अभिषेक बनर्जी: ममता बनर्जी की पार्टी में कॉर्पोरेट कल्चर लाने वाले उत्तराधिकारी – BBC News हिंदी
पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री और कैथोलिक कांग्रेस की शीर्ष नेता ममता बनर्जी आज भी कोलकाता के कालीघाटों में स्थित खपरैल वाले सुपरमार्केट हाउस से ही राजनीतिक सलाहकार बनी हैं।
जिस रोड के तट पर ऋषीश चटर्जी रोड नाम का मकान है, वहां मूल रूप से निम्न मध्य वर्ग के लोग ही रहते हैं। उस सड़क के पीछे ही आदिगंगा का गंदा पानी बहता है।
कुछ साल पहले तक वहां रहना मुश्किल था। लेकिन ममता बनर्जी आज तक उस साधारण मकान को छोड़कर कहीं और नहीं रहीं।
13 साल तक लगातार मुख्यमंत्री रहने के दौरान वो हाउसहोल्ड से लेकर प्राइवेट लैबोरेटरी तक सभी काम कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी स्थिर कालीघाट स्थित इसी मकान में आये थे और ममता बनर्जी की मां का चुनाव किया गया था। उस सड़क से कुछ दूर आगे बढ़ते हुए दक्षिण कोलकाता के एक संभ्रांत रेस्तरां में स्थित ‘शांतिनिकेतन’ नामक एक आलीशान इमारत में अभिषेक निरंजन सपिरवार रहते हैं।
अभिषेक बनर्जी की राजनीतिक ताक़त
अभिषेक बनर्जी के घर के सामने चौबीसों घंटे पुलिस का पहरा रहता है। उस सड़क से दूर, किसी बाहरी व्यक्ति से उस इमारत में ताकझाँक की बात भी नहीं की जा सकती।
विपक्ष में वो ममता बनर्जी के समर्थक हैं और दक्षिण 24-परगना जिले की डायमंड हार्बर सीट से लगातार दो बार सांसद रह चुके हैं।
पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी ने अब तक 41 सीटों पर अपनी दावेदारी की घोषणा कर दी है, जिस एक सीट पर पार्टी ने अब तक अपनी दावेदारी की घोषणा नहीं की है। है, वो है डायमंड हार्बर की सीट.
समकालीन लेकर अन्य प्रकार की राजनीतिक चर्चाओं का दौर तब तक जारी रहेगा जब तक कि भाजपा इस सीट से अपनी चिंता की घोषणा नहीं कर रही है।
वैसे 2019 के चुनाव में अभिषेक बनर्जी ने बीजेपी के उम्मीदवार ब्लूंजन रॉय को तीन लाख 20 हजार से ज्यादा की कीमत से हराया था।
अभिषेक बनर्जी वैसे तो वामपंथी कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल में यह बात आम जनता को पता है कि वे वामपंथी कांग्रेस के अघोषित राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं। अभिषेक भले ही शांति निकेतन में रहते हों, पार्टी और राजनीतिक जिम्मेदारी के लिए महानगर में उनका एक निजी भंडार भी है।
कोलकाता में साहबपाड़ा (अमीराम का स्मारक) के नाम से जाना जाने वाला स्मारक कैमक स्ट्रीट में स्थित एक चमकदार और सामने का शीशा लगी बहुमंजिली इमारत की सबसे ऊपरी मंजिल पर लिखा है, ‘आल इंडिया वडोदरा कांग्रेस।’
अभिषेक का यह ऑफर किसी राजनीतिक पार्टी का नहीं बल्कि किसी कंपनी ब्रांड के मुख्यालय पर नजर आता है। यही एकमात्र कोलकाता में कालाघाट के साथ-साथ ओल्ड कांग्रेस का समांतर नर्व सेंटर है।
सबसे बड़ी बात तो ये है कि शक्ल और किरदार में कालीघाट के खपरैल वाले मकान और कैमक स्ट्रीट के दफ्तर में जमीन-आसमान का जो फर्क है, ममता बनर्जी और उनके समर्थक अभिषेक के राजनीतिक दर्शन और काम करने के तरीके में भी फर्क है .
