अल्पसंख्यकवाद से मुक्ति पर विचार हो, देश में हैं अनेक समुदाय – Consideration should be given to freedom from minorityism there are many communities in Country
राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा अल्पसंख्यक अधिनियम आयोग-1992 बनाया गया। इसमें देश के बुनियादी ढांचे से अलगाव, धार्मिक समुदायों की स्थिति के आधार पर आकलन की आवश्यकता पर बल दिया गया है। आज देश में एक बार फिर से अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का विषय चर्चा में है।
द्वारा नवोदित शक्तावत
प्रकाशित तिथि: शनिवार, 12 नवंबर 2022 05:53 अपराह्न (IST)
अद्यतन दिनांक: शनिवार, 12 नवंबर 2022 05:58 अपराह्न (IST)
-डॉ. बोरिंग
भारत एक विशाल देश है। यहां विभिन्न समुदाय के लोग निवास करते हैं। उनकी अलग-अलग संस्कृतियाँ हैं, लेकिन सोसायटी नागरिकता एक ही है। सब भारतीय हैं। कोई भी देश उस समय का होता है जब उसका निवासी विकास करता है। यदि कोई सामुदायिक संरचना के अन्य समूह से पिछड़ा जाए, तो वह देश को समग्र रूप से विकसित नहीं कर सकता। इसलिए आवश्यक है कि देश के सभी सामुदायिक विकास हों। आज देश में एक बार फिर से अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का विषय चर्चा में है।
उल्लेखनीय है कि ‘अल्पसंख्यक’ का सागर केवल मुस्लिम समुदाय से नहीं है। देश के संविधान में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द की भविष्यवाणी धार्मिक, भाषाई एवं सांस्कृतिक रूप से भिन्न भिन्न रूपों के लिए दी गई है। यह बात गलत है कि कांग्रेस ने अपने सहयोगियों का इस्तेमाल किया, ताकि उनका वोट बैंक बना रहे। राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा अल्पसंख्यक आयोग -1992 बनाया गया। इसमें देश के बुनियादी ढांचे से अलगाव, धार्मिक समुदायों की स्थिति के आधार पर आकलन की आवश्यकता पर बल दिया गया है। इस अधिनियम के आधार पर मई 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया।
पूर्वी राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम-1992 में ‘धार्मिक अल्पसंख्यक’ की परिभाषा नहीं दी गई है। जो समुदाय अल्पसंख्यक है, उसका निर्णय लेने का सारा दायित्व केंद्र सरकार को सौंप दिया गया। इसके बाद कांग्रेस सरकार ने अक्टूबर 1993 में पांच धार्मिक समूहों को अल्पसंख्यकों के रूप में अधिसूचित किया, जिनमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी शामिल हैं। इसके अंतिम जैन समुदाय द्वारा उसे भी अल्पसंख्यक का खंड दिए जाने की मांग की गई। तब सरकार ने राष्ट्रीय धार्मिक अधिनियम-2014 में एक संशोधन करते हुए जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यकों की सूची में शामिल कर दिया।
भारतीय जनता पार्टी का हमेशा से यही कहना है कि कांग्रेस अल्पसंख्यकों के नाम पर ‘मुस्लिम तुष्टिकरण’ की राजनीति करती है। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में भी यह प्रश्नचिन्ह लगाते हुए संकल्प लिया था कि वह ‘अल्पसंख्यक आयोग’ को समाप्त कर इसकी जिम्मेदारी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सौंपेगी। अब केंद्र में बीजेपी की सरकार है तो इस विषय पर चर्चा आ गई है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 1998 में भाजपा सत्ता में आई, उस समय इस संबंध में कुछ नहीं हुआ।
कांग्रेस पार्टी द्वारा द्वितीय राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का भी इस दिशा में कोई कार्य समाप्त नहीं हुआ। दरअसल साल 2004 में बीजेपी ने इस विषय पर ध्यान नहीं दिया, आजाद बीजेपी ने 2014 के अपने घोषणा पत्र में कहा कि ‘स्वतंत्रता के तीन दशकों के बाद भी अल्पसंख्यकों का एक बड़ा वर्ग, असहिष्णु मुस्लिम समुदाय निर्धनता में शामिल हुआ है।’ बीजेपी की इस बात के कई अर्थ निकाले जा सकते हैं।
प्रथम यह है कि भाजपा की मान्यता यह है कि देश की आजादी के तीन साल बाद भी पूर्वजों की स्थिति में गिरावट आई है, जैसा कि सच्चर समिति की रिपोर्ट में कहा गया है। द्वितीय यह है कि स्वतंत्रता के बाद वाले देशों में कांग्रेस का ही शासन है और वह रियासतों की रियासतों के लिए कुछ नहीं कर पाई और मुस्लिम इस पद पर आसीन हो गए। इसका एक अर्थ यह भी है कि पार्टालिट की यह नागालैण्ड स्थिति कांग्रेस का गणतंत्र है।
