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जमीन हथियाने के लिए विरोधीयों ने मुझे फर्जी मुकदमे मे फंसाया था-बी एन जॉन

वाराणसी। दिनांक 6 जनवरी, कैटोनमेंट स्थित बंगला नंबर 12 में बी एन जॉन एवं उनकी पत्नी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक जीत को लेकर एक महत्वपूर्ण पत्रकारवार्ता का आयोजन किया गया।

इस मौके पर पत्रकारों से बी एन जॉन ने बताया कि यह एक छात्रावास के स्वामी और प्रबंधक थे, जिसे एक गैर-सरकारी संगठन “संपूर्ण डेवलपमेंट इंडिया” द्वारा संचालित किया जाता था। इस संगठन का उद्देश्य असहाय, वंचित बच्चों के लिए उचित शिक्षा और अन्य आवश्यकताओं की सुविधाएं प्रदान करना था।

 

बी एन जॉन के अनुसार सैम अब्राहम एवं के वी अब्राहम और उनके सहियोगियों द्वारा जमीन हड़पने की नीयत से बी एन जॉन के खिलाफ कई फर्जी मुकदमें दर्ज किए है। इनमें से चार मामलों में उन्हें बरी कर दिया गया है।

 

उन्होंने कहा कि 3 जून 2015 को सैम अब्राहम के आवेदन पर अधिकारियों ने बी एन जॉन के छात्रावास पर छापा मारा और यह झूठा दावा किया गया कि छात्रावास किशोर न्याय अधिनियन, 2015 के प्राबधानों का पालन नहीं कर रहें है और छात्रावास में रहने वाले बच्चों की दूसरी जगह स्थानांतरित करने की मांग की। बी एन जॉन पर थाना कैंट में धारा 353 आईपीसी के तहत फर्जी मुकदमा दर्ज कराया गया, जिसमें अधिकारियों पर हमले का झूठा आरोप लगाया गया। बाद में 20 जून 2015 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, वाराणसी की अदालत में चार्जशीट दायर की गई। इसमें आईपीसी की धारा 353 और 186 के तहत आरोप लगाए गए बाद में बी एन जॉन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील करते हुए चार्जशीट, संज्ञान आदेश और मामले में सभी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अपील के पश्चात सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर की। न्यायमूर्ति थी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने अपील की सुनवाई की और टिप्पणी की, “हम संतुष्ट है कि अपीलकर्ता ने वाराणसी के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष बी एन जॉन के खिलाफ लवित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का मामला प्रस्तुत किया है।” सर्वोच्च न्यायालय ने प्राथमिकी जिसमें बी एन जॉन एवं उनकी पत्नी पर ड्यूटी पर तैनात सरकारी कर्मचारियों पर हमले का आरोप था, का रद्द कर दिया।

अदालत ने कहा कि आरोपित अपराध की जांच प्रारंभिक चरण से ही कानूनी खामियों से ग्रस्त थी। पीठ ने हरियाणा राज्य बनाम च. भजनलाल और अन्य के ऐतिहासिक मामले का उल्लेख किया, जिसमें न्यायालय ने मामलों को रद्द करने से संबंधित कई दिशा-निर्देश दिए थे। इनमें से एक यह था कि यदि प्राथमिकी में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्ट्या किसी अपराध का गठन नहीं करता है, तो प्राथमिकी को रद्द किया जा सकता है। इस संदर्भ में 2 जनवरी 2025 को सर्वोच न्यायालय ने बी एन जॉन के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया और सच्चाई की जीत हुई।

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