अभिषेक बनर्जी की छवि बंगाल की ‘अग्नि कन्या’ के नाम से प्रसिद्ध ममता बनर्जी से बिल्कुल अलग है। राज्य की राजनीति में वे भूगोल से उभरे हैं, जिसे अंग्रेजी में ‘ही हैज अराइव्ड’ कहा जाता है।
अब तक का राजनीतिक सफर
अभिषेक बनर्जी का राजनीतिक सफर युवा नामक एक संगठन के नाम से शुरू हुआ था। वर्ष 2021 में ऑर्थोडॉक्स कांग्रेस के राज्य की सत्ता में आने के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने ‘युवा’ को इस संगठन का अध्यक्ष नियुक्त किया, जिसे विशेष रूप से पद पर नियुक्त किया गया था। तब उनकी उम्र 23 साल थी.
तब ‘तृणमूली युवा कांग्रेस’ नामक पार्टी की एक युवा शाखा पहले से ही मौजूद थी। इसके बावजूद ममता बनर्जी की हरी एसोसिएशन की बैठक के बाद ही एक अलग युवा संगठन ने अपने नेतृत्व को मंजूरी दे दी।
हालाँकि इसके कुछ साल बाद ‘युवा’ का विलय ‘तृणमूली युवा कांग्रेस’ में हो गया। साल 2014 में मोहम 26 साल की उम्र में पहली बार डायमंड हार्बर सीट से जीत कर अभिभाषण के लिए प्रसिद्ध हुए थे।
इस ‘युवा’ कार्ड का इस्तेमाल उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा में बहुत ही सजगता और आक्रामकता से किया है। हाल में वो पार्टी के अंदर नए और पुराने के द्वंद्व को सार्वजनिक रूप से उकसाकर बुजुर्गराज नेताओं की राजनीति से ऊहापोह की दीक्षा दे रहे हैं।
इसके जवाब में उस समय ममता बनर्जी ने भी कहा था कि पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को भी सम्मान और सामान मिलना चाहिए।
अभिषेक लाभ दस साल से न्यूनतम हैं। लेकिन पहले समझौते के दौरान, दूसरे साम्राज्य के स्वामित्व वाले राज्य की राजनीति से जुड़े अलग-अलग शेयरधारकों पर स्थायी और सक्रिय देखा गया था।
साल 2019 में बीजेपी ने आधिकारिक तौर पर 18 मार्च को नामांकन बैठक के बाद चुनावी रणनीतिकार पीके यानी पैसिफिक टीनएजर और उनकी संस्था आईपैक को यहां काम करने के लिए बुलाया था।
टैब राजनीतिक हल्के में यह चर्चा आम थी कि पीके के साथ समझौता करने का निर्णय खुद ममता बनर्जी को भी पसंद नहीं था। लेकिन दो साल बाद 2021 में विधान सभा चुनाव में ओल्ड कांग्रेस की ऐतिहासिक पुस्तक साबित हुई कि वह फैसला बिल्कुल सही था।
उसके बाद तीन साल के दौरान डेमोक्रेट कांग्रेस में अभिषेक रिपब्लिकन का नियंत्रण और प्रभुत्व स्थिरता मजबूत हुई। पार्टी में उनके सितारों को अहम जिम्मेदारियां मिली हैं. अभिषेक ने किसी दौर में ममता को ‘डकैतों की रानी’ में शामिल होने वाले बानाफ्ता असली घोष को भी पारंपरिक कांग्रेस का प्रवक्ता बना दिया।
इसलिए यह अस्वाभाविक नहीं है कि 10 मार्च को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड की रैली में राज्य की 42वीं पार्टी के लिए ओला कांग्रेस पार्टी के नाम की सूची जारी की गई तो मंच पर ममता बनर्जी की उपस्थिति के बावजूद उन्होंने अभिषेक रंजन की घोषणा की। ही की.