देश और प्रदेश में अल्पसंख्यकों को लेकर बड़ी आबादी की स्थिति है। कोई भी समुदाय राष्ट्रीय स्तर पर बहुसंख्यक है, तो किसी भी राज्य में अल्पसंख्यक है। इसी प्रकार कोई समुदाय राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक है, तो किसी राज्य में बहुसंख्यक है। इसी प्रकार कोई समुदाय एक राज्य में अल्पसंख्यक है तो किसी अन्य राज्य में बहुसंख्यक है। उल्लेखनीय यह भी है कि सर्वोच्च न्यायालय में राज्य स्तर पर हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की बात कहने वाली याचिकाएं भी उजागर की गई हैं। इस संदर्भ में केंद्र सरकार ने अपनी राय देने के लिए समय मांगा है। इस संबंध में 14 राज्यों ने अपनी राय दे दी है, जबकि 19 राज्यों और केंद्र सरकार ने अभी तक अपनी राय नहीं दी है।
इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का क्या निर्णय आता है, यह तो समय के गर्भ में छिपा है, इतना निश्चित है कि यह एक अंतिम विषय है। इससे देश का सामाजिक माहौल प्रभावित होगा। इस स्थापना का एक सरल उपाय यह है कि देश को अल्पसंख्यक एवं बहुसंख्यक की राजनीति से मुक्ति दिलाई जाए। संविधान की दृष्टि में देश के सभी नागरिक एक समान हैं। संविधान में बोस्निया के समान रूप से अधिकार दिए गए हैं। संविधान ने किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया है। इसलिए देश में समान नागरिक संहिता ढूंढी जाए।
इससे बहुत से सीरम स्वयं समाप्त हो जाएंगे। यदि किसी देश के सभी वास्तुशिल्प की स्थिति एक समान विकासशील है, तो उनके धर्म, पंथ या जाति के आधार पर नहीं, उनके आर्थिक आधार पर विध्वंस की आवश्यकता है। आर्थिक आधार पर बनी इकाइयों से उनका समग्र विकास हो। ऐसा न होने पर देश में अल्पसंख्यक और बहुसांख्यक की राजनीति में विवाद कर रह जाएंगे। ऐसी परियोजनाओं में मूल संभावनाओं से ध्यान भटकेगा, जिससे विकास कार्य प्रभावित होगा।
प्रश्न है कि जब संविधान में सभी को समान अधिकार दिए गए हैं, तो अल्पसंख्यकों को धार्मिक आधार देने का क्या औचित्य है? वास्तव में निर्धनता का संबंध किसी धर्म, पंथ या जाति से नहीं होता। इसका संबंध व्यक्ति की आर्थिक स्थिति से होता है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश में निरंतरता का विकास जारी है। मोदी सरकार द्वारा ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ अभियान चलाया जा रहा है।
सरकार ने सटीक आय वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए कई बनाए हैं, लाभ देश के निर्धन परिवार को मिल रहा है। इन एलिमिनेशन का यही उद्देश्य है कि देश के सभी निर्धन परिवारों की आर्थिक स्थिति की जानकारी हो। इस रिश्ते में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा है।
यह अनुचित नहीं है कि देश में अल्पसंख्यकवाद से साम्प्रदायिकता को बढ़ावा मिले। अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों से प्राथमिकता देने का अर्थ यह है कि उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। इसी तरह के एकल-अल्पसंख्यक भी स्वयं को विशेष मैकेनिकल मॉड्यूल से अलग कर सकते हैं। वे स्वयं को अलग रखना चाहते हैं और पृथक्करण से उनकी पहचान बन जाती है। इस मनोवृत्ति से उन्हें नुकसान होता है।
वे देश के बुनियादी ढांचे से पृथक्करण समुदाय से हैं और उनका समान रूप से विकास नहीं हो पाता है। अल्पसंख्यकवाद से भाईचारा भी प्रभावित होता है। सामुदायिकता देश के समग्र विकास के लिए बहुत बड़ी बाधा है। इसलिए देश को अल्पसंख्यकवाद बनाम बहुसंख्यकवाद की राजनीति से अवगत कराया जाएगा। एक देश में एक ही विधान होना चाहिए। जब संविधान की दृष्टि में सभी नागरिक एक जैसे हैं, तो उनकी इच्छाएँ भी एक समान होनी चाहिए।
(लेखक-मीडिया शिक्षक एवं राजनीतिक स्थिरांक है)
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