उदारवाद और आधुनिकता के स्वर्णिम काल में “कांग्रेस और सलमान रुश्दी” – Congress and Salman Rushdie in Golden Age of Liberalism and Modernism
सेनिक वर्सेज़ किताब भारत के कथित कांग्रेसी-वामपंथी उदारवाद और विचारधारा की कलई खोलती आ रही है।
द्वारा नवोदित शक्तावत
प्रकाशित तिथि: शनिवार, 20 अगस्त 2022 04:01 अपराह्न (IST)
अद्यतन दिनांक: शनिवार, 20 अगस्त 2022 04:37 अपराह्न (IST)
प्रेरणा कुमारी
आइए हम आपको अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्वतंत्रता और उदारवाद से सराबोर भारत के ऐसे स्वर्ण युग में ले लेते हैं, जब मोदी-शाह सरकार चली तो किसी भी सरकारी घोषणा के प्रतिभागी भी नहीं थे। कथित सांप्रदायिक पार्टी ‘भाजपा सत्ता’ के किसी भी अनुपात में कहीं भी नहीं था। भाजपा का सारा यूक्रेनी कम्युनिस्ट पार्टी का मुख्यालय दो पोर्टफोलियो तक हुआ था। उदारवाद आधुनिक औरता के पोस्टर बॉय राजीव गांधी कांग्रेस के इतिहास में सर्वोच्च 409 आक्षेप लेकर प्रधानमंत्री पद पर थे, ऐसे स्वर्णिम काल में बिट्रेन में कथित रूप से धार्मिक आवेश करने के लिए एक पुस्तक चपटी है और पूरी दुनिया में काल्पनिक है वह पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश कौन सा है। इस देश में 1976 से अपने संविधान के प्रस्ताव में स्वयं को शामिल किया गया है भारत वाला ही है और इस देश में एक ही संविधान की सत्ता थी जो हिंदू देवियों की नग्न तस्वीरें बनाने वाले एम.एफ. हुसैन को पद्मश्री और पद्मभूषण से नवाजा गया था।
सलमान रुश्दी की ‘सेटेनिक वर्सेस’ साहित्यिक दृष्टि से अच्छी-बुरी कैसी भी हो, लेकिन 1988 में अपने प्रकाशन से लेकर आज तक यह किताब भारत के कथित कांग्रेसी-वामपंथी उदारवाद और विचारधारा की कलई खोलती आ रही है। सेनिक वर्सेज ने भारत की कथित धार्मिकता पर प्रतिबंध लगाते हुए उस विद्रूप पक्ष को शामिल किया है जिसमें स्वतंत्रता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर एक ही धर्म का मखौल उड़ाया जाता है।
आइए इसके बाद आपको भारत का एक और स्वर्ण काल में ले जाना है। 2004 में ‘फासीवादी-सांप्रदायिक-कटरपंथी’ बीजेपी को बढ़त के बाद अब 2012 में कांग्रेस ही सत्ता में थी। इस दौरान राजस्थान के जयपुर में होने वाले जयपुर साहित्यकार महोत्सव में सलमान रुशदी को बुलाया जाता है। देश की आजादी और अभिव्यक्ति की आजादी को नई बुलंदी देने के लिए राजस्थान में भी कांग्रेस की ही सरकार थी।
अब कल्पना की गई कि रुशदी को जयपुर आने से रोकने की मांग करने में देवबंद मदरसा के मौलाना अब्दुल कासिम नोमानी के साथ कौन खड़ा था। यह राजस्थान था। राजस्थान के कांग्रेस अध्यक्ष चंद्रभान सिंह ने कहा, “किसी की धार्मिक मान्यताएं व्यक्त करना स्वतंत्रता की बात नहीं है।” “अगर वे रुशदी को मिलते तो यहां खून की नदियां बहेंगी”, और “हम रुशदी को यहां किसी भी तरह से बात नहीं करने देंगे।”
अगर वह बात करते हैं तो यहां हिंसक दिखावटी”, मुस्लिम पक्ष के ऐसे ही रंगीन पर्दे के बीच कांग्रेस का दावा है कि बेशक भारत के धर्मनिरपेक्षतावाद का असली चेहरा सामने आ रहा है। ही, वीडियो लिंक से लाइव मिर्ज़ा भी लीक हो गया। आश्चर्य की बात यह थी कि इस पूरे एपिसोड में भारत में सहिष्णुता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता पर कोई दोष नहीं दिया गया क्योंकि यह सब स्वतंत्रता की माँ-बाप पार्टी कांग्रेस का समर्थन था।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस की विचारधारा में बचपना के ढोंग हैं। हमारे देश में ऐसे विद्वान पत्रकार, लेखक और उदारवादी हैं जो धार्मिक अनुयायियों का धर्म प्रचार करते हैं। हमारी लिबरल गैंग के किसी सदस्य ने मुस्लिम कट्टरपन के खिलाफ आवाज उठाई हो। कश्मीर में हिंदुओं पर हमले और हत्याओं का सिलसिला जारी है लेकिन इस देश में लिबरल-सेकुलर गिरोहों को बंदूक थमा दी गई है जो अपराधी ही निर्दोष हैं।
आख़िरकार सलमान रुशदी पर हुए आतंकवादी हमले में सिर्फ आतंकवादी हादी मटर ही जिम्मेदार है। उन कथित उदारवादी लोगों की कोई जिम्मेदारी नहीं है जो वर्षों तक विद्वान साख़ियां ओढ़कर बैठे रहे, मुस्लिम कट्टरपन हिंसा पर समर्थक-परंतु प्रेरित करते रहे या हिंसा का वादी समर्थन करते रहे।
भारत में कमलेश तिवारी और हाल ही में गद्दार लाल, यूरोप में शार्ली हैब्डो, थियो वॉन गोग और सैमुअल पैटी जैसे कई उदाहरण हैं जब सभ्य समाज धर्म विशेष की आलोचना करने वालों के खिलाफ कथित सेकुलर समर्थक और उदारवादी लोगों से संदिग्ध निंदा की उम्मीद है रख रहा था लेकिन ऐसी मछली और उदारवादी या तो मछली पकड़ने वाली या कमोबेश इन हत्याओं के समर्थन में ही दूसरे लोग दिखाई दे रहे हैं।
(लेखिका डी.ए.ओ. में एलिमेंट्स राहवेल्डे एवं वर्तमान में स्वतंत्र लेखन एवं अनुवाद में सक्रिय हैं।)
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