विभागीय संस्कृति विभाजन
एकजुटता के छात्र रह रहे हैं अभिषेक लैब्रायड कैथोलिक कांग्रेस के शेयरधारक-ढाले और उद्यम चालचलन में एक सहयोगी सहयोगी बनाने का प्रयास भी कर रहे हैं।
मुझे याद है कि छह सात साल पहले पश्चिम बंगाल की राजनीति की ओर से बीबीसी के दिल्ली ब्यूरो की ओर से एक रिपोर्ट के लिए ऑक्सफोर्ड कांग्रेस की प्रतिक्रिया की जिज्ञासाओं के लिए अभिषेक राजन को फोन किया गया था।
पूरी बात सुनने के बाद अभिषेक ने बेहद शांत और संयत स्वर में कहा, “दिक्कत यह है कि पार्टी ने मुझे प्रवक्ता की जिम्मेदारी नहीं दी है। पार्टी के विभिन्न राष्ट्रीय और स्थानीय कार्यकर्ताओं के लिए दिल्ली और कोलकाता में हमारे प्रवक्ताओं का स्वागत है।” उदाहरण है। कृपया आप ही किसी को भी फोन करें।
अभिषेक ने उस दिन कहा था, “मान लें कि मीडिया के बाहर किसी प्रतिनिधि ने बीबीसी की प्रतिक्रिया लेने के लिए आपको फोन किया है। यह निश्चित रूप से आपके प्रेस कार्यालय पर है। आप तो अचानक बीबीसी की ओर से कोई टिप्पणी नहीं कर सकते .आपकी संस्था में जैसा निर्देश है, वैसा ही एक सिस्टम है…मुझे माफ़ करें।”
मैंने अपने पत्रकार-साहित्यिक में सैकड़ों डेमोक्रेट के साथ बात की है, लेकिन सवाल से बचने के लिए ऐसा स्मार्ट जवाब या कौशल बहुत कम ही देखा है।
ममता बनर्जी से दूरी
वो अपने करीबियों से कई बार कह चुके हैं कि त्रिलोक कांग्रेस पार्टी कांग्रेस से टूट कर ही बनी थी। लेकिन कांग्रेस जैसी ढिलाई से ऑपरेशन की स्थिति पश्चिम बंगाल के आगे पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की हालत भी वैसी ही होगी।
अभिषेक को इस लक्ष्य में फेल हद तक सफल कहा जा सकता है। कई छात्रों के बावजूद पश्चिम बंगाल में आज भी कांग्रेस की मजबूत संस्था ममता बनर्जी की निजी प्राथमिकता और पार्टी के मजबूत संगठन पर जोर है। इसका बागडोर पूरी तरह से अभिषेक के हाथों में है।
पश्चिम बंगाल की राजनीति में हाल के दिनों में सबसे ज्यादा नामांकन वाले सवाल में यह कहा जा रहा है कि आखिर क्या ममता बनर्जी और उनके सहयोगी अभिषेक बनर्जी के बीच एक दूरी बन गई है? और अगर हां तो कितने? इस सन्दर्भ में एक पुरानी घटना को याद करते हुए बर्बादी की स्थिति बनेगी।
वर्ष 1999 में रेल मंत्री के प्रवास के दौरान ममता बनर्जी एक दिन दिल्ली के एसएस फ्लैट में शाम को चाय-मूढ़ी पर गैप से अचानक अपने परिवार का ज़िक्र कर अलग हो गईं।
उन्होंने उस दिन कहा था, “एक भतीजा है। वह इतनी बुद्धिमान और मेधावी है कि आपको क्या बताऊं। इस समय वह स्कूल में है। मुझे पूरा विश्वास है कि वह सीनियर (पश्चिम बंगाल बोर्ड की मेरी स्टूडेंट की परीक्षा) में प्रथम श्रेणी से पास है।” होने की प्रतिभा है। लेकिन सीपीएम को अगर पता चला कि वह मेरी भाभी है तो कभी ऐसी नहीं होगी।”
उस समय कैथोलिक कांग्रेस की कट्टर प्रतिद्वंद्वी सीपीएम सत्ता में थी। ममता जिस आवेदक का दस्तावेज़ कर रही थी वही अभिषेक नामांकित व्यक्ति थे। इसके करीब 17 साल बाद 2016 में मैं बीबीसी डॉक की ओर से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए राज्य सचिवालय ‘नवान्न’ का साक्षात्कार लिया था।
उस दिन की बातचीत के दौरान राजनीति में भाई-भतीजावाद और परिवारवाद की बात बनी रही, वही ममता की आवाज़ में आम नजर आई। उन्होंने कहा, ”बिहार और यूपी में तो राजनीति में आने वाले कई लोगों में कोई दोष नहीं है और मैं अगर एक व्यक्ति हूं के लिए कुछ करता हूँ तो शोर मचाने लगता है!”
