ईरान ने मध्य पूर्व में इतने सारे मोर्चे क्यों खोल रखे हैं? – BBC News हिंदी
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ईरान के इज़राइल पर हुए हमलों के बाद मध्य-पूर्व में दुनिया पर उनकी भूमिका का ध्यान गया।
तेहरान ने 13 अप्रैल को 300 तक बमबारी की और इसराइल पर कई मिसाइलें दागीं। उनका कहना था कि ये दमिश्क में उनके कॉन्सस ग्लोब (वाणिज्य दूतावास) पर हवाई हमलों का जवाब है।
इज़राइल के सहयोगियों ने गुज़ारिश की है कि वो ईरान के साथ संघर्ष को आगे न बढ़ाए। सात फ़ाइबर को इसराइल पर हुए हमलों के बाद से ही ईरान और सहयोगी मध्य-पूर्व में तनाव बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
ईरान हमास का समर्थन करता है. लेकिन वो मध्य-पूर्व में हाल के दिनों में किसी भी प्रकार के सीधे हस्तक्षेप को अस्वीकार करते हैं।
हालाँकि लेबनान के अंदर से इज़राइल पर मिसाइलें दागने, जॉर्डन में अमेरिकी सैन्य कब्ज़ा पर हमले और लाल सागर में पश्चिमी देशों के समुद्री जहाज़ों को मजबूती बनाने के आरोप में ईरान पर हमला किया जा रहा है। क्योंकि इन दावों के लिए ईरान के गुटों को दोषी ठहराया गया है। ये गुट कौन से हैं और ईरान के तार आंखे किस तरह से जुड़े हुए हैं.
ईरान इलेक्ट्रॉनिक हथियारबंद गुट
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मध्य-पूर्व में कई हथियारबंद गुट तार ईरान से जुड़े हुए हैं। इनमें गाजा में हमास, लेबनान में हिजाब, यमन में हूती विद्रोही शामिल हैं। इसके अलावा ईरान, सीरिया, इराक़ और बहरीन में भी कई गुट समर्थन करते हैं।
इसे प्रतिरोध की धुरी (एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस) कहा जाता है। इनमें से कई गुटों को पश्चिमी देशों में ‘आतंकवादी समूह’ द्वारा अधिकार दिया गया है।
‘क्राइसिस ग्रुप’ ने थिंक टैंक में ईरान के मामलों के बारे में अली वाज़ के अनुसार इन गुटों का उद्देश्य ‘मध्य पूर्व को अमेरिकियों और इज़राइली खतरों से सुरक्षित रखना है।’
अली वाएज़ कहते हैं, “ईरान सबसे बड़ा ख़तरा अमेरिका से है और उसका बाद वाला नंबर इसराइल का है। ईरान उसे मध्य-पूर्व में अमेरिका के खतरे के रूप में देखता है। ईरान ने इस क्षेत्र में एक ऐसा नेटवर्क बनाया है जिससे नाकाबंदी हो गई।” वो अपनी ताक़त को प्रोजेक्ट करता है।”
ईरान को कोई युद्ध लड़ाने वाले 30 सैनिक भड़क गए हैं और बार-बार अपने हमले के खुलासे में खुद को शामिल होने से मना कर रहे हैं।
गाज़ा युद्ध के बाद के भयानक हमले
लेकिन तेहरान ने 45 साल पहले हुई इस्लामिक क्रांति के बाद ही इन उग्रवादी गुटों का साथ दिया है। 1980 के दशक से ही ये गुट ईरान की राष्ट्रीय सिद्धांत की रणनीति का सिद्धांत अंग कर रहे हैं।
ईरान के सहयोगी गुटों ने गाजा में जारी सैन्य संघर्ष के दौरान इजरायल को मजबूत बनाया है। हिजाब ने लेबनान पर रॉकेट दागे हैं तो यमन के होती विद्रोहियों ने लाल सागर में मलवाहक जहाजों को बनाया है।
इनमें से प्रमुख घटना 28 जनवरी को घाटी थी जब एक अमेरिकी सैन्य हमले में तीन अमेरिकी नागरिक मारे गए थे। इसकी ज़िम्मेदारी ‘इस्लामिक रेज़िस्टेंस इन इराक़’ नामक संगठन ने ली थी।
ईरान ने इस हमले में शामिल के हिस्से का खंडन किया था.
