, राजद के 79, कांग्रेस के 19, कांग्रेस के 16, हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा के 5 और 1 घटक नेता शामिल हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि नीतीश कुमार की नई सरकार पहले से ही सबसे आसान बहुमत है।
कल तक वे हमले और भाजपा की जिस गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री थे, उन्हें तो मूल रूप से 124 बैच का समर्थन प्राप्त था। प्रश्न यह है कि क्या वे नई सरकार अपने मठ से चलेंगी या मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने के लिए उन्हें मठ के मठ को तरजीह देने के लिए मजबूर करेंगी। नीतिश कुमार ने शायद यह भूल कर दी है कि पिछली बार जब उन्होंने नीतीश समर्थकों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी तब सत्ता ऑपरेशन में पुत्रों की असहनीय घुसपैठ के कारण ही भाजपा की शरण में जाना पड़ा था। इस बार भी एक ही तरह के हस्तक्षेप के खतरों पर कैसे जुर्माना लगाया जा सकता है।
यह संभावना अधिक है कि कुर्सी पर बने रहने के लिए फ्लोरिडा से समझौता करने का विकल्प चुना जा सकता है। एक संभावना यह भी है कि आगे नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे युवा यादव को 2024 के चुनाव में नामांकन कर सकते हैं और प्रधानमंत्री पद के लिए संयुक्त उम्मीदवार बन सकते हैं। अभी यह मैन ले लिया है कि नीतिश कुमार के मन में ऐसी कोई शेयरधारिता हो सकती है।
वास्तविकता तो यह है कि कुर्सी पर रहने के लिए बार-बार पाला बदल कर वे बिहार ही नहीं बिहार के बाहर भी सामान्य रूप से अपनी खोई हुई हैं। 243 बिहार विधानसभा में किले की 44 मंजिलों के निचले हिस्से में जोड़ टूटकर वे राज्य के मुख्यमंत्री तो बन सकते हैं लेकिन जोड़- झारखंड की ‘कला’ में उनकी ये है मान्यता हक नहीं दे सकता।
(लेखक IFWJ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)
Source link