उस दिन पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री जिस ‘एक व्यक्ति’ का जिक्र कर रही थीं, वह कोई और नहीं बल्कि अभिषेक बनर्जी ही थे। ममता के करीबियों को यह अच्छी बात पता है कि संयुक्त परिवार में पले-बढ़े अपने भाई की इस औलाद के प्रति ममता के मन में भारी गरीबी है।
औद्योगिक कांग्रेस के संचालन के दौरान विभिन्न शेयरधारकों पर शेयर और स्टॉक में हिस्सेदारी सुनिश्चित की गई। लेकिन साल भर बाद भी दोनों की निजी रजिस्ट्री में कोई रिकॉर्ड नहीं है।
इन दोनों को अंतिम रूप देते हुए कांग्रेस के कई नेताओं ने निजी बातचीत में बताया कि दोनों के बीच समानता मूल रूप से नीतिगत हैं। निजी स्तर पर इस प्रतिष्ठा की कोई छाया नहीं डाली गई है। इसी वजह से इस बात में कोई भी आपत्तिजनक संदेश नहीं है कि आज की तारीख में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के राजनीतिक उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी ही हैं।
कब्रिस्तान के संगीन आरोप
अविभाज्य नामांकन निजीकरण अपने राजनीतिक इतिहास के सबसे जटिल दौर से गुजर रहे हैं। हॉस्टल का आरोप है कि पश्चिम बंगाल में वैश्य कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ एक के बाद एक छात्रावास के आरोप सामने आ रहे हैं.
राज्य के चुनाव में फ़ोर्ट चैट, एनिब्रैट मंडल और ज्योतिष मल्लिक जैसी पार्टी के जो ताक़तवर नेता फ़िलहाल जेल में हैं, वे इस का प्रचार कर रहे हैं, वे अपने ओर से ‘लूट का हिस्सा’ असल में ‘शांतिकेतन’ तक ही हैं अवलोकन था.
इसके अलावा कोयला और अपार्टमेंट की किताबों के अलग-अलग मामलों में दोस्त और मेहमान से कई बार पूछताछ की जाती है। बीजेपी नेताओं ने यह भी आरोप लगाया है कि अभिषेक बनर्जी की पत्नी (जो थाई नागरिक हैं) के बैंकॉक से कोलकाता हवाईअड्डे पर सोने की रिकॉर्डिंग के मामले में पकड़ी गई थी। अभिषेक की पत्नी से भी केंद्रीय शिक्षणेत्तर ने कई बार पूछताछ की है।
अभिषेक रिलायंस के स्वामित्व वाली रहस्यमयी कंपनी ‘लिप्स एंड बाउंड्स’ ने सैकड़ों करोड़ का कारोबार किया है, यह कारोबार कैसे होता है, इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। इस कंपनी से जुड़े अभिभाषण इब्राहिम के करीबी सुजय कृष्ण भद्र नी कालीघाट काकू के खिलाफ़ ने आरोप पत्र का खुलासा किया है।
यह सही है कि अब तक किसी भी केंद्रीय एजेंसी के खिलाफ किसी भी मामले में सीधे तौर पर अभियोग या ठोस आरोप नहीं लगाए गए हैं। लेकिन राजनीतिक रूप से पुराने सहयोगियों के कई सहयोगियों का सामना करना पड़ रहा है।
अभिषेक ने केंद्र सरकार से कुछ महीने पहले ही पलटवार का रास्ता चुना है। केंद्र सरकार के दिनों की काम योजना (मनरेगा) के तहत राज्य के लोगों को पैसे नहीं मिल रहे हैं, उन्होंने आरोप लगाया कि अभिषेक बनर्जी के नेतृत्व में दिल्ली की कम्युनिस्ट पार्टी ने भी हड़ताल शुरू कर दी है।
इसी मुद्दे पर राज्य में लगातार विरोध-प्रदर्शन किया जा रहा है. इस अभियान का नेतृत्व अभिषेक के पास ही है। वैसे अभिषेक अपने राजनीतिक इतिहास के अहम दौर से गुज़र रहे हैं।
अगर अभिषेक के खिलाफ लगाए गए आरोप आने वाले दिनों में अदालत में आरोप साबित कर दिए जाएं या सजा दे दी जाए तो वो जिस तरह की बंगाल की राजनीति में धूमकेतु की तरह उदित हुए थे उसी तरह भी हो सकते हैं।
दूसरी ओर, अगर इन पार्टनरशिप को साबित नहीं किया जा सका और आगामी लोकसभा चुनाव में ओलंपिक कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा तो 36 साल के इस युवा को लगभग अकल्पनीय लाभ होगा।
(बीबीसी के लिए कलइंटरव्यू न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)
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