इस हमले के जवाब में अमेरिका ने ईरान की कुदास फोर्सेस और उससे जुड़े इराक़ और सीरिया के उग्रवादियों को एकजुट किया था।
इसके बाद अमेरिका और ब्रिटेन ने एक साझे ऑपरेशन में यमन के होती विद्रोहियों पर हवाई हमले किये थे।
एक अप्रैल को सीरिया की राजधानी दमिश्क में स्थित ईरान कॉन्सोल में हुए हमलों में 13 लोगों की मौत हो गई थी।
ईरान के कुदास फ़ोर्स के सीनियर कमांडर और हिज़बिस्तान के फ़ोर्स की मौत हो गई थी।
ईरान में इस हमले के लिए इसरायल को चिन्हित किया गया है। इजराइल ने यह नहीं कहा है कि कॉन्सस ग्लोबल पर हमला उसने किया था, ऐसा माना जाता है कि यह इजराइल का ही काम था।
हाल के महीनों में सीरिया में ईरान के कई कमांडर मारे गये। इन सभी दावों के पीछे इसराइल का ही हाथ माना जाता है।
ईरान ने कहा है कि 13 अप्रैल को उसने इसराइल पर जो डिज़ाइन और मिसाइल दागे थे, एक अप्रैल को उसके कॉन्सोस डेमोक्रेटिक पर हुए हमलों का ही जवाब दिया गया था।
ईरान का इतिहास और अमेरिका के साथ उसका संबंध
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मध्य-पूर्व में ईरान की भूमिका और अमेरिका के साथ स्तुतिगान की दो कहानियों के बारे में समझा जा सकता है।
वर्ष 1979 में ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति ने उसे पश्चिमी देशों से अलग-थलग कर दिया था।
उस क्रांति के दौरान अमेरिका के 52 कूटनियों को तेहरान के अमेरिकी दूतावास में बंधक बनाकर रखा गया था। उस वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर का पूरा ध्यान जारी किया गया था।
अमेरिका में ऐसी भावना कि ईरान को इस घटना के लिए सजा दिया जाए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अकेला छोड़ दिया जाए।
यही कारण था कि पश्चिमी देशों ने इराक का साथ देना शुरू कर दिया। 1979 से लेकर 2003 तक इराक़ पर सद्दाम हुसैन का राज था।
वर्ष 1980 से 1988 तक ईरान और इराक़ के बीच जंग चलती रही।
इस युद्ध का अंत तब हुआ जब दोनों देशों पर राज हुआ लेकिन युद्ध में दोनों को भारी क्षति का सामना करना पड़ा। दोनों पक्षों के करीब दस लाख लोगों की जान गई थी और जंग से ईरान की अर्थव्यवस्था तहस नहस हो गई थी।
इस युद्ध में ईरान के रणनीतिकारों ने ये बताया था कि भविष्य की जंग के लिए उन्हें कई तरह के हथकंडे अपनाने होंगे। इनमें बैलिस्टिक मिसाइलों का इस्तेमाल और क्षेत्रीय सैन्य समूहों का समर्थन शामिल था।
इसके बाद अफ़ग़ानिस्तान (2001) और इराक़ (2003) पर अमेरिका की कहानियों ने ईरान के सारांश को और इस्लामी दी।
ईरान क्या चाहता है और क्यों?
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ईरान अमेरिका के सामने सैनिकों की ताक़त की शिकायत को बहुत कमज़ोर माना जाता है। इसलिए बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान के जहाज़ निज़ाम ने खुद को बचाए रखने के लिए प्रतिरोध की जिस कथित नीति का सहारा लिया है, वो लंबे समय से अपनी स्तर बनाए रख रहा है।
एलेक्स वाटंका मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट (एमईएआई) के ईरान कार्यक्रम के संस्थापक निदेशक हैं।
उनका कहना है, “ईरान अमेरिका मध्य पूर्व से बाहर जाना चाहता है। उसकी लंबे समय से यही रणनीति चल रही है कि दूसरे पक्ष को बाहर कर दो।”
अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स के कामरान मार्टिन की राय में “ईरान ग्लोबल मंच पर खुद को एक ताक़तवर खिलाड़ी के रूप में देखना चाहता है।”
इंटरनेशनल रिज़र्वेशन के वरिष्ठ व्याख्याता कामरान कहते हैं, “प्राचीन ईरान जिसे इतिहास में पर्शिया के नाम से जाना जाता है, एक गौरवशाली अतीत है। ईरान का पश्चिमी एशिया में बारह सौ साल तक प्रभाव रहा है।”
“ईरान का मानना है कि क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों में वो एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फ़ज़ी कला और साहित्य की समृद्ध विरासत के बूटे ईरान खुद को एक महान राज्य और ताक़त के रूप में देखता है।”
ईरान के पास कितना नियंत्रण है?
राजनीतिक कार्यकर्ता और ईरान मामलों के विशेषज्ञ यास्मीन माडेर यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड से जुड़े हुए हैं। यास्मीन का कहना है कि ईरान पर उनके साथियों का बहुत अधिक नियंत्रण नहीं है।
यास्मीन रेड सी में साथियों पर हमला करने वाले हूती विद्रोहियों के उदाहरण हैं। उनका कहना है कि ईरान में हूती विद्रोहियों का यमन में इस्तेमाल किया जा रहा है।
लेकिन यास्मीन का ये भी कहना है कि “हौती विद्रोही ईरान के सभी आतंकवादियों की फर्मादारी नहीं कर रहे हैं। उनका एक अपना सिद्धांत है और वे खुद को एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में देखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि ईरान के सभी आतंकवादी फिर से संगठित न हों।” हैं।”
क्राइसिस ग्रुप के अली वाएज़ कहते हैं, “ईरान जैसे किसी देश के साथ समस्या ये है कि उसने अपने क्षेत्रीय नीति का हिस्सा नॉन स्टेट एक्टर्स (हुती विद्रोही) जैसे को दे दिया है। इन नॉन स्टेट एक्टर्स के नेटवर्क पर ईरान का पूरा कंट्रोल है।” नहीं है।”
अली वाएज़ का ये भी मानना है कि ईरान की ताक़त को अक्सर ही बढ़ावा-चाकर आदा जाता है।
वे कहते हैं, “एक विचार यह है कि पूरे इलाके में विक्टोरा की लड़ाई का असली मास्टर माइंड ईरान है, शतरंज की पूरी बाजी चल रही है। लेकिन ईरान और उसके दोस्त अपना कोई भी खास मकसद पूरा नहीं कर पाए। वे गाजा में युद्ध के लिए इजरायल को मजबूर कर पाए और न ही अमेरिका को मध्य पूर्व से बाहर का रास्ता दिखाया।”
हालाँकि ईरान के पास परमाणु ताक़त भी है।
इसके बारे में अली वाज़ कहते हैं, “ईरान का परमाणु कार्यक्रम पिछले 20 वर्षों में अपने सबसे उन्नत स्तर पर है।”
अली वाज़ का मानना है कि ईरान अपने सहयोगियों और सहयोगियों के नेटवर्क के माध्यम से जो कुछ कर रहा है, उसकी तुलना में उसके परमाणु कार्यक्रम इज़राइल और पश्चिमी देशों के लिए अधिक बड़ी समस्या है।
‘तृतीय विश्व युद्ध?’
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अमेरिकी थिंक टैंक स्टिमसन सेंटर के बारबरा स्लाविन जैसे कुछ स्थिरताओं के अनुसार, इज़राइल पर हमला करने का ईरान का फ़ासला उसके धागे में बड़ा बदलाव है।
वो कहते हैं, “इज़राइल और ईरान के बीच चल रहा छाया युद्ध अब फ्रैंक सामने आ गया है।”
हालाँकि बारबरा का ये भी कहना है कि इसराइल पर ईरान ने अपनी जवाबी कार्रवाई में बहुत सोच समझकर कदम उठाया है। हमलों के लिए उन्होंने इज़राइल और अमेरिका को तैयारी करने का समय मिल सके, इसके लिए उन्होंने नाटकीय रफ़्तार वाले जापानियों को चुना।
ईरान के युगदराज हो रहे सुप्रीम लीडर अयातसया अली खामेनेई को इस जवाबी कार्रवाई के लिए ग्रीन कॉम्बिनेशन इंजीनियर ने तैनात किया ताकि रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडरों को तसल्ली दी जा सके। ईरान की विदेश नीति में रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स की सबसे बड़ी भूमिका है।
हालाँकि ईरान को ये अच्छी तरह से मना कर दिया गया है कि इसराइल और अमेरिकी सैनिक ताक़त के साथ बड़ी लड़ाई के लिए ख़तरनाक साबित हो सकते हैं।
ईरान के समर्थक इस्फ़ंदयार बत्तमनघेलिदी कहते हैं, “युद्ध से बचना खामनेई की विरासत के लिए है। ईरान इसराइल के विरोधी जो भी क़दम रखते हैं, उनका उद्देश्य पूर्ण युद्ध से बचना है।”
मध्य-पूर्व के ऐतिहासिक स्थलों के बाद से ही दुनिया भर में ‘वर्ल्ड वॉर थ्री’ गूगल पर सर्च किया जा रहा है।
ईरानी मामलों के सलाहकार अली वाएज़ का कहना है कि इसराइल पर ईरान के मिशन के बाद युद्ध के बाद कचरे के ढेर से ख़ारिज़ नहीं किया जा सकता।
वाएज़ का कहना है कि दोनों देश अब भी एक-दूसरे पर हमला कर सकते हैं लेकिन ये भी संभव है कि ये युद्ध बदल जाए और इसमें अमेरिका भी शामिल हो जाए।
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